उत्तराखण्ड के तराई भाबर का इतिहास
- नैनीताल को अंग्रेजो ने संयुक्त प्रांत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई जो 1960-1962 तक राज्य की राजधानी बनी रही
- तराई भाबर क्षेत्र शिवालिक पर्वतो के तल पर स्थित दलदली जमीन व उपजाऊ भूमि है। इस क्षेत्र में थारू व बोक्सा जनजातियां रहती है।
- तराई क्षेत्र की लम्बाई 144 किमी व चौड़ाई 20 किमी है
- महाभारत काल में तराई क्षेत्र विदर्भ राजाओं के अधीन था, यही पांडवों ने अज्ञात वास का समय बिताया था
- चीनी यात्री हवेनसांग ने काशीपुर के लिए गोविषाण शब्द का प्रयोग किया
- 13 वीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान नसीरूददीन शाह व बलबन ने तराई-भाबर पर आक्रमण किया
- आइन-ए-अकबरी में तराई के 21 महलो का जिक्र हुआ है।
- अकबर के समय कुमाऊँ पर चंद वंश के राजा रूद्रचंद का शासन था उस समय मुगलों की ओर से रूद्रचंद ने नागौर की लड़ाई में प्रमुख योगदान दिया, जिससे प्रसन्न होकर अकबर ने तराई का एक भाग चौरासी माल या नौ लखिया माल रूद्रचंद को दिया
- अंग्रेजों के समय तराई-भाबर कुमाऊँ के अन्तर्गत था, ट्रैल ने
- 1818 में तराई भाग में अनाज की खेती बढ़ाने की कोशिश की
- 1850 में रैम्जे कुमाऊँ का असिस्टेंट कमिश्नर बना उसने तराई भाग में सिंचाई की व्यवस्था की
- 1891 में कुमाऊँ का कमिश्नर इरस्काइन था इसी के समय नैनीताल को अलग जिला बनाया गया था
- तल्ला देश टनकपुर को कहा जाता था
- तराई-भाबर के गांवो को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया
- 1. जमीदारी गांव
- 2. खाम गांव
- चंद राजाओं के छोटे भाई को रौतेला कहा जाता था जो काशीपुर की जमीन का सबसे बड़ा मालिक होता था
- 1906 ई0 में तराई क्षेत्र में कुमाऊँ भाबर खेतिहार न्यास निधि का गठन किया गया
- तराई -भाबर के पटवारी और कानूनगो की नियुक्त करने का नियम 1897 ई0 में तथा 1906 ई0 से लागू हुआ 1909 ई0 में तराई क्षेत्र में चराई का नियम और शुल्क का निर्धारण किया गया
- भाबर क्षेत्र में रामनगर, हल्द्वानी, कालाढूंगी व टनकपुर क्षेत्र और तराई में काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, किच्छा व खटीमा क्षेत्र आते
- तराई क्षेत्र को चंद काल में नौलखिया माल या चौरासी माल कहा जाता था
- चंद काल में तराई क्षेत्र में सात परगने थे-
- 1. सहजगीर (जसपुर)
- 2. कोटा (काशीपुर)
- 3. मुंडिया (बाजपुर)
- 4. गदरपुर
- 5. बुक्साड़ (रूद्रपुर और किलपुरी)
- 6. चिंकी
- 7. बक्शी (नानकमता)
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