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उत्तराखण्ड में कृषि एवं पशुपालन/Agriculture and Animal Husbandry in Uttarakhand

उत्तराखण्ड में कृषि एवं पशुपालन

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने भारत में सम्पूर्ण मृदा को आठ भागों में बांटा है
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर.) की स्थापना 16 जुलाई 1929 को हुयी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में है
  • पर्वतीय भागों में मृदा का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 के बीच होता है
  • भारत में सर्वाधिक जलोढ़ या दोमट मिट्टी पाई जाती है उत्तराखण्ड में जलोढ़ मिट्टी मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है, जिनमें बांगर पुरानी जलोढ व खादर नई जलोढ़ को कहा जाता है
  • दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी होती है
  • उत्तराखण्ड में पायी जाने वाली मिट्टियों को पर्वतीय मृदा के अंतर्गत रखा गया है
  • भारत में दूसरी सर्वाधिक मिट्टी लाल मिट्टी पाई जाती है, जबकि उत्तराखण्ड के संदर्भ में यह मिट्टी पर्वतीय ढालों में पाई जाती है
  • लाल मिट्टी का रंग लाल होने का कारण उसमें उपस्थित लौह ऑक्साइड होते हैं
  • भारत में तीसरी सर्वाधिक मात्रा में काली मिट्टी पाई जाती है, जिसे रेगुर मृदा भी कहा जाता है, काली मिट्टी को काली कपास की मिट्टी कहा जाता है
  • राज्य के तराई क्षेत्रों में दलदली मृदा पाई जाती है, जो गन्ने व धान के लिये उपयुक्त है राज्य की शिवालिक पहाडियों में टर्शियरी प्रकार की मिट्टी पाई। जाती है और भीमताल क्षेत्र में क्वार्टज व ज्वालामुखी निर्मित मिट्टी पायी जाती है

 उत्तराखण्ड राज्य में कृषि एवं फसलें

  • उत्तराखण्ड में लगभग 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है राज्य में नई कृषि नीति 2011 में जारी हुई
  • राज्य की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र से जुड़ी है 
  • पर्वतीय भागों में कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा अनुसार विभाजित किया जाता है 
  • पर्वतीय भागों में तीन प्रकार की कृषि पायी जाती है- 1. तलाँऊ, 2. उपराऊ 3. इजरान
  • ब्रिटिश काल के विकेट बंदोबस्त में पर्वतीय भूमि को पांच भागों में बांटा था- तलांऊ, उपरांऊ अव्वल, उपरांऊ दोयम, इजरान व कंटीली वह भूमि जहां सिंचाई की सर्वोतम व्यवस्था पायी जाती है, उसे तलांऊ भूमि कहा जाता है
  • उपरांऊ भूमि पर्वतीय क्षेत्रों के ऊपरी भागों में पाई जाती है, जहां सिंचाई सुविधा की कमी पाई जाती है
  • जंगलों के बीच पाई जाने वाली अपरिपक्व भूमि को इजरान कहा जाता है 
  • पर्वतीय भागों में गांवों के नजदीक पाई जाने वाली भूमि को घरया भूमि कहा जाता है
  • जंगलों के नजदीक जो भूमि लगी होती है, उसे बुण्या या वनीय भूमि कहा जाता है
  • समोच्च खेती को कण्टूर फार्मिक कहा जाता है, ऐसी खेती कम नमी वाली भूमि पर की जाती है 
  • अधिक ढालू भूमि पर की जाने वाली खेती को सीढीदार खेतीकहते हैं
  • पर्वतीय क्षेत्रों में 15 प्रतिशत तक की भूमि को ढालू बनाया जा सकता है.
  • झूमिंग खेती को स्थानांतरित कृषि कहा जाता है, इसके तहत किसी स्थानों पर वनों को साफ कर कृषि योग्य भूमि बनाई जाती है और तब तक कृषि की जाती है जब तक उसमें उर्वरता रहती है झूमिंग कृषि भारत के पूर्वोतर क्षेत्रों में प्रचलित है, उत्तराखण्ड की कुछ जनजातियां इस प्रकार की कृषि करती है

 उत्तराखण्ड राज्य की प्रमुख फसलें

  • राज्य में कुल क्षेत्रफल का लगभग 12.5 % भाग पर कृषि होती है गढ़वाल मंडल की अपेक्षा कुमाऊँ मंडल कृषि भूमि अधिक है गेहूँ राज्य की मुख्य फसल है, जो लगभग 33% भाग पर बोया जाता है
  • राज्य में सर्वाधिक गेहूँ उत्पादक जिला देहरादून है और दूसरा उधमसिंह नगर है राज्य की दूसरी प्रमुख फसल चावल है, जो लगभग 21.6 प्रतिशत भाग में बोई जाती है
  • सर्वाधिक चावल उत्पादक जिले क्रमशः देहरादून, ऊधम सिंह नगर व हरिद्वार है
  • राज्य में तीसरी मुख्य फसल गन्ना है, जो एक नकदी फसल है
  • सर्वाधिक गन्ना उत्पादक जिले ऊधमसिंह नगर दूसरा हरिद्वार है
  • राज्य की प्रमुख फसल क्रमश- गेहूँ, चावल, गन्ना व मंडुवा
  • राज्य में सर्वाधिक उत्पादक दलहनों में उड़द का होता है, इसके बाद क्रमशः गहत व राजमा का उत्पादन होता है राज्य में उत्पादित मंडुआ को स्थानीय भाषा में कोदा कहा जाता। है, जिसकी मांग जापान में बहुत अधिक है
  • मंडुआ उत्पादन में उत्तराखण्ड का देश में तीसरा स्थान है।
  • धान व मक्का राज्य की खरीफ ऋतु की फसल है राज्य में मोटे अनाजों में ज्वार व बाजरा उगाया जाता है.
  • राज्य में लघु मोटे अनाजों में मंडुवा, झंगोरा, कोदा आदि है राज्य में 11 तिलहनी फसलें पैदा होती है, जिनमें 9 किसानों द्वारा मौसमी फसलों के रूप में बोई जाती है
  • सूरजमुखी, भंगजीरा व तिल फसलें खरीफ की फसलें है

 उत्तराखण्ड राज्य की अन्य फसलें

  • राज्य में सबसे पहले सेब के बाग हर्षिल क्षेत्र में लगाए गए। राज्य में सर्वाधिक सेब का उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है, इसके बाद नैनीताल व देहरादून का स्थान आता है
  • 2004 में राज्य में रिकार्ड सेब का उत्पादन हुआ था
  • सेब उत्पादन में उत्तराखण्ड का देश में तीसरा स्थान है, जबकि दूसरा हिमाचल प्रदेश का है
  • राज्य में उत्पादित सेब दिल्ली में न्यूजीलैंड ब्रांड नाम से बिकता है, और अन्य स्थानों में हिमाचली सेब नाम से बिकता है
  • सर्वाधिक लीची उत्पादन मे देहरादून अग्रणी है, तथा देहरादून को लीची निर्यात जोन में रखा गया है, देहरादून के अलावा नैनीताल व ऊधम सिंह नगर में लीची का उत्पादन होता है 
  • देशी नागपुरी, लड्डू व एम्पदर सभी संतरे की प्रजाति है
  • देश में सर्वाधिक नाशपति का उत्पादन उत्तराखण्ड में होता है। राज्य में उत्पादित मुख्य सब्जी पहाड़ी आलू है 
  • उत्तरकाशी की रवाई घाटी लाल चावल के लिए प्रसिद्ध है
  • जखिया नामक खाद्य पदार्थ दाल में तड़के लगाने के काम आता है राज्य में कुल 49 फल संरक्षण केन्द्र व 95 राजकीय नर्सरी है

 उत्तराखण्ड राज्य में सिंचाई व्यवस्था

  • राज्य में बोये गए क्षेत्रफल का कुल सिंचित क्षेत्र 47.70 प्रतिशत है
  • राज्य के कुल सिंचित क्षेत्रफल का 61% नलकूप तथा 22 प्रतिशत क्षेत्र पर नहरों के माध्यम से सिंचाई होती है
  • सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल वाले जिले ऊधमसिंह नगर (97%), हरिद्वार (94%) नैनीताल (60% ) है
  • सबसे कम सिंचित क्षेत्रफल वाले जिले क्रमशः चमोली (4.45%),अल्मोडा (7.37%) व चम्पावत (9%)
  • राज्य में नलकूप सिंचित क्षेत्र वाले जिले क्रमशः- नगर, हरिद्वार व नैनीताल 
  • ऊधम सिंह राज्य में नहर सिंचित क्षेत्र वाले जिले क्रमश:- नैनीताल, देहरादून व हरिद्वार
  • राज्य में चाल-खाल योजना जल स्तर सुधार से सम्बन्धित है राज्य में सर्वाधिक शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल वाला जिला ऊधमसिंह नगर है
  • राज्य में सर्वाधिक परती भूमि क्षेत्रफल वाला जिला पौड़ी है
  • राज्य में सबसे कम परती भूमि वाला जिला रूद्रप्रयाग राज्य में सर्वाधिक चारागाही भूमि वाला जिला पिथौरागढ है
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