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उत्तराखण्ड में पंचायती राज व्यवस्था/ Panchayati Raj System in Uttarakhand

उत्तराखण्ड पंचायती राज व्यवस्था

  • भारत में पंचायती राज का प्रारम्भ 1959 में राजस्थान के नागौर जिले से हुआ। संविधान के अनु0 243 (क) से 243 (ण) में पंचायती राज की व्यवस्था की गई है, 73वां संविधान संशोधन 1993 के तहत पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया गया
  • संविधान की 11वीं अनुसूची पंचायती राज से सम्बंधित है, 22 अप्रैल 1994 को पंचायती राज संवैधानिक निकाय के रूप में लागू हुआ पंचायती राज व्यवस्था राज्य सूची का विषय है, इसके तहत 29 विषयों को रखा गया है
  • अनु0 243 D के तहत पंचायतों में आरक्षण का प्रावधान है।
  • अनु० 243 E पंचायतों की अवधि का प्रावधान है।
  • अनु0 243 F पंचायत सदस्यों की योग्यता से सम्बन्धित है
  • अनु0 243 G पंचायतों के कार्यों से सम्बन्धित है
  • अनु0 243। इसमें पंचायतों के लिये वित आयोग का गठन है।
  • अनु० 243k राज्य निर्वाचन आयोग का गठन का प्रावधान है
  • मार्च 2008 को पंचायती अधिनियम में संशोधन करके महिलाओं को पंचायतों में आरक्षण 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया
  • पंचायती अधिनियम संशोधन के समय मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी थे, राज्य में पंचायतो की त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू है राज्य में पंचायती राज के 29 विषयों में से 14 विषय 2002-2003 में लागू किये गये
  • पंचायती राज का सम्बन्ध सता के विकेन्द्रीकरण से है 
  • पंचायत चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है
  • पंचायतों के कार्यकाल समाप्त होने के बाद 6 माह में निर्वाचन होना आवश्यक है।

 उत्तराखण्ड में जिला पंचायत

  • पंचायती राज व्यवस्था में जिला पंचायत एक शीर्ष निकाय है। जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव जिले की 18 वर्ष से अधिक आयु  के नागरिकों द्वारा किया जाता है
  • पर्वतीय क्षेत्रों में 24000 तक की जनसंख्या में न्यूनतम दो प्रादेशिक क्षेत्र होंगे, मैदानी क्षेत्रों में 50000 तक की जनसंख्या में 2 प्रादेशिक क्षेत्र होंगे
  • जिला पंचायत के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है अर्थात अप्रत्यक्ष रीति से होता है
  • जिला पंचायत का सचिव मुख्य विकास अधिकारी या मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है।
  • जिला पंचायत अपने सदस्यों से मिलकर 6 प्रकार की समितियां बनाती है, जिला पंचायत का कार्य इन्हीं 6 समितियों के माध्यम से  होता है
  • जिले के लोकसभा व राज्यसभा सदस्य व राज्य विधानसभा
  • सदस्य जिला पंचायत के पदेन सदस्य होते है
  • प्रत्येक तीन माह में जिला पंचायत की न्यूनतम एक बैठक होती है जिला पंचायत की बैठक में गणपूर्ति एक तिहाई होनी चाहिए

उत्तराखण्ड में क्षेत्र पंचायत

  • क्षेत्र पंचायत, पंचायती राज का मध्यस्तरीय निकाय है 
  • क्षेत्र पंचायत के अध्यक्ष को प्रमुख कहते है, तथा उपाध्यक्ष को उपप्रमुख कहा जाता है, इसके साथ - 2 कनिष्ठ प्रमुख भी होता
  • क्षेत्रपंचायत के निर्वाचित सदस्यों की न्यूनतम संख्या 20अ धिकतम संख्या 40 होती है
  • पर्वतीय क्षेत्र में न्यूनतम 25000 जनसंख्या पर 20 सदस्य व मैदानी 
  • क्षेत्र में 50000 जनसंख्या पर न्यूनतम 20 सदस्यों की क्षेत्रपंचायत होती है
  • क्षेत्र पंचायत सचिव ब्लॉक बिकास अधिकारी या बी.डी.ओ. होता है क्षेत्र पंचायतों के कर्तव्यों का सम्पादन हेतु 6 समितियों का गठन किया जाता है

उत्तराखण्ड में ग्राम पंचायत

  • पंचायती राज व्यवस्था के निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होती है एक या एक से अधिक ग्राम पंचायतों को मिलाकर जो सभा बनती है, जिसे ग्राम सभा कहते है • प्रत्येक ग्राम पंचायत सदस्यों का कार्यकाल प्रथम बैठक से 5 वर्ष तक होता है
  • ग्राम पंचायत के अध्यक्ष को ग्राम प्रधान कहा जाता है ग्राम पंचायतों के सदस्यों की संख्या पाँच से कम व 15 से अधिक नहीं हो सकती है
  • किसी नए ग्राम पंचायत का गठन राज्य सरकार कर सकती है
  • ग्राम पंचायत के गठन हेतु कम से कम पर्वतीय क्षेत्रों में 500 तथा मैदानी क्षेत्रों में 1000 की जनसंख्या होनी चाहिए
  • ग्राम पंचायत गठन हेतु अधिकतम 10,000 की आबादी होनी चाहिए ग्राम पंचायते स्थानीय मेले या हॉट से शुल्क वसूल कर सकती है। ग्राम पंचायत यदि क्षेत्र में सिंचाई व पेयजल की सुविधा करती है, तो उस पर भी शुल्क लगा सकती है।

उत्तराखण्ड में नगर-निकाय प्रणाली

  • भारतीय संविधान के भाग 9(क) में अनु0 243 (त) से अनु0 243 (य) | तक नगर निकाय के बारे में उपबंध है।
  • 74वां संविधान संशोधन 1993 के तहत संविधान में 12 वीं अनुसूची जोड़ी गई, जो नगर-निकाय के उपबंध से सम्बन्धित है।
  • संविधान में नगर निकाय के सम्बंध में 18 विषयों का प्रावधान है
  • राज्य में त्रिस्तरीय नगर स्वायत्त शासन की व्यवस्था है।
  • उतराखण्ड में नगरीय स्वायत प्रणाली की शुरूआत 1916 को हुयी

उत्तराखण्ड में नगर निगम

  • यदि किसी पर्वतीय क्षेत्र की जनसंख्या 90,000 से अधिक व मैदानी क्षेत्रों में 1,00,000 से अधिक हो तो नगर निगम बनाया जा सकता है
  • नगर निगमों के अध्यक्ष को मेयर या महापौर कहा जाता है
  • मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष रीति या सीधे आम जनता द्वारा होती है सभासद या पार्षदों का चुनाव भी सीधे आम जनता द्वारा होता है डिप्टी मेयर का चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से होता है, अर्थात चुने हुए सदस्यों द्वारा होता है
  • वर्तमान 2020 में उत्तराखण्ड में 8 नगर निगम है जो निम्न प्रकार से हैं- देहरादून, हरिद्वार, रूड़की, कोटद्वार, ऋषिकेश, हल्द्वानी, रूद्रपुर व काशीपुर

उत्तराखण्ड में नगरपालिका परिषद्

  • जिन नगरो की जनसंख्या मैदानों में 50,000 से 1 लाख तथा पर्वतीय क्षेत्रों में 90 हजार जनसंख्या है, वहां नगरपालिका बन सकती है
  • नगरपालिका के अध्यक्ष व सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रीति से होता है राज्य में वर्तमान में कुल 39 नगर पालिका परिषद् है सबसे पुरानी नगरपालिका परिषद् मसूरी नगर पालिका 1842 थी।
  • राज्य में सबसे छोटी नगरपालिका कीर्तिनगर नगरपालिका परिषद् है

उत्तराखण्ड में नगर पंचायत

  • जिन नगरों की जनसंख्या 5000 से 50,000 तक होती है, वह
  • नगर पंचायत बनाया जा सकता है
  • नगर पंचायत के सदस्यों का चुनाव पाँच वर्ष के लिए प्रत्यक्ष रीति से होता है
  • राज्य में कुल नगर पंचायत की संख्या 47 है राज्य के तीन नगर पंचायत में चुनाव नहीं होते हैं यह मनोनीत होती है 1. बद्रीनाथ, 2. गंगोत्री,  3. केदारनाथ