टिहरी रियासत में वन प्रबंधन/Forest Management in Tehri State |
टिहरी रियासत में वन प्रबंधन
- 1840 के आसपास टिहरी राजा ने विल्सन नामक व्यक्ति को वन भूमि पट्टे में दिया
- 1864 में फ्रेंडिक विल्सन का पट्टा समाप्त कर दिया गया
- टिहरी रियासत में 1897 में वन प्रबंधन में प्रमुख योगदान पं० केशवानन्द का रहा और 1904 में केशवानंद के बाद संदानंद को वन प्रबंधन के लिए चुना गया
- टिहरी में वन आन्दोलन का नेतृत्व साधारण किसान कर रहे थे, इस आन्दोलन के संचालन हेतु एक समिति का गठन किया गया, इस समिति के अध्यक्ष दयाराम बनाए गए, समिति की बैठक प्रतिमाह लाखामंडल में होती थी
- रवाई प्रांत की जनता ने समिति के नेतृत्व में आजाद पंचायत का गठन किया 1930 में आजाद पंचायत के साथ एक सामान्तर सरकार की स्थापना की गई
- हीरा सिंह को पांच सरकार व बैजराम को तीन सरकार की उपाधि दी गयी
- रवाई आन्दोलन में आन्दोलनकारियों का आंदोलन को तोड़ने के लिए रणजीत सिंह को रंवाई का थोकदार बनाया गया
- 20 मई 1930 को एस० डी० एम० सुरेन्द्र दत शर्मा व डी०एफ ओ० पद्मदत रतूडी से आन्दोलनकारियों का झगड़ा हुआ
- 30 मई 1930 को रवाई के लोग तिलाड़ी नामक स्थान पर, एकत्रित हुए तब चक्रधर जुयाल 150 सैनिकों के साथ यहां पहुंचे और उसने किसानों पर गोली चलवा दी इसमें लगभग 200-300 लोग मारे गए, जिसे तिलाड़ी कांड के नाम से जाना जाता है
- राज्य में सेब की खेती 1860 में चौबटिया में सरकारी उद्यान की स्थापना के बाद शुरू की गयी
- आलू की खेती को कुमाऊँ में हेनरी रैम्जे द्वारा प्रसारित किया गया, उत्तराखण्ड में सर्वप्रथम आलू की खेती देहरादून में 1823 में मेजर यंग द्वारा शुरू की गयी
- सर्वप्रथम विदेशी आलू को नैनीताल के आसपास 1864 में श्रीमती हैरी बर्जर ने रोपित किया
- कुमाऊँ गर्वनमेंट गार्डन की स्थापना 1909 में की गई तथा नॉर्मन
- गिल को इस गार्डन का कार्यभार सौपा गया। आलू की प्रजाति
- लॉग कीपर को कुमाऊँ मे लाने का श्रेय नॉर्मन गिल को जाता है
- नॉर्मन गिल एक वनस्पति शास्त्री था नॉर्मन गिल ने इटली से सफेद व काले अंगूर प्रजाति मंगाई और गिल 1922 में इंग्लैंड जाने के बाद कार्य राम लाल शाह को सौंपा
- जर्नल व्हीलर ने घोंड़ाखाल में तथा डेरियाज द्वारा रामगढ़ में फलो के उद्यान लगाए गए
- चौबटिया राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1869 ई0 में हुयी
- चौबटिया उद्यान में स्टोक द्वारा रेड डेलिसियस नामक सेब की प्रजाति को उगाया।
- चौबटिया उद्यान में 1932 ई० में हिल फ्रूट रिसर्च स्टेशन बना था
- 1924 में अल्मोंडा में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना बोसी सेन द्वारा की गयी।
चाय की खेती
- 1824 में बिशप हेबर ने चाय की खेती करने का विचार दिया
- भारत में 1834 में एक चाय कमेटी का गठन हुआ
- कुमाऊँ मे चाय की पहली खेप 1835 ई0 में भीमताल व लक्ष्मेश्वर के आसपास लगायी गयी
- अल्मोंडा के लक्ष्मेश्वर में सबसे पहले फॉल्कनर ने बगीचा बनाया
- 1835 में टिहरी गढ़वाल में चाय की खेती प्रारम्भ हुयी 1844 ई0 को देहरादून में सरकारी चाय बागान जेमिसन ने शुरु किया था
- 1843 में कैप्टन हडलस्टन ने पौड़ी में चाय बगानों की स्थापना की
- 1850 में चीनी चाय विशेषज्ञ एसाई वांग गढ़वाल आया था
- पौडी में डी० चौफिन नामक चीनी चाय काश्तकार द्वारा सरकारी चाय फैक्ट्री की स्थापना की गयी।
- 1928 ई0 में नैनीताल जिले में यूरोपियनों द्वारा 5 चाय के बागान लगाये गये थे 1. भवाली में मिस्टर न्यूटन का और मिस्टर मुलियन का बगान,
- 3. मीमताल में मिस्टर जोन्स का बागान 4. रामगढ़ में मिस्टर डोरियाज का बगान 5. घोड़ाखाल में व्हीलर का बगान
- बेरीनाग टी गार्डन को बिष्ट परिवार ने 1932 में जिम कार्बेट से खरीदा था
- गिल ने 1903 में बेलाडोना की खेती कुमाऊँ में शुरू की थी
- गिल ने एटरोपा बेलाडोना का बीज विदेशों से मंगाकर नैनीताल तथा चौबटिया में बोया
- नार्मन गिल ने चौबटिया गार्डन में ही बेलाडोना की पतियों को सुखाने के लिए प्लांट लगाया
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