उत्तराखण्ड का राज्य पशु-कस्तूरी मृग
- कस्तूरी मृग को हिमालय का मस्क डियर कहा जाता है
- कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगास्टर है
- कस्तूरी मृग राज्य के जंगलों में 3600मी० से 4400मी. की ऊँचाई पर पाए जाते है।
- राज्य में कस्तूरी मृग की 4 प्रजाति पायी जाती है।
- कस्तूरी मृग अंगुलोटा कुल व मोशिडे परिवार का सदस्य है।
- कस्तूरी मृग बहुतायत में केदारनाथ, फूलो की घाटी, पिथौरागढ व उत्तरकाशी में पाए जाते है।
- कस्तूरी मृग राज्य के अलावा हिमाचल प्रदेश, सिक्किम,कश्मीर में भी पाये जाते है।
कस्तूरी मृग की विशेषता-
- कस्तूरी मृग का रंग भूरा तथा उसमें काले-पीले रंग के धब्बे पाये जाते है।
- कस्तूरी मृग के पैर मे चार खुर, दो बाहर निकले नुकीले दांत और लगभग 20 इंच ऊँचाई होती है।
- कस्तूरी मृग के सींग नही होते है, आत्मरक्षा के लिए दो नुकीले दाँत होते है।
- कस्तूरी मृग के पीछे के पांव आगे के पांव की अपेक्षा लम्बे होते है
- कस्तूरी मृग की विशेषता यह है कि वह अपना निवास स्थान नहीं छोड़ता है।
- कस्तूरी मृग को जुगाली करने वाला मृग कहा जाता है
- कस्तूरी मृग की सूंघने की शक्ति तीक्ष्ण होती है
- मादा कस्तूरी मृग गर्भधारण अवधि 6 माह होती है।
- कस्तूरी मृग का मुख्य भोजन केदारपाती है।
- कस्तूरी नर मृग के गुदा में स्थित ग्रंथि से प्राप्त की जाती है।
- एक मृग से कस्तूरी 3-3 वर्ष के अंतराल में 30 से 45 ग्राम तक प्राप्त किया जा सकता है।
- कस्तूरी मृग की औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है
- कस्तूरी जो तीन प्रकार की होती है, नेपाल की कस्तूरी- कपिल
- कश्मीर की कस्तूरी पिंगल तथा सिक्किम की कस्तूरी कृष्ण होती है
- औषधि उद्योग में कस्तूरी का प्रयोग दमा, मिरगी, हृदय सम्बन्धी रोगो की दवाई बनाने में प्रयोग होता है
- रासायनिक रूप से कस्तूरी मिथाइल ट्राईक्लोरो पेंटाडेकेनाल है।
कस्तूरी मृग संरक्षण-
- कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए 1972 में केदारनाथ वन्य जीव विहार के अन्न्तगत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गयी
- महरूडी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना 1977 में की गई, जो बागेश्वर जिले में स्थित है
- सर्वाधिक मात्रा में कस्तूरी मृग अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण पिथौरागढ़ में पाये जाते है
- चमोली जिले के कॉँचुला खर्क में 1982 को कस्तूरी मृग प्रजनन व संरक्षण केन्द्र की स्थापना की गयी है।
- राज्य में 2005 तक 279 कस्तूरी मृग थे
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