Total Count

उत्तराखण्ड में पंवाड़े (बीर लोक-गाथाएँ)/Pawade (Bir Folk Tales) social dance in uttrakhand

 

Folk and Music in Uttrakhand 

 पंवाड़े (बीर लोक-गाथाएँ)- पंवाड़े गढ़वाली लोक साहित्य के मौखिक महाकाव्य तथा खण्ड काव्य है. हिन्दी के

वीरगाथाकाल के नायक-नायिकाओं की तरह गढ़वाली पंवाड़ों के भी पात्र हैं. प्रायः गढ़वाल के ठाकुरी राजाओं में इसी प्रकार की लड़ाइयाँ होती रहती थीं. आज भी गढ़वाली जनजीवन में उनके पराक्रम की कहानियाँ गंगा और हिमालय पर्वत के अटूट सम्बन्ध के समान समायी हैं. गाथाएँ तीन रूप में मिलती हैं-

(i) ऐतिहासिक पंवाड़े-ऐसे वीर गीतों में इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों के अमर नायक-नायिकाओं के सम्पूर्ण कार्य-
कलाप वर्णित होते हैं; जैसे-राजा मानशाह, अजयपाल, मालूशाही और प्रीतमदेव आदि.

(ii) ऐतिहासिक एवं अनैतिहासिक पंबाड़े-ऐसे वीर गीत संख्या में बहुत हैं, परन्तु इन गीतों में वीरता का वर्णन और युद्ध कौशल का विवेचन बहुत होता है. कुछ प्रमुख मालों (पीरों) का नाम इस प्रकार है-सुरजू कुंअर, कफ्फू चौहान, कालू भण्डारी, गढ़ सुम्याल, काली हरपाल, हंसा हिंडवान, भानू भौपाल और गंगू रमोला आदि.

(iii) बीरांगनाओं के पंवाड़े-गढ़वाल में कई ऐसी वीरांगनाएँ हुई जिन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए. उनमें तीलू
कीनेली, जोतरमाला, पत्थरमाला, नौरंगी राजुला, ध्यानमाला और सरु कुमैण के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं.

(4) तंत्र-मंत्र के गीत-भूत-प्रेत एवं अनिष्टकारी आत्माओं से बचने के लिए ऐसे गीतों का उपयोग किया है. गारुड़ी
(भूत विद्या का विशेषज्ञ) गीत के साथ अन्य क्रियाओं को भी करता है.

(5) धड़या गीत-बसन्त पंचमी से लेकर विषुवत संक्रान्ति तक गढ़वाल के गाँव-गाँव में गायक तथा गायिकाएँ गोल घेरे में तीन कदम आगे तथा तीन कदम पीछे लौटकर-एक दूसरे के कमर में हाथ डालकर नाचती तथा गाती हैं. धड़या गीत नृत्य एवं गाथा प्रधान होते हैं. अर्जुन, लक्ष्मण, वासुदत्ता ( नाग कन्या) गीतों के मुख्य विषय होते हैं.

(6) चौफला-चौफला भी नृत्य गीत है. इस गीत को भी पर्वत-पुत्र एवं पर्वत-पुत्रियाँ गोल दायरे में घूमकर गाती हैं।
और साथ ही आगे-पीछे के साथी से गुणाकार होकर हाथ मिलाकर तालियाँ वजाती हैं. कभी-कभी डंडों का प्रयोग
किया जाता है. यह गुजरात के 'गरबा' नृत्य के समान है.

(7) खुदेड़ गीत-करुणतम शैली के गीत 'खुदेड़' है. खुदेड़ गीतों में आत्मिक क्षुधा का बाहुल्य होता है. माँ-बाप,
भाई-बहन, सखी-सहेली, वन-पर्वत, पशु-पक्षी, नदी- नाले, फल- फूलों तक स्मृति में आ जाना ऐसे गीतों के मुख्य विषय हैं, जिनमें स्मृति आ जाने पर सबसे मिलने की अटूट चाह होती है. झुमैलो, नगोली और नाग्वाली खुदेड़ों के अन्य रूप भी प्राप्त होते हैं, जिनमें दर्दीली भावना का गहरा सम्वन्ध होता है.

(৪) बारहमासा-वारहमासा बारह महीनों के रंग-रंगीले परिवर्तन के साथ नारी हृदय पर क्या प्रतिक्रिया होती है,
वारहमासा का वर्ण्य विषय होता है. 

(9) चौमासा-(वर्षा ऋतु के गीत) हिमालय की गोद में बसे गढ़वाल में वर्षा ऋतु का सौन्दर्य निराला होता है. नदी-नाले, पर्वत आदि का विषय वर्णन होता है.

(10) कुलाचार-गढ़वाल के ओजी (ढोल-दमाऊ के वादक) तथा भाट बंदी अपने-अपने ठाकुरों की वंश प्रशस्ति
गाते हैं. इन गीतों में प्राचीन समय का इतिहास, पराक्रमी वीरों की वंश गाथा एवं वंश उत्पत्ति का वर्णन होता है.

(11) चैती पसारा-पसाण चैत के महीने में औजी वादी मिरासी आदि जातियाँ दल बनाकर गाँवों में घर के सामने नाचती हैं.

(12) बसंती गीत-इन गीतों का मुख्य विषय लता, वृक्ष, फल, फूल एवं वन्य शोभा होती है.

(13) होरी गीत-होली के गीत नृत्यमय होते हैं जिसमें कृष्ण की लीलाओं का पुट स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है.

(14) बाजूबंद-प्रणय की मादक शैली बाजूवंद है.

(15) लामण-बाजूमंद की तरह लामण भी प्रेम गीत है. लामण में गीत का प्रेम से भरा कथानक होता है.

(16) छोपती-इसमें कई स्त्री-पुरुष मिलकर गोलाकार होकर प्रेम सम्बन्धी गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं. खाई- जौनसार में यह गीत शैली अधिक प्रचलित है.

(17) पटखाई में घूड़ा-घूड़ों में पर्याप्त जीवन दर्शन होता है. नीति गीत के रूप में भी इन गीतों को जाना जाता है.

(18) नौन्याली गीत-ये वच्चों के गीत होते हैं. बिविध लोक नृत्य गढ़वाल का प्रागैतिहासिक काल से भारतीय संस्कृति में अविस्मरणीय स्थान रहा है. यहाँ के जनजीवन में किसी-न- किसी रूप में सम्पूर्ण भारत के दर्शन सुलभ हैं. इस स्वस्थ भावना को जानने के लिए यहाँ के लोक नृत्य पवित्र साधन हैं. यहाँ के जनवासी अनेक अवसरों पर विविध प्रकार के लोक नृत्य का आनन्द उठाते हैं.