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उत्तराखण्ड में गांधी युग 1915 से 1947 ई०/Gandhi era in Uttarakhand from 1915 to 1947 AD

 उत्तराखण्ड में गांधी युग 1915 से 1947 ई०/Gandhi era in Uttarakhand from 1915 to 1947 AD

 उत्तराखण्ड में गांधी युग 1915 से 1947 ई०

  • 5 अप्रैल 1915 को गांधी जी ने हरिद्वार कुंभ मेले में भाग लिया
  • 1916 ई0 गांधी जी ने देहरादून की यात्रा की 1927 ई0 एक बार पुनः हरिद्वार आए
  • 14 जून 1929 ई0 में गांधी जी पहली बार कुमाऊँ का दौरा किया
  • जून 1929 में गांधी जी और नेहरू जी ने कुमाऊँ की यात्रा की और बागेश्वर के कौसानी में 12 दिन के प्रवास के दौरान गांधी जी ने अनाशक्ति योग नाम से गीता की भूमिका लिखी,
  • यंग इंडिया के एक लेख में गांधी जी ने कौसानी को भारत का स्विटजरलैण्ड कहा था और गांधी जी 2 जुलाई 1929 ई0 तक कौसानी में रहे थे
  • अक्टूबर 1929 ई० में गांधी जी ने गढ़वाल की यात्रा भी की
  • मई 1931 ई० में एक बार पुन गांधी जी नैनीताल आए • भारत माता का सच्चा सपूत राम सिंह धौनी को कहा जाता है।
  • लोकनायक हरगोविन्द पंत को कहा जाता है

पेशावर कांड

  • 23 अप्रैल 1930 को वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने निहत्थे अफगान सैनिकों पर गोली चलाने से मना कर दिया
  • खुदाई खिदमतगार या लाल कुर्ती सेना का नेतृत्व खान अब्दुल गफ्फार खां कर रहे थे
  • खान अब्दुल गफ्फार खां को सीमान्त गांधी भी कहा जाता है
  • अप्रैल 1930 को 2/18 गढ़वाल राइफल पेशावर के हरि सिंह लाइंस में तैनात थी
  • गढवाल सैनिको को अंग्रेज कमाण्डर रिकेट ने गोली चलाने का
  • आदेश दिया और कहा भीड़ पर तीन राउंड फायर करो।
  • मोतीलाल नेहरू ने 23 अप्रैल के दिन को गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा की

डांडी मार्च

  • 12 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने साबरमती आश्रम से डांडी तक पैदल यात्रा प्रारम्भ की
  • डांडी मार्च में 78 सत्याग्राही में से तीन उतराखण्ड से थे 
  • 1. ज्योतिराम कांडपाल, 
  • 2. भैरव दत जोशी 
  • 3. वीर खड़ग बहादुर
  • 5 अप्रैल 1930 ई० को गांधी जी डांडी पहुंचे और 6 अप्रैल 1930 को स्वयं नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया
  • डांडी यात्रा 24 दिनों में 241 मील की यात्रा पूरी की 
  • सरोजनी नायडू के नेतृत्व में गुजरात के धरासणा में नमक डिपो पर धरना प्रदर्शन में ज्योतिराम कांडपाल ने भाग लिया
  • ज्योतिराम कांडपाल ने देघाट में उद्योग मंदिर आश्रम की स्थापना की गांधी जी ज्योतिराम कांडपाल को 100 रु0 महावार देते थे

शिल्पकार आन्दोलन

  • कुमाऊँ में 1905 में टम्टा सुधार सभा का गठन हुआ
  • 1911 में हरिप्रसाद टम्टा नें दलितों के लिए शिल्पकार शब्द का प्रयोग किया।
  • 1931 में कुमाऊँ शिल्पकार सुधारिणी सभा का अल्मोड़ा में गठन हुआ
  • हरिप्रसाद टम्टा 1945 से 1952 ई0 तक अल्मोडा नगरपालिका के अध्यक्ष पद पर रहे
  • संयुक्त प्रांत की अस्पृश्यता विरोधी समिति का चेयरमैन हृदयनाथ कुंजरू थे और गढ़वाल के लिए अध्यक्ष मुकुन्दीलाल को चुना गया 
  • गढ़वाल में दलितों की बड़ी सभा का अयोजन श्रीनगर में 1935 में हुयी जिसके अध्यक्ष सी० एच चौफिन थे, जिसमें शिल्पकार सभा का गठन किया गया था
  • अमन सभा की स्थापना लैन्सडाउन में नवम्बर 1930 में हुयी, इसका उद्देश्य छावनी को राष्ट्रवादी आन्दोलन से बचाना था
  • अमन सभा का सहयोगी हितैषी प्रेस व हितैषी पत्र था 1932 में गढ़वाल में जागृत गढ़वाल संघ की स्थापना हुई, जिसमे पाँच आना बढ़ी लगान की दर का विरोध हुआ

गढवाल हितकारिणी सभा

  • गढ़वाल हितकारिणी सभा की स्थापना अगस्त 1901 ई0 में हुयी बाद में इसका नाम गढ़वाल यूनियन पड़ा और का श्रेय तारादत गैरोला को जाता है

डोलापालकी आन्दोलन

  • शिल्पकारों का यह आन्दोलन सवर्ण दुल्हों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए था 
  • डोलापालकी आन्दोलन 1930 ई0 में जयानंद भारती के नेतृत्व मे शुरु किया गया था

उतराखण्ड में व्यक्तिगत सत्याग्रह

  • भारत में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन अक्टूबर 1940 को आरम्भ हुआ, जिसके पहले सत्याग्रही बिनोवा भावे थे और दूसरे सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरू थे
  • उत्तराखण्ड से प्रथम व्यक्तिगत सत्याग्राही जगमोहन सिंह नेगी थे उत्तराखण्ड में व्यक्तिगत सत्याग्रह की पहली बैठक डांडामण्डी नामक स्थान में हुई थी
  • कुमाऊँ में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के नायक प्रताप सिंह थे 
  • उत्तराखण्ड में अपने आप को व्यक्तिगत सत्याग्राही घोषित करने वाली महिला भागीरथी देवी थी
  • चमोली में व्यक्तिगत सत्याग्रह का संचालन अनुसुईया प्रसाद बहुगुणा ने किया
  • गांधी जी ने डोलापालकी आन्दोलन के चलते हुए गढ़वाल में 25 में जनवरी 1941 को व्यक्तिगत सत्याग्रह पर प्रतिबंध लगाया था
  • 23 फरवरी 1941 को लैंसडाउन में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसका संचालन गढ़वाल कांग्रेस कमेटी ने किया
  • 28 फरवरी 1941 को गांधी जी ने गढ़वाल में व्यक्तिगत सत्याग्रह से प्रतिबंध हटा दिया था

उत्तराखण्ड में भारत छोड़ो आन्दोलन

  • 1942 आन्दोलन का उत्तराखण्ड में सर्वाधिक प्रभाव अल्मोड़ा पर पड़ा 9 अगस्त 1942 को नंदादेवी प्रांगण में बद्रीदत पांडे ने भाषण दिया 18 अगस्त 1942 को देघाट में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाई सालम की क्रांति 25 अगस्त 1942 में हुयी डिप्टी कलेक्टर मेहरबान सिह ने सालम क्षेत्र में जाट सेना भेजी जिसका जनता ने विरोध किया
  • सालम का शेर राम सिंह आजाद 1942 में सालम से फरार हो गया और बद्रीनाथ में गिरफ्तारी दी उसके बाद राम सिंह को कालापानी की सजा हुई और राम सिंह के पक्ष में वकालत गोपाल स्वरूप पाठक ने की और अपील नैनीताल के स्वतंत्रता सेनानी इन्द्र सिह नयाल द्वारा की गयी थी
  • 5 सितम्बर 1942 को सल्ट क्षेत्र के खुमाड़ के कांग्रेस मुख्यालय अग्रेंजो ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाई, जिसका आदेश जौनसन नामक अधिकारी ने दिया, इसमें गंगाराम व खीमादेव दो सगे भाई शहीद हो गए, गांधी जी द्वारा सल्ट की भूमिका को देखते हुए उसे कुमाऊँ का वारदोली की संज्ञा दी, इसीलिये प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है
  • स्वतंत्रता आन्दोलन के समय सिंलागी में संदानंद कुकरेती ने राष्ट्रीय विद्यालय खोला देवकीनंदन पांडे व भगीरथ पांडे ने ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय खोला

आजाद हिन्द फौज

  • 1941 में आजाद हिन्द फौज का गठन कैप्टन मोहन सिह ने किया
  • सुभाषचंद्र बोस 1943 में सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज की। बागडोर संभाली जिसमें उत्तराखण्ड के 12 प्रतिशत सैनिक (लगभग 2500) थे
  • लैफ्टिनेंट कर्नल चंद्र सिंह नेगी सिंगापुर में ऑफीसर्स ट्रेनिंग स्कूल के कमाण्डर थे
  • मेजर देव सिह दानू नेता जी के अंगरक्षक बटालियन के कमाण्डर थे 
  • कर्नल पीसी रतूड़ी सुभाष रेजीमेंट की प्रथम बटालियन के कमाण्डर थे, इन्हे बर्मा कैम्पेन में अदम्य साहस दिखाने के लिए सरदार-ए-जंग वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
  • 21 सितम्बर 1942 में गढ़वाल राइफल की दो बटालियन 2/18, तथा 5/18 आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गयी

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