उत्तराखण्ड की भौगोलिक संरचना /Geography of Uttarakhand |
उत्तराखण्ड की भौगोलिक संरचना
- उत्तराखण्ड, भारत के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित राज्य है उत्तराखण्ड राज्य 28°43' से 31°27' उतरी अक्षांश में स्थित है राज्य का अक्षांशीय विस्तार 2'44' है राज्य 77'34' से 81°02' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है राज्य का देशान्तरीय विस्तार 3°28' है
- उत्तराखण्ड राज्य का आकार लगभग आयताकार है
- पूर्व से पश्चिम तक राज्य की कुल लम्बाई 358 किमी0 है
- उत्तर से दक्षिण राज्य की कुल चौड़ाई 320 किमी0 है
- उत्तराखण्ड राज्य का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किमी० है जो लगभग क्रोएशिया देश के क्षेत्रफल के बराबर है
- उत्तराखण्ड राज्य का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 1.69% है •
- क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य का देश में 18 वां स्थान है और केन्द्रशासित प्रदेशों को मिलाकर 20वां स्थान है
- राज्य के कुल क्षेत्रफल का 86.07% पर्वतीय क्षेत्र है, जो 46,035 वर्ग किमी है
- राज्य के कुल क्षेत्रफल का 13.93% मैदानी भाग है, जो कि 7448 वर्ग किमी है
उत्तराखण्ड राज्य की सीमाएं
- राज्य के उत्तर में वृहत हिमालय व दक्षिण पश्चिम में शिवालिक श्रेणी व दक्षिण-पूर्व में तराई क्षेत्र स्थित है
- राज्य की पूर्वी सीमा काली नदी द्वारा निर्धारित होती है, और पश्चिमी सीमा टौंस नदी द्वारा निर्धारित होती है
- पूर्व में नेपाल के साथ उत्तराखण्ड के तीन जनपदों की सीमाएं हैं जो इस प्रकार हैं पिथौरागढ़, चम्पावत व ऊधम सिंह नगर है उत्तराखण्ड के उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश की सीमाएं दो। जनपदों से लगती है, देहरादून और उत्तरकाशी राज्य के उत्तर में हिमालय पार तिब्बत, एवं चीन स्थित है जिनसे राज्य के तीन जनपद पिथौरागढ़ चमोली व उतरकाशी की सीमाएं लगती है,
- राज्य से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की कुल लम्बाई 625 किमी० है राज्य की कुल 275 किमी० सीमा नेपाल से लगती हैं।
- राज्य की 350 किमी० की सीमा चीन देश से लगती है।
- हिमाचल प्रदेश के सिरामपुर, शिमला व किन्नौर जनपदों की सीमांए उत्तराखण्ड़ से लगती है (तीन जनपद)\
- उत्तरप्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली व पीलीभीत 7 जिले की सीमाएं उत्तराखण्ड राज्य से लगती हैं
- सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, व बिजनौर जिले की सीमाएं हरिद्वार से लगती है
- देहरादून से केवल सहारनपुर जनपद की सीमा लगती है
- पौड़ी, नैनीताल जिले से केवल बिजनौर जनपद की सीमा लगती है
- उत्तरप्रदेश से लगने वाले राज्य के पाँच जनपद पूर्व से पश्चिम क्रमशः ऊधम सिंह नगर, नैनीताल, पौडी, हरिद्वार व देहरादून है - पिथौरागढ़ एक मात्र जिला जिसकी सीमाएं दो देशों से लगती है
- राज्य में सर्वाधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा वाला जिला पिथौरागढ़ है।
उत्तराखण्ड राज्य की आंतरिक सीमांए
- उत्तराखण्ड दो मण्डल और 13 जनपद हैं
- राज्य में पहाड़ी जनपद 11 हैं और दो जनपद मैदानी हैं
- 4 आंतरिक जिलों में टिहरी, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर व अल्मोंडा है
- गढ़वाल मंडल व कुमाऊँ मंडल के दो-दो जिले आंतरिक जिले है
- गढ़वाल मंडल की सीमा से कुमाऊँ मंडल के चार जनपद लगते है
- गढ़वाल मंडल के दो जिले चमोली व पौडी कुमाऊँ मंडल से लगते हैं
- चमोली जिले से कुमाऊँ मंडल के तीन जनपद लगते है
- सर्वाधिक 7 जिलों की सीमाएं पौड़ी जिले से लगती है,
- चमोली व अल्मोड़ा जिले से 6-6 जिलों की सीमाएं लगती है
- सन् 2000 में उत्तराखण्ड देश का 11 वां हिमालय राज्य बना
उत्तराखण्ड का भौगोलिक विभाजन
- उत्तराखण्ड राज्य को 8 भौगोलिक प्रदेशों में बांटा गया है
- ट्रांस हिमालयी क्षेत्र ट्रांस हिमालय क्षेत्र उसे कहते हैं जिसका उद्भव हिमालय से पहले हुआ है
- ट्रांस हिमालय को तिब्बती हिमालय या टेथिस हिमालय भी कहा जाता है
- राज्य में ट्रांस हिमालय क्षेत्र के अन्तर्गत जैक्सर श्रेणी आती है
- उत्तराखण्ड के माणा, नीति, किंगरी-बिंगरी तथा लिपुलेख दर्रा ट्रांस हिमालय क्षेत्र में पाये जाते है।
- भारत में ट्रांस हिमालय के अन्तर्गत कारकोरम, कैलास व भारत की सबसे ऊँची चोटी गॉडविन ऑस्टिन के-2 कारकोरम लद्दाख श्रेणी आती है
- श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी है ट्रांस हिमालय अवसादी चट्टानों से मिलकर बना हुआ है ट्रांस हिमालय श्रेणी सतलुज, ब्रहापुत्र व सिंधु जैसी पूर्ववर्ती नदी को जन्म देती है
- सच्चर जोन या हिन्ज लाईन के द्वारा ट्रांस हिमालय से ग्रेटर हिमालय या वृहत हिमालय अलग होता है।
उत्तराखण्ड का ग्रेटर हिमालय या वृहत हिमालय
- राज्य में वृहत हिमालय क्षेत्र के पर्वतों की ऊँचाई 4500 मी0 से 7817 मी0 तक है
- वृहत हिमालय को हिमाद्री या उच्च हिमालय भी कहा जाता है। राज्य में वृहत हिमालय की सर्वोच्च चोटी नंदादेवी है
- राज्य में वृहत हिमालय श्रेणी पूर्व से पश्चिम की ओर तक लगभग 6 जिलों में फैली हुयी है
- वृहत हिमालय के निचले भागों में छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते है, जिन्हें बुग्याल या पयार कहा जाता है
- राज्य में सबसे कम वर्षा वृहत हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में 40 से 80 सेमी तक होती है
- 4200 मी0 से अधिक ऊँचाई पर हिमानी जलवायु पायी जाती है
- उच्च हिमालय क्षेत्रों में स्थायी हिमरेखा 4000 मी0 की ऊचाई तक पायी जाती है
- वृहत हिमालय का मूल निवासी भोटिया लोगों को कहा जाता है
- सर्वाधिक जनसंख्या महाहिमालय में भोटिया लोगों की है, क्योंकि इनमें ऋतु प्रवास पाया जाता है
- राज्य में पाए जाने वाले हिमनद जैसे गंगोत्री, मिलम आदि वृहत हिमालय क्षेत्र में आते है
- वृहत हिमालय, मध्य हिमालय से मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट या केन्द्रीय भ्रंश रेखा के द्वारा अलग होती है.
उत्तराखण्ड का लघु या मध्य हिमालय क्षेत्र
- मध्य हिमालय की औसत ऊँचाई लगभग 1800 से 3000 मी0 है राज्य में मध्य हिमालय क्षेत्र की ऊँचाई 1200-4500 मी0 तक है राज्य के पूर्वी छोर चंपावत से लेकर पश्चिमी छोर देहरादून तक 9 जिलों में मध्य हिमालय श्रेणी फैली हुयी है
- मसूरी, देवबन, रानीखेत, दूधातोली, बिनसर व द्रोणगिरी मध्य हिमालय की श्रेणियां है
- मध्य हिमालय श्रेणी में जीवाश्म का अभाव पाया जाता है।
- मध्य हिमालय से नयारनदी, व सरयू नदी, पश्चिमी रामगंगा व लधिया नदी निकलती है नैनीताल में पाए जाने वाले अनेक ताल जैसे सातताल, नौकुचिया ताल आदि मध्य हिमालय क्षेत्र में फैले है
- 1800 मी0 से 3000 मी0 तक की ऊँचाई पर शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है, शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में कोणधारी वन पाए जाते है कोणधारी वन का प्रमुख वृक्ष चीड़ है।
- मध्य हिमालय के पर्वतीय ढालों पर घास के मैदान पाये जाते है जिन्हे बुग्याल कहा जाता है। कश्मीर में घास के मैदानों को मर्ग कहा जाता है, जहाँ गुलमर्ग,सोनमर्ग व टर्नमर्ग घास के मैदान मिलते हैं
- हिमाचल प्रदेश के कुल्लु में घास के मैदानों को थच कहा जाता बुग्यालों या पयारों को पशुचारको का स्वर्ग कहा जाता है। बुग्यालों में अल्पाइन प्रकार की जलवायु पायी जाती है राज्य में 2900 से 3500 मी० की ऊँचाई पर एल्पाइन वन पाए जाते है
- मध्य हिमालय की धौलधर श्रेणी पर शिमला बसा हुआ है मध्य हिमालय की पीरपंजाल श्रेणी का विस्तार जम्मू-कश्मीर में है। मध्य हिमालय व शिवालिक हिमालय के बीच मेन सीमांत दरार या मेन बॉन्ड्री फॉल्ट पायी जाती है।
- उत्तराखण्ड का पामीर- दूधातोली श्रृंखला दूधातोली शृंखला राज्य के मध्य या लघु हिमालय क्षेत्र के अन्तर्गत पडती है
- दूधातोली शृंखला अल्मोड़ा, चमोली व पौड़ी जिलों में फैली हुयी है
- दूधातोली श्रृंखला से पांच नदियों का उद्गम होता है, जो पश्चिमी रामगंगा, आटागाड़, वूनों और पश्चिमी नयार व पूर्वी नयार है दूधातोली श्रृंखला के तली पर दुग्ध ताल स्थित है
- दूधातोली क्षेत्र के आसपास कोदियाबगढ में वीरचंद्र सिह गढ़वाली की समाधि है
उत्तराखण्ड का दून या द्वार क्षेत्र
- मध्य हिमालय व शिवालिक श्रेणी के बीच पायी जाने वाली क्षैतिज व चौरस घाटियों को दून कहा जाता है
- पूर्वोत्तर भाग में दून घाटियों को द्वार कहा जाता है दून घाटियों की औसत ऊँचाई 350 मी से 750 मी तक होती है राज्य का सबसे बड़ा दून देहरादून है, जिसकी लम्बाई 75 किमी व चौडाई 24 से 32 किमी तक है
- पतली तथा कोटा नामक दून (द्वार) नैनीताल जिले में स्थित है पतली दून नैनीताल के कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान के बीच में स्थित है
- कोठारी व चौखम नामक दून पौड़ी गढ़वाल में स्थित है।
- दून घाटियों में मानव जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां है, जिस कारण इस क्षेत्र में अधिकतम जनसंख्या निवास करती है
- दून घाटी क्षेत्रों में उपोष्ण प्रकार की जलवायु पायी जाती है
- सर्वाधिक भूस्खलन की घटनाएं दून क्षेत्रों में मध्य हिमालय से होती है।
उत्तराखण्ड का शिवालिक क्षेत्र -
- शिवालिक को बाह्य हिमालय या हिमालय का पाद है
- शिवालिक, हिमालय की नवीनतम श्रेणी है, नवीन होने के कारण इसमें जीवाश्म पाया जाता है
- शिवालिक श्रेणी का प्राचीनतम नाम मैनाक पर्वत है
- शिवालिक शब्द का अर्थ शिव की भौंहे है
- शिवालिक श्रेणी की औसत ऊँचाई 700मी. 1200 मी0 तक है
- शिवालिक क्षेत्र में भूस्खलन व कटाव के कारण गहरी घाटियां पाई जाती है
- राज्य में सर्वाधिक वर्षा शिवालिक हिमालय क्षेत्र में होती है, यहाँ 200 से 250 सेमी. तक वर्षा होती है।
- राज्य के सर्वाधिक पर्यटन केन्द्र शिवालिक क्षेत्र में पाए जाते है खनिज की दृष्टि से राज्य का शिवालिक क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है
- शिवालिक श्रेणी मध्य हिमालय से वृहत सीमांत दरार या ग्रेट बान्ड्री फाल्ट द्वारा अलग होती है।
- शिवालिक क्षेत्रों में गर्म शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है
उत्तराखण्ड का भाबर क्षेत्र
- शिवालिक के दक्षिण में स्थित भाबर क्षेत्र की भूमि ऊबड़-खाबड़ व मिट्टी कंकड़, पत्थर व मोटे बालू युक्त होती है
- भाबर क्षेत्र में नदियों का जल अदृश्य होकर नीचे बहता है भाबर क्षेत्र में उपोष्ण प्रकार की जलवायु पाई जाती है
उत्तराखण्ड का तराई क्षेत्र
- तराई क्षेत्र का निर्माण महीन कणों वाली अवसादी चट्टानों से हुआ • तराई क्षेत्र में दलदली प्रकार की मिट्टी पाई जाती है
- तराई क्षेत्र में पाताल तोड़ कुंए पाए जाते है
- राज्य के पौडी व नैनीताल जिले के दक्षिणी क्षेत्र और ऊधम सिंह नगर जिले का अधिकांश क्षेत्र को तराई कहा जाता है
- ऊधम सिंह नगर जिले में बाजपुर, रूद्रपुर, खटीमा, किच्छा व सितारगंज क्षेत्र तराई क्षेत्र में पड़ते है राज्य के तराई क्षेत्र में बंगाली, हरियाणी व पंजाबी लोग भी वास करते है
- दलदली मिट्टी होने के कारण यहां धान व गन्ना की उत्पादकता अधिक होती है
- अप्रैल माह के तराई क्षेत्र में सूरजमुखी का फूल खिलने की अवस्था में होता है।
- तराई क्षेत्र में उपोष्ण प्रकार की जलवायु मिलती है 8. गंगा का मैदानी क्षेत्र
- राज्य के हरिद्वार जिले का अधिकांश भाग गंगा के मैदानी क्षेत्र का हिस्सा है
- मैदानी भूमि जहाँ तक बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है, उसे बांगर या पुरानी जलोढ़ कहा जाता है
- वह क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुँचता है, उसे खादर या नई जलोढ़ कहते है
उत्तराखण्ड राज्य में प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं
- विशिष्ट भौगोलिक संरचना के कारण राज्य को प्राकृतिक
- आपदाओं का सामना करना पड़ता है, राज्य की प्रमुख आपदाओं में भूकम्प, भूस्खलन, अतिवृष्टि आदि प्रमुख है
- राज्य में सबसे बड़ी आपदा 16-17 जून 2013 को मंदाकिनी नदी में आई जिसे केदारनाथ त्रासदी के नाम से जाना जाता है
- केदारनाथ आपदा में सेना ने ऑपरेशन सूर्याहोप के तहत राहत अभियान चलाया
- सेना के राहत अभियान में स्थानीय नागरिक योगेन्द्र राणा ने सेना की मदद की
भूकम्प -
- राज्य में भूकम्प का सर्वाधिक असर पड़ता है
- भारत को भूकम्प की दृष्टि से पाँच जोनों में बांटा गया है। उत्तराखण्ड को भूकम्प दृष्टि से जोन- 4 व 5 में रखा गया है।
- जोन-4 के अन्तर्गत राज्य के आने वाले जिले देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर आते है
- जोन-5 के अन्तर्गत राज्य के आने वाले जिले चमोली, रूद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ व चंपावत है राज्य में भूकम्प तीव्रता मापने के लिए भूकम्पमापी स्टेशन बनाये गये हैं जो देहरादून, टिहरी व गरुड़गंगा में स्थापित है
- पर्यावरण विद्धो का मानना है कि मुख्य केन्द्रीय भ्रंश रेखा टिहरी बांध के नीचे से होकर जाती है, इस लिये सुन्दर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध भी किया था
- भारत के कुल भूकम्पों में कुल 68 प्रतिशत भूकम्प हिमालय क्षेत्रों में आते है
उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन
- प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए राज्य सरकार आस्ट्रेलिया मॉडल पर आपदा प्रबंधन मंत्रालय का गठन किया गया
- आपदा प्रबंधन के लिए राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केन्द्र और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया राज्य में राज्य स्तरीय आपदा प्रबंधन का आपातकालीन नम्बर 1070 है
- राज्य के जनपद स्तरीय आपदा प्रबंधन का आपातकालीन नम्बर 1077 है जुलाई 2013 से राज्य सरकार ने नदी तटों के किनारे 200 मी0 तक की दूरी पर निर्माण कार्य में रोक लगा दी है
- 9 अक्टूबर 2013 को राज्य में N.D.R.F के तर्ज पर S.D.R.F का गठन किया गया है
उत्तराखण्ड वन रिपोर्ट
- राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन क्षेत्रफल होना चाहिए
- इस नीति के अनुसार पर्वतीय क्षेत्र में 60 प्रतिशत वन और
- मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत वन आवश्यक है
- ब्रिटिश काल में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति 1894 को जारी की गई
- स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति 1952 को जारी हुई थी
- भारतीय वन सर्वेक्षण की स्थापना 1जून 1981 में हुयी जिसका मुख्यालय देहरादून में है
- भारतीय वन सर्वेक्षण 1987 से द्विवार्षिक रिपोर्ट जारी करता है।
- भारत के कुल क्षेत्रफल का 24.39 प्रतिशत भाग पर वन व वृक्ष आच्छादन है
- भारत में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला राज्य मध्यप्रदेश है
- प्रतिशत की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्रफल मिजोरम में है
- भारतीय वन अधिनियम 1927 में पारित हुआ था
- वन संरक्षण अधिनियम 1980 में पारित हुआ
- ट्री प्रोटेक्शन एक्ट 1976 में पारित हुआ था
- उत्तराखण्ड 16वीं वन रिपोर्ट 2019 उत्तराखण्ड में कुल वन क्षेत्रफल 24,303 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 45.44% है जबकि देश के कुल वन का 3.4% वन राज्य में पाया जाता है
- उत्तराखण्ड में 16 वीं वन रिर्पोट के अनुसार राज्य में 8 वर्ग किमी० वन क्षेत्रफल में वृद्धि हुयी है
- राज्य में कुल वृक्ष आच्छादन 841 वर्ग किमी0 है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 1.57% है जिसमें 74 वर्ग किमी0 की वृद्धि हुयी है 16 वीं रिपोर्ट अनुसार राज्य का 47.86 प्रतिशत (25144वर्ग किमी०) भाग पर वन व वृक्ष आच्छादन है
- 16वीं रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक वन क्षेत्रफल में वृद्धि उत्तरकाशी के जिले में हुयी और सर्वाधिक कमी नैनीताल जनपद में हुयी है
उत्तराखण्ड राज्य में वन विभाजन
- राज्य के 5046 वर्ग किमी० भाग पर अति सघन वन पाए जाते है राज्य में सर्वाधिक अतिसघन वन नैनीताल उसके बाद देहरादून में पाये जाते हैं
- राज्य में कुल वन 12805 वर्ग किमी0 52.68% भाग पर मध्यम सघन वन है
- सर्वाधिक मध्यम सघन वन पौड़ी जिले में है, इसके बाद क्रमशः उत्तरकाशी व नैनीताल में है
- राज्य में 6451 वर्ग किमी० भाग पर खुले वन है राज्य में सर्वाधिक खुले वन पौड़ी जिले में है, इसके बाद क्रमशः चमोली व उत्तरकाशी में है
- राज्य में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल पौडी जिले में है राज्य में सबसे कम वन क्षेत्रफल ऊधम सिंह नगर जिले में पाया जाता है राज्य में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला जिले क्रमशः पौडी, नैनीताल, उत्तरकाशी व चमोली हैं
- प्रतिशत की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला जिला नैनीताल है, जबकि सबसे कम ऊधमसिंह नगर है।
- सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले जिले क्रमशः - नैनीताल, चम्पावत, पौड़ी व बागेश्वर है
- राज्य में सर्वाधिक झाड़ी टिहरी जिले में पाई जाती है।
- राज्य के कुल वन क्षेत्रफल का 60 प्रतिशत गढ़वाल मंडल में पाया। जाता है
- राज्य में सर्वाधिक प्रतिशत वन क्षेत्र टोंस नदी बेसिन क्षेत्र में पाया जाता है, इसके बाद क्रमशः कोसी व यमुना नदी है
- राज्य में रिकार्डेड वन रिपोर्ट-2019 रिकार्डेड वन वह क्षेत्र होता है जिसे राज्य सरकार संरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर चुकी है
- राज्य में रिकार्डेड वन क्षेत्रफल 38000 वर्ग किमी है, जो राज्य कुल क्षेत्रफल का 71.05 प्रतिशत है
- रिकार्डेड वन के अन्तर्गत आरक्षित वन, संरक्षित वन आदि आते है
- राज्य में वनों का प्रबंधन चार प्रकार से होता है
- राज्य के कुल वन का 68% वन वन विभाग के अधीन आते है
- राज्य के कुल वन का 12.55 % वन राजस्व विभाग के अधीन आते है राज्य के कुल वन का 18.98% वन वन पंचायत के अधीन आते है राज्य के कुल वन का 0.42% वन निजी या नगर प्रशासन के अधीन आता है
- वनो के प्रशासन की छोटी ईकाई बीट कहलाती है, जो वन रक्षक के अधीन होती है, कुछ बीटों को मिलाकर सेक्शन बनता है, जो वन दरोगा या फोरिस्टर के अधीन होता है, सेक्शन को मिलाकर रेंन्ज बनती है, रेंन्ज वन अधिकारी या रेंजर के अधीन आते है
- रैंन्जों को मिलाकर उप वन प्रभाग बनता है, जो प्रांतीय वन सेवा अधिकारी के अधीन होता है, जिसे सहायक वन संरक्षक कहते है
- उप वन प्रभागों से मिलकर वन प्रभाग बनता है, जो भारतीय वन सेवा के उप वन संरक्षक अधिकारी के अधीन होता है कुछ वन प्रभागों से मिलकर वृत तथा कुछ वृतों से मिलकर एक मंडल बनता है
उत्तराखण्ड वन विभाग
- उत्तराखण्ड वन विभाग का मुख्यालय देहरादून के राजपुर रोड़ पर स्थित है
- उत्तराखण्ड वन विभाग का वानिकी प्रशिक्षण अकादमी हल्द्वानी में स्थित है
- वन विभाग का चिकित्सालय हल्द्वानी में स्थित है
- उत्तराखण्ड वन विकास निगम वन विकास निगम का कार्य वैज्ञानिक पद्धति से वनों का विदोहन कर विक्रय करना है वन विकास निगम का शिविर कार्यालय देहरादून में है
- उत्तरप्रदेश वन निगम अधिनियम 1974 में पारित हुआ था
- उत्तरप्रदेश वन निगम अधिनियम संशोधन या उत्तराचंल अधिनियम 2001 में पारित हुआ
- 17 मई 2001 को उत्तरांचल वन अधिनियम को स्वीकृति प्राप्त हुयी उत्तराखण्ड वन विकास निगम की स्थापना 1 अप्रैल 2001 में हुयी
उत्तराखण्ड में वन रिपोर्ट- 2019
वनों के प्रकार
- राज्य में 1000 2000मी की ऊँचाई पर सर्वाधिक 41 प्रतिशत वन पाए जाते है
- 2000 से 3000 मी0 की ऊँचाई पर 23.76% वन पाए जाते है
- राज्य में सबसे कम वन 3000मी. से अधिक ऊँचाई में पाए जाते हैं, उपोष्ण कटिबन्धीय वन राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में 1200 मी ऊँचाई तक पाए जाते है, जबकि निचले क्षेत्रों में 750 मी ऊँचाई तक पाए जाते है
- उपोष्ण कटिबंधीय वनों में प्रमुख वृक्ष साल है, इसके अलावा हल्दू बांस, खैर आदि हैं
- उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन 1500 मी तक ऊँचाई में कम वर्षा वाले स्थानों में पाए जाते है, जिनमें प्रमुख ढाक, जामुन आदि है उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पतझड़ वन को मानसूनी वन भी कहते है। ऐसे वन शिवालिक व दून घाटियों में पाए जाते है, इनमें प्रमुख सागौन, साल, शहतूत आदि है
- कोणधारी वन जो राज्य में 900-1800मी0 तक ऊँचाई में मिलते है, इन वनों की यह विशेषता है इनकी पतियां नुकीली होती है राज्य में कोणधारी वन का प्रमुख वृक्ष चीड़ है (पाइन)
- चिलगोजा व लीसा चीड़ (पाइन) वृक्ष से प्राप्त होता है
- शीतोष्ण कटिबंधीय वन 1800 से 2700 मी ऊँचाई तक मिलते है। इनमें प्रमुख वृक्ष ओक, सिलवर स्प्रूस आदि आते है
- राज्य में ओक की तीन प्रजाति है- 1. बांज, 2. मोरू व 3. खिर्स् है अल्पाइन वन जो 2700मी0 से अधिक ऊँचाई में पाए जाते है, इनमें
- प्रमुख देवदार, बुरांस, बर्च आदि है अल्पाइन झाड़ियाँ जो 2900मी0 से 3500मी0 की ऊँचाई में पायी जाती है, इनमें प्रमुख विलो व जूनिपर है।
- ऊँचाई के क्रम में बढ़ते हुए वन-साल, सागौन, चीड़, देवदार,भोजपत्र है।
- भोजपत्र राज्य के हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है, जिसे बर्च भी कहा जाता है उत्तराखण्ड में 8 प्रकार वन और 112 प्रकार वृक्षों की प्रजातियां पायी जाती हैं, रिपोर्ट 2019 के अनुसार राज्य में 12167 वन पंचायते हैं ।
बांज वृक्ष
- उत्तराखण्ड का वरदान बांज वृक्ष को कहा जाता है विश्व में बांज की 40 प्रजाति पाई जाती है उत्तराखण्ड में बांज की पाँच प्रजातियां पायी जाती है
- बांज एक प्रकार का शीतोष्ण कटिबंधीय पौधा है
- बांज वृक्ष को राज्य में शिव की जटा भी कहा जाता है।
- बांज वृक्ष का वैज्ञानिक नाम क्वरकस ल्यूकोटोकोफरा है
- सफेद बांज पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्ष है
राज्य में अन्य वृक्ष -
- राज्य में स्थित चीड़ वृक्ष से तारपीन का तेल बनाया जाता है
- राज्य में स्थित खैर वृक्ष से कत्था बनाया जाता है
- राज्य में विलों की लकड़ी से क्रिकेट के बल्ले बनाए जाते है।
- राज्य में भोजपत्र के तने से कागज बनाए जाते है देवदार वृक्ष से सुगंधित तेल व फर्नीचर बनाए जाते है
- बुरांस व ढाक के वृक्षो सें रंग बनाए जाते है
- स्प्रूस के वृक्ष से पैकिंग डिब्बे बनाए जाते है प्रदेश में सबसे अधिक वृक्ष चीड़ व उसके बाद साल के है
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