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उत्तराखण्ड लोकचित्र /Uttarakhand Folk Arts

उत्तराखण्ड लोकचित्र 

  • ऐंपण लोकचित्र का तात्पर्य सजावट करने से है, यह मांगलिक व धार्मिक कार्यो में घर के आंगन एवं दीवारों में बनाए गये सुन्दर चित्र होते है
  • ऐंपण को चौक, रंगोली व अल्पना नामों से भी जाना जाता है।
  • ज्यूंती मातृका चित्र में विभिन्न रंगो से देवी-देवताओं का चित्रण होता है
  • प्रकीर्ण चित्र में कागज व दरवाजों पर हाथ के छाप लगाए जाते है 
  • लक्ष्मी पौ चित्र में दीपावली के अवसर पर घरों के दरवाजों पर मां लक्ष्मी के पद चिन्ह लगाए जाते है
  • थापा चित्र में चावल पीस कर रंगो का प्रयोग मांगलिक अवसर पर करते है
  • नत या दुपुक चित्र रसोई घरो की दीवारों पर चित्र बनाए जाते है
  • आरती की थाली में किया गया चित्रांकन को सेली कहा जाता है शुभ कार्य में बुरी आत्माओं से रक्षा के लिए बनाए गए चित्रों को स्यो कहा जाता है
  • मंडप पर बनाया गया चित्रांकन को खोड़िया कहा जाता है
  • प्रवेश द्वारों पर विभिन्न रंगो से बनाए गए चित्र को म्वाली कहा जाता है
  • शरीर पर देवी-देवताओं के टैटू को गोदना (गाजा) कहा जाता है।

उत्तराखण्ड शिल्पकला

  • राज्य के अधिकांश जिलों में हस्तशिल्प उद्योग कार्यरत है रिंगाल के माध्यम से मोस्टा, कंडी, डाले टोकरी बनाई जाती है
  • टोकरी, सूप, कंडी बनाने में बांस का प्रयोग भी किया जाता है
  • राज्य का धारचूला व मुनस्यारी कालीन उद्योग के लिए प्रसिद्ध है 
  • मिट्टी द्वारा निर्मित देवी-देवताओं के रंगीन मूर्तियों को डिकारे या डिकरा कहा जाता है।
  • अल्मोडा के टम्टा समुदाय धातु शिल्पकला में निपुण है। राज्य में चमड़े का कार्य करने वालों को बाड़ई या शारकी कहा जाता है
  • चम्पावत में लोहाघाट चर्मकार्य के लिए जाना जाता है

उत्तराखण्ड राज्य में मूर्ति शिल्पकला 

  • लाखामंडल में मोर पीठ पर बैठे गणेश जी की मूर्ति है 
  • जागेश्वर के नटराज मंदिर में नृत्य करते शिव की मूर्ति है 
  • नृत्य करते गणेश जी की मूर्ति जोशीमठ में है
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