उत्तराखण्ड के प्रमुख मन्दिर
केदारनाथ मंदिर
- महाभारत के वन पर्व में केदारनाथ को भृंगतुंग कहा गया है भगवान शिव का यह मन्दिर रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है शिव के 12 ज्योर्तिलिगों में एक केदारनाथ है यहां भगवान शिव के पिछले भाग की पूजा होती है
- केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्वार आदि गुरू शंकराचार्य ने कराया नयनार संत शैव धर्म प्रचारक थे, जिनकी संख्या
- 63 बताई गयी पांच शिव तीथ-पशुपति नाथ नेपाल में, दूसरा कुमाऊँ में जागेश्वर, तीसरा गढ़वाल में केदारनाथ, चौथा हिमाचल प्रदेश में बैजनाथ तथा पाँचवा तीर्थ कश्मीर के अमरनाथ में है
- केदारनाथ भगवान के रक्षक भैरव देवता हैं
- केदार नाथ भगवान की पूजा ब्रहमकमल पुष्पों से की जाती है
- केदारनाथ मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्रतल से 3584मी. ऊँचाई पर स्थित है
- केदारनाथ का मंदिर खर्चाखंड, भरतखंड व केदारनाथ शिखरों के मध्य स्थित है
- केदारनाथ मंदिर समिति का मुख्यालय ऊखीमठ में है
- मंदिर समिति का गठन 1948 ई० में हुआ, ब्रिटिश काल में बदरीनाथ व केदारनाथ मंदिर अधिनियम 1939 ई0 में पारित हुआ
केदारनाथ धाम विशेषताएं
- केदारनाथ मन्दिर कत्यूरी शैली का है, मंदिर निर्माण में भूरे रंग के पत्थरों का प्रयोग हुआ है, मंदिर के गर्भगृह में त्रिकोण आकृति की ग्रेनाइट शिला है जिसकी पूजा भक्त गण करते हैं केदारनाथ में भगवान शिव की पाँच मुख वाली प्रतिमा है केदार नाथ मंदिर 6 फीट ऊँचे चबूतरे पर बना है
- इस मंदिर के प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान है केदारनाथ मंदिर के पुजारियों को रावल कहा जाता है, जो मैसूर के जंगम ब्राह्मण होते है, जिनका निवास स्थल ऊखीमठ है मंदिर के कपाट खुलने की तिथि महाशिवरात्री पर्व पर घोषित की जाती है, भैयादूज (दीपावली) के दिन कपाट बंद होने की परम्परा है केदारनाथ में अन्नकूट उत्सव या भतूज उत्सव मनाया जाता है
- केदारनाथ मंदिर के कपाट अक्टूबर-नवम्बर माह में बंद होते है शरद ऋतु में भगवान केदारनाथ का निवास स्थान ऊखीमठ के ओंकारेश्वर शिव मंदिर में है
- 18 वीं शताब्दी में रानी अहिल्या बाई होल्कर ने केदारनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया था
केदारनाथ धाम में दर्शनीय स्थल
- केदारनाथ में मिलने वाले कुण्डो में प्रमुख शिव कुण्ड हैं, यहां लाल पानी वाला रूधिर कुंण्ड भी है • मंदिर के पृष्ठ भाग में अमृत कुण्ड, पूर्वी भाग में रेतस व हंस कुंड हैऔर मंदिर के सामने छोटे मंदिर में उदक कुंड है मंदिर से कुछ दूरी पर महाशिला है जिसे स्थानीय भाषा में भैरो झाप कहते है यहीं निकट ही गांधी सरोवर तथा बासुकीताल है
- आदि गुरू शंकराचार्य का समाधि स्थल केदारनाथ के पास
- स्थित है। केदारपुरी में फलहारी बाबा का समाधि स्थल है
बद्रीनाथ मंदिर
- बद्रीनाथ को विशाल बदरी भी कहा जाता है जो भारत के चार धामों में से एक है, यह चमोली जिले में स्थित है बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा होती है पुराणों में बद्रीनाथ को योगसिद्धा, मुक्तिप्रदा, बद्रीकाश्रम व विशाला कहा गया
- सतयुग में बद्रीनाथ क्षेत्र को मुक्तिप्रदा कहा जाता था अलवार संत वैष्णव धर्म से सम्बन्धित है, जिनकी संख्या 12 थी
- बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3133 मी0 ऊँचाई पर स्थित है बद्रीनाथ मंदिर पार्श्व में नर (अर्जुन) व नारायण (विष्णु) नामक दो पर्वत श्रेणियां है
- बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है
- बद्रीनाथ मंदिर का पुर्नर्निमाण अजयपाल के समय हुआ
- बद्रीनाथ का पूर्ण भव्य मंदिर बनाने का श्रेय कत्यूरी शासकों को जाता है
- अजयपाल के बाद मंदिर का जीर्णोद्वार ग्वालियर नरेश दौलत राव सिंधिया ने किया भगवान बद्रीनाथ के रक्षक देवता क्षेत्रपाल हैं बद्रीनाथ मंदिर के लिए भूमि दान पद्मदेव नामक व्यक्ति ने की।
- मन्दिर का निर्माण ललित शूरदेव के समय में हुआ था।
बद्रीनाथ धाम विशेषताएं
- मंदिर का सबसे पुराना भाग गर्भगृह है मंदिर के अन्दर 15 मूर्तियाँ स्थापित है
- गर्भगृह में भगवान की 1मी0 लम्बी मूर्ति शालीग्राम की बनी है।
- बद्रीनाथ मंदिर में पूजा के लिए केरल से अर्चक नारियल व सुपारी और कर्नाटक का चंदन आता है
- बद्रीनाथ भगवान को भात का भोग चढ़ाया जाता है।
- धनुषाकार है, इसलिये मंदिर शंकुधारी शैली की तरह है बद्रीनाथ मंदिर की ऊँचाई लगभग 15 मी है बद्रीनाथ मंदिर में रावल पुजारियों द्वारा पूजा की जाती है, रावल
- शंकराचार्य के वंशज हैं, रावल केरल में नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण हैं
- शिव प्रसाद डबराल अनुसार 1443 ई0 से 1776 ई0 तक मंदिर के पुजारी दण्डी स्वामी होते थे, दण्डी शंकराचार्य के वह अनुयायी थे परन्तु यह ब्राह्मण नहीं थे।
- 1776 ई0 में गढ़नरेश ने रावल पद नम्बूरी ब्राहाण को दिया।
- बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने का समय बंसत पंचमी के दिन निश्चित होता है
- बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अक्सर अप्रैल-मई महीने में खुलते है
- बद्रीनाथ मंदिर की मुख्य प्रतिमा खंडित रूप में काले रंग की है जिसे शंकराचार्य ने नारद कुंड से निकाला था
- शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में होती है।
- राज्य में सर्वाधिक तीर्थ यात्री बद्रीनाथ धाम में आते है
- बद्रीनाथ में कढ़ाई उत्सव मनाया जाता है
- बद्रीनाथ धाम में प्रसिद्ध स्थल बद्रीनाथ में तप्त कुण्ड में गर्म जल का कुण्ड है
- बद्रीनाथ के पास ब्रहमकपाली में जहां हिन्दू धर्म के लोग पितरों को पिंड अर्पित करते हैं।
- पंच कुंड- तप्त, नारद, मानुषी, त्रिकोण, सत्यपथ कुंड, पांच शिलाएं नृसिंह, नारद, गरूड़, ब्रह्मकपाल व मार्कंडेय शिला पांच धाराएं- कुर्म, इन्दु, उर्वशी, भृगु व प्रहलाद धारा
- बद्रीनाथ के पास तीन गुफाएं- स्कन्द, गरूड व राम गुफा
- बद्रीनाथ के पास माणा में मुचकंद, व्यास व गणेश गुफा स्थित है
- चरणपादुका नामक स्थल बद्रीनाथ के पास स्थित है।
गंगोत्री मंदिर
- उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर मां गंगा का मंदिर है, .जिसे भागीरथी का मंदिर भी कहते है इस मंदिर में गंगा, लक्ष्मी, पार्वती व अन्नपूर्णा देवी की मूर्तियाँ हैं
- गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 1807 ई० में करवाया था और पुनरूद्धवार जयपुर के राजा माधो सिंह ने 1935 ई0 में किया था
- गंगोत्री मंदिर निर्माण कत्यूरी शिखर छत्र पैगोड़ा शैली में हुआ है
- यह मंदिर निर्माण में सफेद ग्रेनाइट का प्रयोग हुआ है
- गंगोत्री समुद्र तल से 3048 मी0 की ऊँचाई पर स्थित है मंदिर कपाट प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया को खुलते है, इस दिन गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है माँ गंगा का शीत ऋतु प्रवास मुखवा गाँव के मार्कण्डेय मंदिर में है।
- गंगोत्री मंदिर के कपाट दीपावली के दिन बंद होते हैं
- गंगोत्री के पास भैरों घाटी में जाह्नवी नदी भागीरथी से मिलती है यहाँ एक चट्टान शिवलिंग के रूप में जलमग्न है, जिसे डूबा हुआ शिवलिंग कहते है
- गंगोत्री मंदिर के पास भगीरथ शिला और भैरव मंदिर है
- गंगोत्री मंदिर के पुजारी मुखवा ग्राम के निवासी होते है
- मंदिर के आंगन को चौरस शिलाओं से पाट दिया गया है, जिसे पंटागण कहा जाता है ईस्ट इंडिया कंपनी ने गंगा स्त्रोत का पता लगाने के लिए 1808 ई० में कैप्टन रीपुर को भेजा था
- 1816 ई0 में जे. बी फ्रेजर गंगोत्री और यमुनोत्री पहुँचने वाला प्रथम यूरोपियन था
यमुनोत्री धाम
- यह मंदिर उतरकाशी जिले में यमुना नदी के तट पर स्थित है • सर्वप्रथम यमुनोत्री मंदिर का निर्माण सुदर्शन शाह ने 1850 ई0 में लकड़ी से बनवाया था और 1862 ई० में भवानी शाह ने यमुनोत्री में। का पत्थर की यमुना मूर्ति स्थापित की
- आधुनिक यमुनोत्री मंदिर का निर्माण प्रतापशाह द्वारा किया गया। तथा पुर्ननिर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने करवाया था
- मंदिर के कपाट प्रति वर्ष वैशाख शुक्ल के तृतीया पक्ष में खुलते है शीत प्रवास में यमुना मां की डोली खरसाली गांव में रहती है, जहां सोमेश्वर देवालय है
- 1816 ई0 में फेजर यमुनोत्री मंदिर पहुँचा जहाँ पुजारी ने फेजर को प्रसाद के रूप में माहे का छोटा पौधा दिया
- मंदिर के निकट तीन गर्म कुंड है सूर्य कुंड प्रमुख है जहाँ चावल के दाने डालने पर चावल पक के ऊपर आ जाते हैं जिसे लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं
- सूर्य कुंड को उतुंग चट्टान के पाद पर स्थित है इसे ब्रहमकुंड भी कहते हैं, इस कुंड का तापमान 195 डिग्री फारेनहाइट है।
- सुर्य कुंड से निकलने वाली विशेष ध्वनि को ओम ध्वनि कहा जाता है
- यूरोपीय पर्यटक सूर्य कुंड की तुलना न्यूजीलैंड के गैसर से करते है
- सूर्य कुंड के निकट दिव्य ज्योति शिला है यमुनोत्री से कुछ दूरी पर सप्तऋषि कुंड है
- यमुनोत्री में यात्रीगण गौरी कुंड में स्नान करते है, इसे जमुनामाई कुंड भी कहा जाता है बंदरपूँछ पर्वत का प्राचीन नाम कालिंदी पर्वत है
- बंदरपूँछ तीन शिखरों का समुच्य है - 1. श्रीकंठ,2. बंदरपूँछ
यमुनोत्री कांठा
- यमुना का उल्लेख ऋग्वेद में तीन बार जबकि गंगा का उल्लेख एक बार होता है।
- यमुनोत्री समुद्रतल से 3235 मी० ऊँचाई पर स्थित है यमुनोत्री मंदिर का अंतिम मोटर अड्डा हनुमान चट्टी है जानकी चट्टी अंतिम पडाव जिसका प्राचीन नाम बीफ गाँव था
जागेश्वर धाम
- अल्मोडा जिले में 124 छोटे-बड़े मंदिरो का समूह है जागेश्वर धाम केदारनाथ शैली का बना है जागेश्वर धाम जाटगंगा नदी के तट पर स्थित है
- जागेश्वर धाम राज्य का सबसे बड़ा मंदिर समूह है
- जागेश्वर धाम मंदिर 7वीं-12वीं शताब्दी के मध्य बनाये गये हैं जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर या नागेश्वर कहा गया है - इन मंदिरो का निर्माण कत्यूरी राजा शालीवाहन देव ने कराया था
- जागेश्वर धाम को राज्य का पाँचवा धाम माना जाता है
- जागेश्वर के पुरातत्व पर शोध ग्रंथ माहेश्वर प्रसाद जोशी ने लिखा
- 1914 ई0 में जागेश्वर मंदिर कमेटी बनी थी
जागेश्वर धाम के प्रसिद्ध मंदिर
- जागेश्वर धाम का सबसे प्राचीन मंदिर मृत्युंजय मंदिर है
- जागेश्वर धाम का सबसे विशाल मंदिर दिनदेशवारा है
- जागेश्वर मंदिर शिव भगवान का ज्योर्तिलिंग है, जिसे नागेश ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है
- जागेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार में नंदी व स्कंदी की मूर्ति है
- जागेश्वर धाम के मंदिरों में प्रमुख नौ दुर्गा मंदिर, कुबेर मंदिर,पंचकेदार मंदिर, लक्ष्मी मंदिर व जगनाथ मंदिर है जागेश्वर धाम में पुष्टि देवी मंदिर वल्लभी शैली में बना है।
- जागेश्वर धाम में दक्षिणामुखी हनुमान मंदिर और लकुलीश मंदिर है
- जागेश्वर में जाट गंगा व दूधगंगा के संगम पर दंडेश्वर का विशाल मंदिर है, जो शिखर व वल्लभी शैली का मिश्रित रूप है।
- जागेश्वर के मुख्य मंदिर में दीपचंद व त्रिमलचंद की मूर्तियां रखी गई है, त्रिमलचंद की रजत मूर्ति है
द्वाराहाट मंदिर समूह
- द्वाराहाट को हिमालय की द्वारिका कहा जाता है द्वाराहाट मंदिर समूह कत्यूरी राजाओं के कला प्रेम का प्रतीक है।
- द्वाराहाट मंदिर समूह का सबसे बडा देवालय गूजरदेव का मंदिर है तथा अन्य मंदिरों में बदरीनाथ व केदारनाथ के प्रमुख है।
- द्वाराहाट को मंदिरो की नगरी भी कहा जाता है
- द्वाराहाट में तीन वर्ग के मंदिर हैं, जिसमें रत्न देव मंदिर समूह में 9 मंदिर है, कचहरी मंदिर समूह में 12 मंदिर है और मनियान मंदिर समूह में तीन मंदिर ही सुरक्षित हैं
कटारमल सूर्य मंदिर
- अल्मोडा का कटारमल मंदिर शकों के निवास की पुष्टि करता है कटारमल का सूर्य मंदिर उत्तराखण्ड़ शैली का है
- कटारमल मंदिर में बड़ादित्या सूर्य प्रतिमा बूट पहने हुये दिखती है। इसलिये इसे बूटधारी सूर्य मंदिर कहा जाता है
- इस मंदिर में शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियां है। सूर्य मंदिर की दीवारों पर अपठित तीन पंक्तियों वाला शिलालेख है
- मुख्य मंदिर 45 छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है
- कटारमल मंदिर का निर्माण नवीं और दसवीं शताब्दी में राजा कटारमल ने करवाया था
- कटारमल्ल करबीरपुर में शासन करने वाला 8वां कत्यूरी शासक था मंदिर का कपाट राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में रखा हुआ है
- इस मंदिर के पास गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान स्थित है
राज्य में अन्य सूर्य मंदिर
- मढ़ का सूर्य मंदिर जो पिथौरागढ के डीडीहाट में स्थित है।
- कुलसारी का सूर्य मंदिर चमोली जिले में स्थित है
- चोपता का सूर्य मंदिर रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है भटवाडी का सूर्य मंदिर उत्तरकाशी जिले में स्थित है
- मंजियाली का सूर्य मंदिर पुष्पक शैली का पुरोला उत्तरकाशी में कमल नदी के तट पर स्थित है
- क्यार्क सैण का सूर्य मंदिर पौड़ी जिले में स्थित है
- खेतीखान का सूर्य मंदिर लोहाघाट चम्पावत जिले में स्थित है।
- यहां दीप महोत्सव मनाया जाता है
- घोडाखाल का सूर्य मंदिर नैनीताल जिले में स्थित है
पलेठी का सूर्य मंदिर
- पलेठी का सूर्य मंदिर हिंडोलाखाल, देवप्रयाग में स्थित है, यह 7वीं शताब्दी का सबसे प्राचीन सूर्य मंदिर है यह मंदिर लुलेरा गुलेरा घाटी में स्थित है
- पलेठी का सूर्य मंदिर फांसणा शैली में बना हुआ है
- पलेठी सूर्य मंदिर के शिलापट में कल्याण वर्मन व आदि वर्मन का ब्राह्मी लिपि में लेख मिलता है
- मंदिर का प्रवेश द्वार अग्रेंजी के टी आकार में बना हुआ है
चितई या गोलू देवता का मंदिर
- अल्मोड़ा जनपद में गोलू देवता का एक रहस्यमयी मंदिर है
- गोलू देवता को न्याय या परमोच्च न्यायालय माना जाता है
- किवदंती के अनुसार गोलू देवता बाजबहादुर चंद की सेना में जनरल था।
- गोलू देवता के कुमाऊँ में चार मंदिर स्थित है जो निम्न जगह चम्पावत, घोडाखाल, ताड़ीखेत अल्मोड़ा गोलू देवता के मंदिर को घंटियो वाला मंदिर भी कहा जाता है
- गोलू देवता मंदिर में लोग चिट्ठी लिखकर मन्नते मांगते है गढ़वाल में गोलू देवता को गोरिल देवता के नाम से जानते है माना जाता है कि श्री काल विष्ट जी ही गोलू देवता बने।
- गोलू देवता कत्यूरी राजा झालुराई और कलिंगा का पुत्र था
- गोलू देवता को भगवान शिव (भैरव) के रूप में देखा जाता है
कसार देवी का मंदिर
- कसार देवी का मंदिर अल्मोड़ा के कश्यप पहाड़ी पर स्थित गुफा
- मंदिर है इस मंदिर में दुर्गा माँ के आठवें अवतार देवी कात्यायनी की पूजा होती है,
- मां दुर्गा ने शंभु और निशंभु दो राक्षसों का वध करने के लिए।
- कात्यायनी का अवतार धारण किया था कसार देवी मंदिर में 1890 ई0 में स्वामी विवेकानंद आए थे
- कसार देवी गुफा में बोद्ध गुरू लामा गोविंदा ने साधना की
- कसार देवी क्रैंक रिज के लिए प्रसिद्ध है जिस स्थान पर चुम्बकीय
- शक्तियां होती है वह क्षेत्र वैन एलन बेल्ट में आता है
- कसार देवी मंदिर और पेरू स्थित माचु पिच्चु में अद्भुत समानता देखी गयी है, जहाँ चुम्बकीय शक्ति का प्रभाव है कसार देवी में 1960-70 का हिप्पी आंदोलन प्रसिद्ध हुआ था
- नवम्बर माह में कसार देवी का मेला लगता है कसार देवी की गुफाओं में 14 नृतकों का सुन्दर चित्रण मिला है
नंदा देवी मंदिर
- नंदा देवी का मंदिर अल्मोडा जिले में स्थित है
- नंदा देवी चंद वंश के राजाओं की ईष्ट देवी थी
- नंदादेवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री मानी जाती है अल्मोड़ा में नंदा देवी का मेला भाद्र शुक्ल अष्टमी को लगता है
- इस मेले के अवसर में आंठू गीत गाए जाते है
- नंदादेवी परिसर अल्मोड़ा में तीन देवालय है
- नंदा देवी की प्रतिमा गढ़वाल से लाकर अल्मोड़ा के मल्ला महल में बाजबहादुर चंद ने स्थापित करवायी थी
- कमिश्नर ट्रैल ने मल्ला महल में रखी प्रतिमाओं को पर्वतेश्वर मंदिर में रखवाया, तब से इसे नंदादेवी मंदिर कहा जाता है
पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर
- गंगोली हाट के पास पिथौरागढ जिले में गुफा मंदिर है
- इस गुफा में कई द्वार हैं जिसमें प्रमुख शेषनाग, मोक्षद्वार मुख्य है
- माना जाता है यहां 33 करोड़ देवी-देवता निवास करतें है
- पाताल भुवनेश्वर में पाताल गंगा नदी है पाताल भुवनेश्वर गुफा 160 मी लम्बी है
- बद्रीनाथ मंदिर मुगल शैली की तरह विकसित है द्वार का आकार पाताल भु० गुफा में चार युगों के प्रतीक के रूप में चार शिलांए है
हाटकालिका देवी मंदिर
- गंगोलीहाट के पास हाटकालिका देवी जवानों की रक्षक मानी जाती है,
- हाटकालिका देवी महिषासुरमर्दिनी का सिद्ध पीठ है हाटकालिका देवी मंदिर रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है
- हाटकालिका देवी मंदिर की मूर्ति काले संगमरमर से बनी है
- रात्रि में विस्तर की व्यवस्था कर बाहर से ताला लगाने के बाद यहां शयन के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते है
- हाटकालिका मंदिर का जीर्णोद्धार लक्ष्मण बाबा ने करवाया था
- गंगोलीहाट के रावल गाँव में जान्हवी नौला स्थित है
बैजनाथ मंदिर
- बागेश्वर व कौसानी के मध्य गोमती नदी व गरूड़ गंगा के संगम पर स्थित मंदिरो का समूह है
- बैजनाथ के मुख्य मंदिर में आदमकद पार्वती की मूर्ति स्थापित है, जो कांस्य की बनी है
- बैजनाथ का पुराना नाम कार्तिकेयपुर था बैजनाथ कत्यूरी राजाओं की राजधानी रही •
- भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत शिव हेरिटेज सर्किट से जोड़ा गया है
- 1565 में अल्मोडा के राजा बालो कल्याण चंद ने बैजनाथ मंदिर पर कब्जा किया
- 2016 में बैजनाथ में उत्तराखण्ड की प्रथम कृत्रिम झील बनायी गयी
नानकमता साहिब
- नानकमता ऊधम सिंह नगर में सिक्खों का एक पवित्र तीर्थस्थल है नानकमता का प्राचीन नाम बख्शी व सिद्धमता था
- नानकमता के पास नानक सागर बांध है
- सिक्खों के प्रथम गुरु नानक देव अपने शिष्य बाला व मरदाना के साथ आए
- नानक जी ने लगभग 1508 ई0 में तीसरी कैलाश यात्रा के दौरान नानकमता में प्रवास किया
- सिक्खों के 6 वें गुरू, गुरू हरगोविन्द साहिब ने भी नानकमता की। यात्रा की, उस समय कुमाऊँ का राजा बाजहादुर चंद था
- नानकमता में एक पीपल वृक्ष है, जिसे पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है
देवीधुरा मंदिर
- चम्पावत के देवीधुरा में बराही देवी का मंदिर है
- देवीधुरा में रक्षाबंधन के अवसर पर असाड़ी कौथिक मेला लगता है, जो 15 दिनो तक चलता है
- देवीधुरा मेले को बग्वाल मेला भी कहा जाता है
- देवीधुरा का मेला पाषाण युद्ध या पत्थर मार बग्वाल के लिए प्रसिद्ध
- बग्वाल मेले का जिक्र सर्वप्रथम जिम कार्बेट ने अपनी पुस्तक मैन ईटर आफ कुमाऊँ में किया
- देवीधुरा में दो प्रसिद्ध शिलाएं रण शिला व बराही शिला है
मीठा- रीठा साहिब
- चम्पावत में गुरूनानक ने इस स्थान में तपस्या की
- मीठा-रीठा साहिब लधिया व राटिया नदी के संगम पर स्थित है मीठा- रीठा साहिब गुरुद्वारे का निर्माण 1960 में हुआ था।
- यहां गुरुद्वारे के प्रांगण में मीठे-रीठे का वृक्ष था
पूर्णागिरी मन्दिर
- चंपावत जिले के टनकपुर में पूर्णागिरी शक्तिपीठ है पूर्णागिरी परिसर में चैत्र नवरात्र को मेला लगता है, जो 2 माह तक चलता है
- देश में स्थित 108 शक्तिपीठों में से एक पूर्णागिरी शक्तिपीठ है
- शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग इस स्थान पर गिरा था। पूर्णागिरी शक्तिपीठ अन्नापूर्णा शिखर पर स्थित है
- पूर्णागिरी के पास टनकपुर स्थित है, जहां से काली नदी शारदा के नाम से बहती है
बालेश्वर मन्दिर
- बालेश्वर मंदिर चंद राजाओं ने जगन्नाथ मिस्त्री की मदद से बनाया। था और मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद जगन्नाथ मिस्त्री के हाथ - काट दिये थे, यह मंदिर महादेव को समर्पित है
- इस मंदिर निर्माण में बलुवा व ग्रेनाइट पत्थरों का प्रयोग हुआ बालेश्वर मंदिर चम्पावत में शिखर शैली में बना हुआ है
- इस मंदिर के परिसर पर चम्पावती देवी का मंदिर है
- उद्यानचंद ने गरूड़ ज्ञानचंद के पापों का प्रायश्चित करने के लिए बालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया इसे पूरा विक्रमचंद ने किया था
- 1952 ई0 से मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की देख रेख में है।
गर्जिया देवी का मंदिर
- गर्जिया देवी मंदिर रामनगर में कोसी नदी के मध्य में छोटे टिले पर स्थित है
- गर्जिया देवी का मंदिर रामनगर के सुन्दरखाल गांव में स्थित है।
- गर्जिया देवी का मंदिर माता पार्वती को समर्पित है। गर्जिया देवी को पहले उपटा देवी कहा जाता था
- गर्जिया के पास ढिकुली कत्यूरियों की राजधानी थी गर्जिया देवी पास सीतावनी व महर्षि वाल्मीकि के भग्नावशेष हैं
कैंची धाम आश्रम
- कैंची धाम आश्रम नैनीताल में स्थित है
- कैंची धाम में नीम करौली बाबा का मंदिर है
- कैंची धाम में 15 जून को विशाल भण्डारा लगता है
- नीम करौली बाबा कैंचीधाम में 1962 को आये थे
- कैंची धाम मंदिर हनुमान जी को समर्पित है 15 जून 1964 को हनुमान जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गयी
- नीम करौली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था
- नीम करौली बाबा आगरा के फिरोजाबाद से नैनीताल आये थे
धारी देवी मंदिर
- धारीदेवी का मंदिर श्रीनगर से 15 किमी0 की दूरी पर बद्रीनाथ मार्ग पर कलियासौड़ नामक स्थान पर स्थित है
- धारी देवी मंदिर माँ काली को समर्पित है, जिसे दक्षिणी काली भी कहते है, इस मंदिर के पुजारी धारी के पांडेय ब्राह्मण होते है
- किवदन्ती है कि दिन गुजरते ही मूर्ति में बदलाव होता रहता है मान्यता है धारी माता तीर्थ यात्रियों की रक्षक मानी जाती है
कमलेश्वर मंदिर
- कमलेश्वर मंदिर पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में स्थित है, जो महादेव को समर्पित है, यह गढ़वाल में स्थित प्राचीन शिवालयों में से एक है इस मंदिर का निर्माण शंकराचार्य जी द्वारा किया गया तथा इसका जीर्णोद्धार उद्योगपति बिड़ला ने किया
- इस मंदिर में भगवान राम ने 1000 कमल के फूलों से शिव की उपासना कर शिवजी को प्रसन्न किया था
- कमलेश्वर मंदिर पुत्रदाता के रूप में प्रसिद्ध है इस मंदिर मुख्यरूप में तीन उत्सव होते है अचला सप्तमी, शिवरात्रि, बैकुंठ चतुर्दशी संतान प्राप्ति हेतु बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हाथ में दीपक रखकर महिलाऐं पूजा करती है
तुंगनाथ मंदिर
- रूद्रप्रयाग जिले में स्थित तृतीय केदार है
- तुंगनाथ मंदिर चन्द्रशिला पर्वत के शिखर पर स्थित है तुंगनाथ में भगवान शिव के भुजाओं की पूजा होती है। है।
- शीतकाल में तुंगनाथ की पूजा मार्कण्डेय मंदिर मक्कूमठ में होती
- तुंगनाथ मंदिर कत्यूर शैली का बना हुआ है
- तुंगनाथ मंदिर उत्तराखण्ड का सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित मंदिर है,
- मंदिर समुद्रतल से 3680 मी ऊँचाई पर स्थित है
- तुंगनाथ मंदिर के पास रावण शिला है
- यहाँ बिना पूँछ वाले चूहे पाये जाते है, जिन्हे रूडा कहा जाता है • तुंगनाथ को हरिहर क्षेत्र भी कहा जाता है
मदमहेश्वर नाथ
- रूद्रप्रयाग जिले में स्थित इसे द्वितीय केदार कहते हैं यह मंदिर चौखम्बा शिखर पर स्थित है।
- पांडव शैली इस मंदिर में भगवान शिव के नाभि की पूजा होती है
- शीत काल में यहाँ पूजा ऊखीमठ में होती है
रूद्रनाथ मंदिर
- चमोली जिले में यह मंदिर जहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है, शीत काल में यहां पूजा गोपेश्वर मंदिर में होती है। चतुर्थ केदार जिसे पितृ तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है
कल्पेश्वर नाथ
- पंचम केदार में भगवान शिव की जटाओं की पूजा होती है
- कल्पेश्वर केदार चमोली जिले में स्थित है।
- कल्पेश्वर नाथ के कपाट पूरे वर्ष खुले रहते हैं एक मात्र केदार जहां स्थानीय लोग पुजारी होते है
- चमोली के उर्गम घाटी में स्थित मंदिर है
- इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा तथा यह नागर शैली का है।
- माना जाता है कि इस स्थान पर अप्सरा उर्वशी व दुर्वासा ऋषि कल्प वृक्ष के नीचे तपस्या की थी
- कल्पेश्वर नाथ के समीप कलेवर कुंड है
- कल्पेश्वर नाथ के पास स्थित कल्पगंगा को प्राचीन में हिरण्यवती नाम से जाना जाता था
विश्वनाथ मंदिर
- उत्तरकाशी जिले स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है
- विश्वनाथ मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है विश्वनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण 1857 में सुदर्शन शाह की पत्नी खनेती ने कराया
- विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है
- इस मंदिर के ठीक सामने शक्ति मंदिर है, जहां पर विशाल 6 मी० लम्बा त्रिशूल स्थापित है। इस मंदिर मे ही त्रिशूल लेख प्राप्त हुए, जिन पर शंख लिपि का प्रयोग हुआ है
- त्रिशूल लेख में गणेश्वर नाथ का नाम मिलता है, और इस लेख पर तीन श्लोक उत्कीर्ण है
नैनादेवी का मंदिर
- नैनी झील के किनारे मल्लीताल के पास यह मंदिर है। • प्राचीन मंदिर का निर्माण मोतीराम शाह द्वारा कराया गया था।
- 1880 के भूस्खलन से मंदिर को काफी क्षति पहुँची
- नैनादेवी मंदिर में नंदाष्टमी के दिन मेला लगता है।
- नैनादेवी मंदिर में भगवती उमा के नेत्रों की पूजा होती है
हर की पैड़ी
- हरिद्वार जिले मे राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भर्तृहरि की याद में बनवाया था
- अकबर के सेनापति मानसिह ने नए सिरे से निर्माण किया था है
- इस पवित्र स्नान घाट को ब्रहमकुंड भी कहा जाता
- यहां प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ मेला लगता है
- यहां प्राचीन माया देवी का मंदिर है।
मंसादेवी मंदिर
- शिवालिक श्रेणी के बिल्ब शिखर पर मंसा देवी का मंदिर है मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप माना जाता है
- मनसा देवी को नागकन्या भी कहा जाता है।
- मनसा देवी की कमल की सवारी है
- इस मंदिर में अष्टनाग वाहिनी मूर्ति स्थापित है
- यहां जाने का साधन रोपवे व पैदल मार्ग है
देहरादून के चार सिद्ध
- दतात्रेय भगवान के 84 सिद्धो में से 4 देहरादून में है
- लक्ष्मण सिद्ध पूर्वी देहरादून में है जहां रविवार को मेला लगता है
- कालू सिद्ध भानियावाला में पुत्रदाता के रूप में प्रसिद्ध है माणक सिद्ध देहरादून के बुढी गांव में स्थित है।
- मॉडू सिद्ध देहरादून के प्रेमनगर में स्थित है
टपकेश्वर महादेव मंदिर
- देहरादून में स्थित यह गुफा मंदिर है
- शिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेले का आयोजन होता है • प्राकृतिक रूप से यहां शिवलिंग में लगातार जल टपकता रहता है
- यहां हनुमान जी की विशाल मूर्ति भी है, टपकेश्वर महादेव के पास | से टोंस की सहायक बारामासी नदी बहती हैं • टपकेश्वर में गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा का जन्म हुआ था
लाखामंडल
- देहरादून के जौनसार क्षेत्र में स्थित है, यहां मूर्तियों का भण्डार है लाखामंडल यमुना व रिखनाड़ नदी के संगम पर स्थित है।
- महाभारत काल में बना लाक्षागृह भी यहीं था
- लाखामंडल उत्तराखण्ड शैली का बना प्राचीन शिव मंदिर है इस मंदिर शिवलिंग में जल प्रवाहित करने पर अपना प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है
- यहां दो अलग रंग के शिवलिंग है, जिसमें द डार्क ग्रीन द्वापर युग तथा लाल शिवलिंग त्रेता युग से सम्बन्धित है
- लाखामंडल का पुराना नाम मढ़ था
हनोल मंदिर
- देहरादून में टोंस नदी के तट पर महासू देवता का मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है
- हनोल का प्राचीन नाम चकरपुर था
- किरमिर दानव ने हुणाभाट के सात पुत्रों को मार दिया था हुणाभाट नेB व उसकी पत्नी कृतिका ने हठकेश्वरी देवी की पूजा की \
- हुणभाट व कृतिका ने कश्मीर पर्वतों पर भगवान शिव की पूजा की
- हुणाभाट ने हनोल मंदिर का निर्माण कराया
- जौनसार भाबर के लोगों का सबसे बडा तीर्थस्थल है
- महासू देवता चार देवताओं का सामूहिक नाम है
- चारों भाईयों के नाम बासिक, पबासिक, बौठा, व चालदा महासू • हनोल मुख्य मंदिर बौठा महासू का है, जिसे कैलू वीर भी कहा जाता है
- हनोल मंदिर नागर शैली व हूण शैली का है
- मैन्द्रथ नामक स्थान पर बासिक महासू की पूजा होती है, जिसे कफला वीर कहा जाता है
- बंगाण क्षेत्र में पाबसिक महासू की पूजा होती है छोटा भाई चालदा महासू भ्रमण प्रिय देवता है, जिसे सेकुडिया वीर कहा जाता है
- हनोल मंदिर तीन कक्षों में बंटा हुआ है।
- महासू देवता का त्योहार जागड़ा है, जो सितम्बर माह में होता है
हेमकुण्ड साहिब
- चमोली जिले में सिखों के पवित्र स्थल की स्थापना 1930 में हुयी हेमकुण्ड साहिब 7 पहाड़ियो से घिरा हुआ है
- हेमकुण्ड साहिब के पास झील से हिमगंगा निकलती है
- हेमकुंड झील के समीप एक गुरुद्वारा है हेमकुण्ड साहिब में गुरु गोविन्द सिहं ने तपस्या
- की हेमकुण्ड साहिब को लोकपाल तीर्थ भी कहा जाता है
- हेमकुंड की भौगोलिक खोज तारा सिह ने अपनी किताब तीरथ संग्रह में किया
- हेमकुण्ड साहिब के विकास में संत सोहन का प्रमुख योगदान है हेमकुण्ड साहिब की तीर्थयात्रा का संचालन 7 सदस्य कमेटी करती है
उत्तराखण्ड मंदिर शैली महत्वपूर्ण तथ्य
- जागेश्वर स्थित मृत्युंजय मंदिर छत्र रेखा शिखर प्रसाद शैली का बना हुआ है
- कटारमल्ल का मंदिर व ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ छत्र रेखा शिखर प्रासाद शैली के बने हुए है।
- गूजर देव मंदिर अंग शिखा प्रासाद शैली का बना हुआ है • वराही देवी का मंदिर देवीधुरा में वल्लभी प्रासाद शैली का बना हुआ है
- बैजनाथ मंदिर व द्वाराहाट मंदिर समूह की शैली सूचक रेखा शिखर शैली है
- योगध्यान मंदिर पांडुकेश्वर की शैली वलय प्रासाद शैली है
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