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उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक काल/Historical period of Uttarakhand

उत्तराखण्ड ऐतिहासिक काल

कुणिन्द शासक

  • उत्तराखण्ड में शासन करने वाली प्रथम राजनीतिक शक्ति | कुणिन्द लोग थे
  • कालसी लेख अनुसार प्रारम्भ में कुणिन्द लोग मौर्यों के अधीन थे
  • कुणिन्द शासन की जानकारी का एक मात्र स्त्रोत कुणिन्द मुद्राएं है 
  • कठौच अनुसार कुणिन्दों ने उत्तराखण्ड में लगभग 200ई0 पूर्व से ने 300 ई0 तक शासन किया
  • कुणिन्द वंश का शक्तिशाली शासक अमोघभूति था 
  • अमोघभूति की रजत व ताम्र मुद्राएं पश्चिम में व्यास से लेकर अलकनंदा तक तथा दक्षिण में सुनेत से बेहत तक प्राप्त हुयी
  • अमोघभूति की मुद्रा में प्राकृत में राज्ञः कुणिन्दस अमोघभूतिस महरजस अंकित था
  • कुणिन्द मुद्राएं उत्तरकाशी के देवढुंगा व टिहरी के अटूड से मिली
  • महाभारत में कुणिन्दो को द्विज कहा गया है, और कुणिन्द नरेशों  को द्विज श्रेष्ठ कहा गया
  • कुणिन्दो की पहली राजधानी कलकूट थी कुणिन्दों की दूसरी राजधानी शत्रुघ्न थी
  • कुणिन्द लोग शैव धर्मावलम्बी थे
  • वन पर्व में कुणिन्द शासक सुबाहु का उल्लेख मिलता है। 
  • महाभारत एवं अष्टाध्यायी में कुणिन्दों की जानकारी मिलती है
  • विदेशी लेखक टॉल्मी ने भी कुणिन्द शासन का वर्णन किया है 
  • कुणिन्दों के बारे में पांच अभिलेख प्राप्त हुए, जिनमें से चार भरहुत तथा एक मथुरा से मिला है।

कुणिन्दों की मुद्राएं

  • कुणिन्द शासकों के बारे में जानकारी उनकी तीन प्रकार की मुद्राओं से प्राप्त होती है
  • कुणिन्दों की मुद्राएं अमोघभूति प्रकार की, अल्मोडा प्रकार की व चत्रेश्वर प्रकार की है। 
  • अमोघभूति प्रकार की मुद्रांए रजत व तांबे की बनी हुई है, जिसमें
  • ब्राह्मी लिपि व खरोष्ठी लिपि में लेख लिखे गए है
  • अमोघभूति की मुद्राओं में मृग व लक्ष्मी के चित्र अंकित है
  • अल्मोडा सिक्के शिवपालित, हरिदत, शिवदत, मगभत, थे 
  • अल्मोडा से प्राप्त चार मुद्राएं ब्रिटिश संग्रहालय लन्दन में संरक्षित रखी गयी है
  • ब्रिटिश संग्रहालय में शिवरक्षित की एक ताम्र मुद्रा जो महेश्वर जोशी को प्राप्त हुयी थी
  • अल्मोडा प्रकार की 54 मुद्राए कत्यूर घाटी से मिली इन मुद्राओं में एक शिवदत की और एक अशोक की और शेष मुद्राएं सौमित्र की है
  • अल्मोड़ा सिक्कों से सभंवत 8 कुणिन्द नरेशों के नामों का पता चला कुणिन्दों के अधिष्ठात्री देव छत्रेश्वर थे जो भगवान शिव के रूप में पूजे जाते थे
  • अमोघभूति के बाद मैदानी क्षेत्रों में शकों का अधिकार हो गया था 
  • शकों के निवास की पुष्टि कटारमल का सूर्य मंदिर व कुमाऊँ मे प्रचलित शक् संवत करता है

कुषाण काल

  • कुषाणकालीन मुद्राएं वीरभद्र, मोरध्वज, गोविषाण से प्राप्त हुये.
  • वीरभद्र - ऋषिकेश, मोरध्वज- कोटद्वार, गोविषाण-काशीपुर है कुषाणों का शक्तिशाली शासक कनिष्क था, जिसने तराई क्षेत्रों पर अधिकार किया और कनिष्क का पुरोहित पतंजलि था
  • कुषाण शासक वासुदेव की तीन स्वर्ण मुद्रांए गोविषाण के टीले से प्राप्त हुयी थी
  •  कुषाण कालीन मुद्राओं में शिव व नंदी का चित्र बना था 7 कुषाण स्वर्ण मुद्रांए खटीमा से प्राप्त हुयी जिनपर वसु नामक राजा का नाम मिलता है

यौद्येय वंश

  • कुषाणों को कुचलने में मुख्य भूमिका यौधेय शासकों की रही थी 
  • यौधेय कुणिन्दों के समकालीन थे इनकी मुद्राएं जौनसार-भाबर तथा कालों-डांडा से मिली
  • यौद्येय शासकों के द्वि एवं त्री मुद्रालेख वाले सिक्के प्राप्त हुए 
  • यौधेय शासको के सिक्कों में शूलधारी कार्तिकेय का चित्र अंकित है

युगशैल का गोत्रीय वंश

  • गोत्रीय वंश का कालसी प्रदेश के आस-पास राज्य था
  • गोत्रीय वंश का प्रतापी शासक शीलवर्मन था
  • शीलवर्मन ने बाड़वाला यज्ञवेदिका का निर्माण कराया 
  • शीलवर्मन ने यमुना तट पर 4 अश्वमेघ यज्ञ भी कराया था

कुलूत वंश

  • कुलूत वंश कांगड़ा जनपद की कुल्लू घाटी में शासन कर रहा था 
  • कुलुत वंश की जानकारी वृहतसंहिता व मुद्राराक्षस से मिलती है
  • कुलुत वंश का प्रतापी शासक वीरयश था
  • वीरयश की वृताकार रजत मुद्रांए मिली

काशीपुर में मित्र वंश

  • काशीपुर में दो मित्र राजाओं के बारे में उल्लेख मिलता है 1- मातृमित्र 2- पृथ्वीमित्र

कृर्तपुर राज्य

  • कृर्तपुर राज्य क्षेत्र में उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, तथा रोहिल खण्ड का उतरी भाग स्थित था 
  • समुद्रगुप्त प्रयाग प्रशस्ति में कृर्तपुर राज्य को गुप्त साम्राज्य के अधीन राज्य बताया गया।
  • कृर्तपुर राज्य की राजधानी कार्तिकेयपुर थी 
  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कृर्तपुर पर कुणिन्दों का शासन था
  • गुप्त शासक स्कन्दगुप्त के समय में हुणों का आक्रमण हुआ था और उसी समय कृर्तपुर राज्य पर भी हुणों ने आक्रमण किया था 
  • राहुल सांकृत्यायन के अनुसार हुण राजा तोरमाण व मिहिरकुल के अधीन कुछ हिमालय भाग रहा

छगलेश वंश

  • लाखामंडल में मिले खंडित शिलालेख छगलेश वंश से सम्बन्धित थे
  • खंडित अभिलेखों में सात राजाओं के नाम मिलते हैं
  • इन अभिलेखों में पहला नाम नरपति जयदास का मिलता है

यदु वंश

  • यदुवंश का शासन 6वीं-7वीं सदी के आसपास रहा
  • यदुवंशीय राजाओं की जानकारी लाखामंडल से प्राप्त राजकुमारी ईश्वरा के लेख से मिलती है, इस लेख में 11 पीढ़ियों के 12 शासकों का नाम उद्धृत है
  • यदुवंश का संस्थापक श्री सेनवर्मन था
  • यमुना प्रदेश के यदुओं की राजधानी सिंहपुर थी
  • राजकुमारी ईश्ररा भाष्कर वर्मन की पुत्री तथा जालधर राजकुमार
  • चन्द्रगुप्त की पत्नी थी ईश्वरा ने लाखामण्डल में एक शिव मंदिर बनवाया था में

नाग वंश

  • 6 वीं शती में कृर्तपुर राज्य पर नागों का कब्जा हो गया • नागों की पुष्टि गोपेश्वर त्रिशूल लेख से मिलती है
  • गोपेश्वर त्रिशूल लेख में चार राजाओं के नाम थे
  • 1-स्कन्दनाग, 2- गणपति नाग 3-विभुनाग 4-अंशुनाग
  • गोपेश्वर त्रिशूल लेख में ब्राह्मी लिपि का प्रयोग हुआ है 
  • गणपति नाग उतरी नागवंश का शक्तिशाली शासक प्रतीत होता है 
  • गणपतिनाग का रूद्रहिमालय गोपेश्वर में अभिलेख मिला
  •  नागों के बाद उत्तराखण्ड में कन्नौज के मौखरी वंश का शासन रहा 
  • यमुना घाटी में यदुओं का अस्तित्व मिटाने का श्रेय गणपति नाग को जाता है।

मौखरी वंश

  • उत्तराखण्ड में नागों को कन्नौज के मौखरी वंश ने परास्त किया था। 
  • मौखरी वंश के अंतिम शासक ग्रहवर्मा था जिसकी हत्या के बाद मौखरी राज्य उसके बहनोई हर्षवर्द्धन के अधीन हो गया

थानेश्वर का हर्षवर्द्धन वंश

  • बाणभट्ट के हर्षचरित पुस्तक में उत्तराखण्ड़ आने वालों का वर्णन मिलता है
  • हर्षकालीन चीनी यात्री हवेनसांग हिमालय के पो-लो-हि-मो-पु-लो या ब्रह्मपुर राज्य में गया था
  • हवेनसांग ने यहां पांच बौद्ध विहार होने का उल्लेख किया है
  • कनिघंम ने आधुनिक गढ़वाल व कुमाऊँ वाले सम्पूर्ण भू-भाग को ब्रहमपुर कहा
  •  हवेनसांग ने गंगा को महाभद्रा एवं हरिद्वार के लिए मो-यु-लो कहा था जिसका क्षेत्रफल 20 ली "चीनी माप "बताया

हर्ष के पश्चात मध्य हिमालय

  • हर्ष के पश्चात हिमालय क्षेत्र ब्रह्मपुर, शत्रुघ्न और गोविषाण राज्यों में टूट गया था। हर्ष के समय तीनों राज्य कन्याक्रुब्ज राज्य के अधीन थे
  • कन्याक्रुब्ज में वर्द्धन वंश का 647 ई0 में अंत हो गया 
  • इन तीनो राज्य का वर्णन हवेनसांग के यात्रा-वृतांत से मिलता है 
  • इनमें सबसे बड़ा और विस्तृत ब्रह्मपुर राज्य था

ब्रह्मपुर राज्य

  • ब्रहमपुर राज्य पौरवों के अधीन हो गया था
  • ब्रह्मपुर राज्य गंगा नदी से लेकर पूर्व में करनाली नदी तक बहुत बड़ा विस्तृत क्षेत्र था
  • पौरव वंश का शासन 6वीं सदी से 8वीं सदी तक रहा
  • ब्रह्मपुर नरेश सोनवंशीय पौरव राजा थे
  • अल्मोडा से मिले तालेश्वर ताम्रपत्र का सम्बन्ध पौरवों से था 
  • तालेश्वर ताम्रपात्र की खोज 1915 में हुयी। तालेश्वर वर्तमान में
  • पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है।
  • तालेश्वर ताम्रपात्र में धुतिवर्मन व विष्णुवर्मन शासक का उल्लेख है 
  • पौरव वंश के शासक ब्रह्मपुर राज्य को पर्वताकार राज्य कहते थे
  • पौरव वंश के ताम्रपत्रों में 5 शासको का उल्लेख मिलता है
  • पौरव वंश के संस्थापक राजा विष्णुवर्मन था
  • विष्णुवर्मन के बाद क्रमशः वृषवर्मन, अग्निवर्मन व धुतिवर्मन | शासको का वर्णन मिलता है
  • पौरवों के कुल देवता विरणेश्वर स्वामी थे
  • पौरव शासको की उपाधि महाराजाधिराज परम भट्टारक थी

पौरव प्रशासन

  • पौरव शासको के निवास स्थल को कोट कहा जाता था 
  • पौरव वंश के सेनानायक को बलाध्यक्ष कहा जाता था
  • पौरव शासको के आय का स्रोत भूमिकर था, जिसे भाग कहा जाता था
  • भू कर वसूलने वाले अधिकारी को मार्गक कहा जाता था
  • पौरव काल में दो तरह की भूमि थी-केदार व सारी
  • सिंचित भूमि को केदार व असिंचित भूमि को सारी कहा जाता था 
  • भूमि मापन के लिए द्रोणवापम, खारीवापम व कुल्यावापम विधि का प्रयोग होता था

शत्रुघ्न राज्य 

  • कन्याकुब्ज राज्य का दूसरा भाग शत्रुघ्न राज्य में टूटा था 
  • हवेनसांग के अनुसार इस राज्य के पूर्वी सीमा पर गंगा व उतर में हिमालय था और राज्य के मध्य में यमुना नदी बहती थी लेकिन कनिघंम ने अनुसार यह भाग सिरमौर गढवाल का हिस्सा | रहा होगा

गोविषाण राज्य

  • कन्याक्रुब्ज राज्य का तीसरा भाग गोविषाण राज्य में टूटा था 
  • गोविषाण काशीपुर का पुराना नाम था
  • कनिंघम के अनुसार गोविषाण राज्य में काशीपुर के साथ-साथ
  • रामपुर तथा पीलीभीत जनपद भी थे
  • गोविषाण राज्य का विस्तार रामगंगा से लेकर शारदा नदी तक था
  • कनिंघम ने काशीपुर के उज्जैन में बने पुराने खण्डहर को इस
  • राज्य से सम्बन्धित बताया

पलेठी शिलालेख -

  • देवप्रयाग के हिण्डोला खाल में पलेठी का सूर्य मंदिर 7वीं - 8वीं सदी के बीच का बना हुआ है
  • पलेठी का सूर्य मंदिर कल्याण वर्मन एवं नरपति वर्मन ने बनाया था

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