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उत्तराखण्ड में धार्मिक नृत्य/religious dance social dance in uttrakhand

  

Folk and Music in Uttrakhand 

धार्मिक नृत्य

    देवी-देवताओं से लेकर अंछरियों (अप्सराओं) और भूत- पिशाचों तक की पूजा धार्मिक नृत्यों के अभिनय द्वारा सम्पन्न की जाती है. इन नृत्यों में गीतों एवं वाद्य-यंत्रों के स्वरों द्वारा देवता विशेष पर अलौकिक कम्पन के रूप में होता है. कम्पन की चरमसीमा पर वह उठकर या वैठकर नृत्य करने लगता है, इसे देवता आना कहते हैं. जिस पर देवता आता है, वह 'पस्वा' कहलाता है. 'ढोल दभाऊँ ' के स्वरों में भी देवताओं  का नृत्य किया जाता है. धार्मिक नृत्य की चार अवस्थाएँ हैं-

(i) विशुद्ध देवी-देवताओं के नृत्य-ऐसे नृत्यों में 'जागर' लगते हैं. उनमें प्रत्येक देवता का आह्वान, ूजन एवं नृत्य होता है. ऐसे नृत्य यहाँ 40 से ऊपर हैं, यथा-निरंकार (विष्णु), नरसिंह (डीड्या), नागर्जा ( नागराजा-कृष्ण ), विनसर
(शिव) आदि.

(ii) देवता रूप में पाण्डवों का पण्डीं नृत्य-पाण्डवों की सम्पूर्ण कथा को वार्तारूप में गाकर विभिन्न शैलियों में नृत्य होता है. सम्पूर्ण उत्तरी पर्वतीय शैलियों में पाण्डव नृत्य किया जाता है. कुछ शैलियाँ इस प्रकार हैं-(क) कुन्ती बाजा नृत्य, (ख) युधिष्ठिर बाजा नृत्य, (ग) भीम बाजा नृत्य, (घ) अर्जुन बाजा नृत्य, (ङ) द्रौपदी वाजा नृत्य, (च) सहदेव वाजा नृत्य, (छ) नकुल वाजा नृत्य. (iii) मृत अशान्त आत्मा नृत्य-मृतक की आत्मा को शान्त करने के लिए अत्यन्त कारुणिक गीत 'रांसो' का गायन होता है और डमरू तथा थाली के स्वरों में नृत्य का वाजा बजाया जाता है. इस प्रकार के छः नृत्य हैं-चर्याभूत नृत्य, हन्त्या भूत नृत्य, व्यराल नृत्य, सैद नृत्य, घात नृत्य और छल्या भूत नृत्य.

(iv) रणभूत देवता-युद्ध में मरे वीर-योद्धा भी देव रूप में पूजे तथा नचाए जाते हैं. वहुत पहले कैंत्यूरों और राणा वीरों का घमासान युद्ध हुआ था. आज भी उन वीरों की अशान्त आत्मा उनके वंशजों के सिर पर आ जाती है. भण्डारी जाति पर कैंत्यूर वीर और रावत जाति पर राणारौत वीर आता है. आज भी दोनों जातियों के नृत्य में रणकौशल देखने योग्य होता है. रौतेली, भंती, पोखिरिगाल, कुमयाँ भूत और सुरजू कुँवर ऐसे वीर नृत्य धार्मिक नृत्यों में आते हैं.