उत्तराखण्ड इतिहास से महत्वपूर्ण तथ्य/Important facts from Uttarakhand History |
उत्तराखण्ड इतिहास से महत्वपूर्ण तथ्य
- वैदिक काल में उत्तराखण्ड में त्रित्सु जन का शासन था
- तारीख ए मुबारक शाही में कटेहर के हिन्दू राजा खड़क सिंह का कुमाऊँ भागने का वर्णन मिलता है।
- कत्यूरी प्रशासन में तहसील स्तर की प्रशासनिक ईकाई को कर्मान्त कहा जाता है
- बम्बई में सोशल सर्विस लीग की स्थापना एम एन जोशी ने की हैं
- कौशिक समिति ने उतराखण्ड में तीन मंडल बनाने की सिफारिश की
- मलारी ग्राम में कुतुप के हत्थे पर बना मोनाल का आकर्षक चित्र मिला
- देवलगढ प्रासाद पहाडी के शिखर पर अवस्थित है।
- सकलाना की जनता तिहाड कर के विरोध में 1851 को बद्री सिंह असवाल के नेतृत्व में अठुर विद्रोह किया था
- बारह आना बीसी भूव्यस्था 1861 में अठुर विद्रोह के परिणाम स्वरूप हुयी
- ट्रैल ने 1816 में सम्पूर्ण उतराखण्ड में डाक सेवा लागू की
- ट्रैल ने 1822 में कुमाऊँ में आबकारी विभाग की स्थापना की
- कर्नल गोबान ने बाल विक्रय व महिला विक्रय प्रथा का अंत किया
- 1000 गायों को दान करने वाला शासक राजा जगतचंद था
- स्टोवेल प्रेस की स्थापना 1912 में गिरिजा प्रसाद नैथानी ने की
- 1914 दुगडडा ने की में एकता सम्मेलन की अध्यक्षता नारायण सिंह ने की
- त्रिमलचंद की सोने का जनेऊ जागेश्वर मंदिर से प्राप्त हुआ था
- दक्षिण गढ़वाल का गढ़केसरी केशर सिंह रावत को कहा जाता है
- कुमाँऊ कमीश्नरी के अधीन 1839 में ब्रिटिश गढ़वाल और अल्मोंडा जिले थे, और 1891 में नैनीताल जिला बना
- 10 अप्रैल 1838 को उतराखण्ड रेगुलेशन प्रांत घोषित हुआ, था उसी समय से उतराखण्ड को किसी गर्वनर या डिप्टी गर्वनर के अधीन रखा गया था
- गार्डनर को संगोली की संधि की पुष्टि करने के लिए काठमांडू कोर्ट में कंपनी का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था
- ट्रैल ने स्ट्रैटिकल स्कैच ऑफ कुमाऊँनी नामक पुस्तक लिखी
- 1816 में अल्मोड़ा व श्रीनगर के मध्य डाक सेवा का शुभारम्भ किया गया था
- ट्रेल ने हरिद्वार से बद्रीनाथ व केदारनाथ तक सड़क निर्माण कराया
- ट्रेल ने भोटिया जनजाति को लगान की माफी दी थी 1837 जर्नल गोबान ने सदर अमीन का पद सृजित किया था
- हैलिट् बैटन के काल को कुमाऊँ में ब्रिटिश शासन के दौरान का स्वर्णिम युग कहा जाता है
- बैटन के समय कुमाऊँ कमीश्नर का कार्यालय अल्मोडा से नैनीताल स्थापित किया गया था 1858 में रैम्जे हिल रेजीमेंट की स्थापना की गयी
- नैनीताल को स्कूली शिक्षा का केन्द्र बनाने का मुख्य श्रेय हेनरी रैम्जे को जाता है
- 1835 ट्रेल ने रूद्रप्रयाग से केदारनाथ व ऊखीमठ से चमोली व कर्णप्रयाग से चाँदपुर गढ़ी तक सड़क निर्माण हुआ उतराखण्ड से प्राप्त प्रस्तर उपकरण को इतिहासकारों ने फ्लेक वर्ग के अन्तर्गत रखा, जिसके तहत स्क्रैपर्स, छेनी, अनि आदि आते है
- हटवाल घोड़ा शैलचित्र अल्मोंडा जिले से प्राप्त हुए ठडुंगा शैलचित्र उतरकाशी जिले से मिले
- नीति घाटी में स्थित मलारी के शवाधान मण्डलाकार थे
- सिस्ट ऐसी पत्थर संरचना जो मकबरों के रूप में प्रयुक्त होती थी, जिसका सम्बन्ध महाश्म संस्कृति से था दीर्घाश्म ऐसे अनगढ़ पत्थर थे जिसका प्रयोग महाश्म संस्कृति में अन्त्येश्टि किया विधानों में होता था
- एम0 पी0 जोशी ने कुमाऊँ से प्राप्त कपमार्क्स को 7 प्रकारों में विभाजित किया
- जोशी जी टॉक जनजाति व मूल्य जनजाति को महाश्म कालीन मानते है
- ऋग्वेद में उतराखण्ड का नाम उशीनगर भी मिलता है, बौद्ध साहित्य के अनुसार उशरिध्वज पर महात्मा बुद्ध गये थे जिसकी पहचान कनखल से की जाती है
- पर्वताकार राज्य का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण व वृहतसहिंता में मिलता है केदारखण्ड में मंदाकिनी को क्षीरधारा कहा गया है
- पश्चिमी रामगंगा को राठवाहिनी के नाम से जाना जाता है तालेश्वर ताम्रपत्र में संस्कृत भाषा व गुप्त ब्राहृमी लिपि का प्रयोग किया गया है
- पौरव वंश के सभी मंत्रियों के लिए राजमात्या का प्रयोग किया गया है
- तालेश्वर ताम्रपत्र में राजकुमार के लिए राजपुत्र का प्रयोग हुआ है
- तालेश्वर ताम्रपत्र में सन्धिविग्रहिक पद विदेश मंत्री के लिए प्रयुक्त हुआ हैं
- तालेश्वर ताम्रपत्र में दिविरपति पद लेखक वर्ग का प्रधान होता था, जो विष्णुवर्मन के ताम्र पत्र का लेखक दिविरपति धनदत्त थे कत्यूरी शासन में राजदौवारिक पद महल का प्रहरी होता था
- कुलसारी अभिलेख में जतबलदेव शासक का नाम मिलता है कार्तिकेयपुर वंश के मंत्रीपरिषद के लिए राजामात्य शब्द का प्रयोग हुआ है
- पांडुकेश्वर लेख में कुमारामात्य शब्द का प्रयोग हुआ है जो राजकुमार का मंत्री होता था
- अक्षपटलाधिकृत पद गृहमंत्री या भू-रिकार्ड अधिकारी से सम्बन्धित था, और महासन्धिविग्रहिक पद शांति के मंत्री या विदेश मंत्री का पद था
- विरूधावली शब्द का अर्थ उपाधि होता था
- पांडुकेश्वर लेख में तंगणपुर का वर्णन मिलता है, जो शौका, भोटिया का निवास स्थान माना जाता है
- कालसी शिलालेख यमुना और अम्लावा नदी के संगम पर है हरिपुर नामक पुरास्थल देहरादून जनपद में स्थित है
- बड़ावाला या जगतग्राम (देहरादून) में 4 अश्वमेघ यज्ञ होने का विवरण मिलता है, जिसमें एक गुप्तकालीन राजा शिवभावनी का जिक मिलता है।
- लाखामंडल में यमुना व मोरदगाड नदी के संगम पर छंग्लेश वंश के कुछ लेख प्राप्त हुए
- मतिपुर नामक पुरास्थल उतरप्रदेश के बिजनौर में पड़ता है
- बोधगया अभिलेख में कुमाऊँ के लिए कमादेश शब्द का प्रयोग मिलता है
- मुहम्मद बिन तुगलक के समय कारांजल अभियान का जिक मिलता है
- मानोदय काव्य में कुमाँऊ के लिए कुर्माचल शब्द का प्रयोग होता है
- रामायण काल में कुमाँऊ क्षेत्र को उतर कौशल भी कहा जाता था
- द्वाराहाट में मुनिया के ढाई पर्वत पर प्राचीनकाल में शैलचित्र के अवशेष प्राप्त हुए
- रुद्रप्रयाग से प्राप्त धारसिल शिलालेख का सम्बन्ध 29वें परमार राजा अनंतपाल से है
- पंवार कालीन समस्त ताम्रपत्र की भाषा गढ़वाली है
- उतरकाशी पुरोला से कुणिन्द कालीन मुद्रांए देवढुंगा से प्राप्त हुयी
- पंवार वंश में स्वयं की मुद्रा चलाने वाला पहला शासक लखनदेव 28वां शासक था
- गढ़वाल में 50 टका के बराबर 1 फरुखाबादी रुपया होता है
- एटकिंसन कत्यूरियों को कश्मीर के कटूरी या कटौर राजपूत का वंशज मानते है
- पाणिनी के अष्टाध्यायी में हिमालय के 7 जनपदो का उल्लेख मिलता है- कलकूट, कुलून, कत्रि काशिका, रंकु, उशीनगर, भारद्वाज रंकु का सम्बन्ध पिंडर घाटी से था व उशीनगर हरिद्वार व कनखल क्षेत्र को कहा गया
- पौडी के भैडागाँव व टिहरी के अटूड व थत्यूड में कुणिन्द कालीन मुद्राएं मिली
- कुणिन्द कालीन मुद्राओं में बाह्मी व खरोष्ठी लिपि का प्रयोग हुआ है
- खटीमा के पास कंचनपुरी में कुषाणकालीन 7 मुद्राएं प्राप्त हुई द्वित्रयी लेख वाली मुद्राओं का सम्बन्ध यौद्येय शासकों से था
- कत्यूरी राजा नर सिंह देव ने अपनी राजधानी स्थानांतरित कर बैजनाथ के आसपास बसाई थी
- 1857 ई० को कुमाँऊ में शिक्षा विभाग की स्थापना हुई
- कुमाँऊ में बालिका शिक्षा की शुरुआत 1867 से हुई
- 1951 में ठाकुर दान सिंह की मदद से देहरादून में D.B.S कॉलेज की स्थापना की गयी
- हठ विवाह व जीजा-साली विवाह रस्म का सम्बन्ध बुक्सा जनजाति से है
- सुर्दशन शाह के समय टिहरी राज्य चार परगनों में विभक्त था
- कमिश्नर ट्रैल द्वारा विवादों के आवेदन पत्र पर 8 आने का टिकट लगाने की परम्परा शुरू की गयी
- कीर्तिशाह के समय मुल्की रिवाज व ताजिरात-हिन्द पर आधारित विधि संहिता का निर्माण हुआ
- प्रतापशाह के समय चीफ कोर्ट व हजूर कोर्ट की स्थापना हुयी
- सुदर्शन शाह ने छोटी दीवानी व बड़ी दिवानी न्यायालयों की स्थापना की
- टिहरी में प्रजामंडल की स्थापना के पूर्व ढांडक आंदोलन नाम से रियासत की शोषक नीतियों के खिलाफ आन्दोलन हुए
- ब्रिटिश काल में माल एक भूमिकर व सायर गैर कृषि राजस्व कर होता था
- टिहरी रियासत में भूमिकर का 7/8 नकद के रूप में जिसे मामला नाम से व 1/8 भाग अन्न के रूप में जिसे विसाही या बरा नाम से जाना जाता था
- तराई क्षेत्र में नहरों सम्बन्धी मुख्य सुधार कैप्टन जोंस ने किया
- 1891 में ब्रिटिश कुमाँऊ के 6 परगनों व तराई जिले के 7 परगनों को मिलाकर नैनीताल जिले का निर्माण हुआ
- आठ कर युद्ध सम्बन्धी कर था, जो सेना के ठहरने के स्थान पर लिया जाता था
- गाँव के मुख्य राजस्व संग्रहकर्ता को गढ़वाल के दक्षिण में कमीण व गढवाल के उतर में सयाणा व भोटिया लोग बूढ़ा या थोकदार कहते है
- गोरखा शासन में कानून गो को दफ्तरी कहा जाता था
- 1858 ई0 में रैम्जे ने जंगलों में ठेका प्रथा को बंद किया और 1861 ई० में जंगलात बंदोबस्त कराया
- 1921 में कुमाऊँ कमीश्नरी की जनता को विधानसभा में प्रतिनिधि भेजने का अधिकार प्राप्त हुआ
- 1921 विधानसभा चुनाव में अल्मोंडा से कुँवर आनंद सिंह निर्वाचित हुए, नैनीताल से नारायण दत हिन्दवाल व गढ़वाल से जोध सिंह निर्वाचित हुये
- संयुक्त प्रांत की काउंसिल में साइमन कमीशन के बहिष्कार का प्रस्ताव मुकुन्दी लाल ने रखा
- सल्ट में साइमन कमीशन के विरोध का नेतृत्व हरगोविन्द पंत ने कराया
- किस्सा खानी बाजार का सम्बन्ध पेशावर कांड से है ।
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