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परमार शासक /Parmar Ruler

 परमार शासक /Parmar Ruler

परमार शासक /Parmar Ruler

परमार शासक कनकपाल

  • 9वीं शताब्दी में गढ़वाल में 52 ठकुरी राजाओं का शासन था 
  • इन 52 गढ़ो में एक चाँदपुर गढ़ था।
  • चाँदपुर गढ़ का राजा भानुप्रताप को सोनपाल भी कहते थे 
  • हरिकृष्ण रतूड़ी व एटकिंसन अनुसार कनकपाल धार नगरी
  • गुजरात से चांदपुर गढ़ तीर्थयात्रा पर आया था 
  • सोनपाल ने अपनी पुत्री का विवाह कनक पाल से कर दिया
  • कनकपाल नें परमार वंश की स्थापना चांदपुर गढ़ में 888 ई0 में किया, तिथि सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद है
  • चांदपुर गढ़ चमोली में पड़ता है, यही पंवार शासको की प्रथम राजधानी थी
  • पातीराम ने अपनी पुस्तक गढ़वाल एनशियन्ट एन्ड मॉर्डन मे लिखा कि कनकपाल मालवा से आये
  • कनकपाल गुर्जर देश से यहां आए, गुजरात व मालवा का एक भाग गुर्जर देश में पड़ता था,
  • गुर्जर प्रदेश से कनकपाल के आने का प्रमाण आदि बदरी मंदिर है जिसकी रचना शैली गुजरात के सोलंकी मंदिर से मिलती
  • सुदर्शन शाह के सभासार ग्रंथ में लिखा है कि वह परमार वंश हैं
  • मणिकलाल मुंशी द्वारा रचित पुस्तक दिग्लोरी दैट वाज गुजर में मालवा व गुजरात के भाग को गुर्जर देश बताया 
  • भारतीय लोक साहित्य पुस्तक के लेखक श्याम परमार ने पवांड़ा शब्द की जानकारी दी
  • मोलाराम व हार्डविक वंशावली में कनकपाल के स्थान पर दूसरा नाम बताते है
  • कौनपुर गढ़ को कनकपाल का गढ़ माना जाता है

 परमार शासक अजयपाल से पूर्व परमार शासक

  • चमोली जनपद के सुकण्ड ग्राम में सुरपाल या सुरतिपाल का अभिलेख प्राप्त हुआ
  • सुरतिपाल परमार वंश का 15 वां शासक था
  • परमारों के 24वें राजा सोनपाल की राजधानी भिल्लंग घाटी में थी, आज भी इस घाटी को सोनी-भिल्लंग कहा जाता है।
  • परमारों के 28वें राजा लखणदेवपाल की एक ताम्र मुद्रा प्राप्त हुयी
  • 34 वां शासक जगतपाल का 1455 ई० का एक ताम्रपत्र देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर से प्राप्त हुआ
  • इस ताम्रपत्र में जगतपाल को रजबार कहा गया है

 परमार शासक अजयपाल

  • अजयपाल गढ़वाल के परमार वंश का 37 वां राजा था • राहुल सांकृत्यायन ने अजयपाल को पंवार वंश का संस्थापक माना
  • रायबहादुर पातीराम ने अजयपाल को गढ़पाल से सम्बोधित किया
  • अजयपाल चाँदपुर गढ़ के गढपति आनन्दपाल के पुत्र थे 
  • अजयपाल ने 52 गढ़ों को अपने बाहुबल से जीता था
  • अजयपाल का कार्यकाल 1490 ई0 से 1519 ई0 तक था 
  • 1491 में कुमाऊँ के कीर्तिचंद ने अजयपाल को बधाण गढ़ के में हराया था युद्ध
  • अजयपाल ने अपनी राजधानी देवलगढ़ 1512 ई० में राजप्रासाद बनवाया और अजयपाल ने 1517 ई० को राजधानी श्रीनगर स्थानान्तरित की
  • देवलगढ़ में अजयपाल ने अपनी कुलदेवी राजराजेश्वरी का मंदिर बनवाया था
  • अजयपाल ने देवलगढ़ में सत्यनाथभैरव गुफा का जीर्णोद्धार करवाया था
  • अजयपाल ने श्रीनगर में कालिका देवी मठ का निर्माण करवाया
  • अजयपाल ने सरोला ब्रह्मणों की नियुक्ति की थी
  • अजयपाल ने प्रसिद्ध मापतौल का मापक पाथा का प्रचलन किया था धुलीपाथा का प्रचलन भी अजयपाल ने किया था
  • अजयपाल को गढ़वाल का अशोक कहा जाता है प्रो0 अजय सिंह रावत ने अजयपाल की तुलना अशोक से की है
  • कवि भरत के मानोदय काव्य में अजयपाल की तुलना कृष्ण, भीम, कुबेर, इन्द्र से की गयी है
  • गढ़वाल का कृष्ण अजयपाल को कहा जाता है
  • अजयपाल गोरखनाथ पंत का अनुयायी था 
  • गोरखनाथ पंत के अन्य अनुयायी भर्तृहरि व गोपीचंद थे
  • गोरखनाथ एन्ड द कनफटा योगीज ग्रंथ के लेखक जार्ज डब्ल्यू ब्रिग्स थे
  • नवनाथ कथा ग्रंथ में अजयपाल को गोरखनाथ सम्प्रदाय के 84 सिद्धों में एक सिद्ध माना जाता है।
  • गाँवरी ग्रंथ के लेखक डा० शूरवीर सिंह का हस्तलिखित ग्रंथ है
  • साँवरी ग्रंथ में अजयपाल को आदिनाथ कहा गया 
  • साँवरी ग्रंथ तांत्रिक विद्या पर आधारित पुस्तक थी
  • देवलगढ़ में विष्णु मन्दिर के सामने की दीवार पर अजयपाल का पद्मासन की मुद्रा मे चित्र बना है
  • अजयपाल की मृत्यु 1519 ई0 में हुयी
  • अजयपाल का उत्तराधिकारी कल्याण शाह था

 परमार शासक कफ्फ चौहान

  • कफ्फू चौहान उप्पू गढ़ के सरदार थे
  • कफ्फू चौहान का कथन था कि मैं पशुओं में सिंह और पक्षियों में गरुड़ की तरह हूँ
  • कफ्फू चौहान के लिए अजयपाल ने कहा था वीर तुम जीत गए और मैं हार गया
  • अजयपाल का अंतिम युद्ध उप्पू गढ़ या उदयपुर पर ही था 
  • जयपाल ने स्वयं कफ्फू चौहान को मुखाग्नि दी थी

 परमार शासक सहजपाल

  • देवप्रयाग क्षेत्रपाल मन्दिर के द्वार पर एक शिलालेख 42वें राजा सहजपाल का है, जो 1548 ई0 का है
  • देवप्रयाग रघुनाथ मन्दिर में घन्टी पर लेख है जो राजा सहजपाल 1561 ई० का लेख है
  • सहजपाल का शासन सन् 1548 ई0 से 1575 ई0 तक था
  • सहजपाल अकबर के समकालीन था
  • सहज पाल को वीर गुणज्ञ सुखद प्रजाया कहा गया • इसके समय अकबर ने गंगा का स्रोत खोजने के लिए एक दल भेजा था

 परमार शासक बलभद्र शाह

  • सहजपाल के बाद 43वें राजा बलभद्र शाह थे
  • बलभद्र शाह के उपनाम बलराम, दुलारामशाह व बहादुर मिलता है।
  • बलभद्र शाह के समय राजदूत भेजने की प्रथा प्रारम्भ हुयी थी
  • 1581 में ग्वालदम का युद्ध बलभद्रशाह व रूद्रचंद के बीच हुआ
  • शिव प्रसाद डबराल युद्ध की तिथि 1591 ई0 मानते है
  • ग्वालदम युद्ध में रूद्रचंद की हार के साथ सेनापति पुरूषोतम पंत की मृत्यु हुयी थी
  • कवि देवराज ने बलभद्र शाह की तुलना भीम से की थी
  • बलभद्र शाह प्रथम राजा थे जिन्होंने अपने नाम के आगे शाह की उपाधि धारण की थी
  • परन्तु कल्याण शाह के नाम के आगे भी शाह लगा हुआ था • भक्तदर्शन के अनुसार परमारों को शाह उपाधि औंरगजेब ने दी है। 
  • शाह उपाधि के बारे में कोई भी तर्क सही नहीं है मगर हम यह कह सकते हैं कि बलभद्र शाह के बाद ही क्रमागत शाह उपाधि का प्रयोग हुआ है।
  • लोग कहते हैं कि परमारों को शाह की उपाधि लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने दी थी

 परमार शासक मानशाह

  • मानशाह 44 वें राजा थे, जो बलभद्र शाह का उतराधिकारी था 
  • मानशाह के लेख देवप्रयाग के क्षेत्रपाल मंदिर (1608ई0) व रघुनाथ मंदिर (1610 ई0) से मिले
  • मानशाह का शासनकाल 1591 ई0 से 1611 ई0 तक था 
  • मानशाह के काल में चंद शासक लक्ष्मीचंद ने 7 बार गढ़वाल पर आक्रमण किए और हार का मुँह देखना पड़ा
  • 1605 ई० युद्ध में गढ़वाल सेनानायक खतड़ सिह मारा गया, इसी कारण कुमाऊँ में खतडुवा महोत्सव मनाया जाता है
  • बद्रीदत पांडे के अनुसार मानशाह का सेनापति नन्दी था 
  • मानशाह के समय गढ़वाल कवि भरत था जिसने मानोदय काव्य की रचना की
  • मानोदय काव्य की रचना संस्कृत भाषा में हुयी • मानोदय काव्य में मानशाह को सूर्य के समान तेजस्वी व राजा बलि के समान दानवान बताया गया है
  • कवि भरत को जहाँगीर द्वारा ज्योतिकराय की उपाधि दी गयी
  • मानशाह के समय के 4 अभिलेख प्राप्त हुये
  • मानशाह ने श्रीनगर के अन्तर्गत मानपुर नामक नगर बसाया 
  • फोस्टर ने अपनी पुस्तक में यूरोपीय यात्री विलियम की 1608-1611 तक की यात्रा का वर्णन किया है
  • मानशाह ने पश्चिम में तिब्बत का दाबा प्रांत जीता था
  • दाबा प्रांत का राजा मानशाह को सवा सेर सोना और एक चार सींग वाला मेंढा कर के रूप में देता था
  • मानशाह ने स्वर्ण कलश को देवलगढ़ के गौरजा मंदिर में समर्पित कर दिया
  • मानशाह अकबर व जहाँगीर के समकालीन था, और चंद राजा लक्ष्मीचंद के समकालीन था

जीतू बगड़वाल

  • जीतू बगड़वाल बगुड़ी गांव टिहरी का रहने वाला था
  • जीतू बगड़वाल के पिता का नाम गरीबाराई था
  • जीतू बगड़वाल की माता का नाम सुमेरू थी
  • जीतू बगड़वाल के समय देवलगढ़ का शासक मानशाह था
  • बगोडी के सेरा से जीतू बगडवाल को उसके बैलो सहित आंछरियों ने हर दिया था

 परमार शासक श्यामशाह

  • श्यामशाह का शासन काल 1611 ई0 से 1630 तक था 
  • 45वें राजा का उल्लेख जहाँगीर नामा में मिलता है।
  • मुगल दरबार ने श्रीनगर शासक श्याम शाह को घोड़े व हाथी उपहार में दिए गये थे
  • श्याम शाह की मुगल राजा जहांगीर से भेंट हुई थी • श्यामशाह ने भी दाबा प्रांत जीतकर एक सेर स्वर्ण चूर व एक
  • चंवर गाय कर के रूप में प्राप्त की
  • श्यामशाह के समय सती प्रथा का उल्लेख मिलता है
  • श्यामशाह के समय राजगुरू शंकरदेव थे
  • श्यामशाह के समय वास्तु शिरोमणि ग्रंथ की रचना हुई, रचनाकार कवि शंकरदेव थे
  • श्यामशाह ने श्रीनगर में श्यामशाही बाग बनवाया
  • श्यामशाह ने सिलसारी नामक ग्राम में कुछ अंश शिवनाथ जोगी को दान में दिए
  • श्यामशाह को विलासी राजा की उपमा दी गयी
  • इसकी मृत्यु के पश्चात इसकी 60 रानियां सती हुई थी
  • श्यामशाह की कोई सन्तान नही थी
  • 1625 में केशवराय मठ की स्थापना महिपति शाह ने श्रीनगर में की
  • केशोराय मठ के द्वार पर उत्कीर्ण लेख में महिपति शाह का नाम आता है, इससे लगता है परिवार में श्रेष्ठ होने के नाते इसका निर्माण महिपति शाह ने करवाया होगा
  • देवलगढ़ में सत्यनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 1626 ई0 में हुआ था
  • हरीकृष्ण रतूड़ी ने श्यामशाह राज्य काल की अंतिम अवधि 1629 ई० बतायी
  • पादरी एजवेड़ो ने 1631 को श्रीनगर में गढ़नरेश का दाहसंस्कार देखा था, जो सम्भवतः श्यामशाह ही था

 परमार शासक महिपति शाह

  • महिपति शाह को गर्व भंजन कहा जाता है इसके राज्यरोहण की तिथि हरिकृष्ण रतूड़ी ने 1629 ई0 डबराल ने 1631 ई0 अजयसिंह रावत ने 1622 ई० बताया है
  • इसके पिता का नाम दुलाराम या रामशाह था
  • सबसे अधिक उम्र में राजा बनने वाला गढ़वाल शासक था
  • मुगल लेखो में इसे अक्खड राजा कहा गया, क्योंकि वह शाहजहाँ के राज्यभिषेक में शामिल नहीं हुआ था
  • महिपति शाह ने तिब्बत पर तीन आक्रमण किए, जिसका एन्ड्राडे ने वर्णन किया है।
  • सी बैसिल्स द्वारा रचित अर्ली जैसूट ट्रैवल्स इन सेन्ट्रल एशिया में एन्ड्राडे का यात्रावृतांत लिखा गया है
  • एनड्राडे और उसका सहयात्री माविस था, जो ईसाई धर्म के प्रचार के लिए महिपति शाह के समय गढ़वाल आए थे
  • महिपति शाह ने भूलवंश कुछ नागा साधुओं की हत्या कर दी थी
  • इसकी आत्मग्लानि के कारण वह ऋषिकेश भरत मंदिर में तपस्या करने गए
  • नागा साधुओं का पाप धोने के लिए महिपति शाह ने कुमाऊँ युद्ध में बलिदान दे दिया
  • रोटी सूची प्रथा का प्रारम्भ महिपति शाह ने किया 
  • महिपति शाह के सेनापति माधो सिंह भण्डारी, रिखोला लोदी और बनवारी दास थे
  • बनवारी दास सेनापति चित्रकार मौलाराम वंशज के परिवार का सदस्य था
  • रिखोला लोदी ने सिरमौर, तिब्बत एंव गढ़वाल के दक्षिण भाग जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
  • मौलाराम ने महिपति शाह को महाप्रचण्ड भुजदंड कहा 
  • कर्णावती महिपति शाह की पत्नी थी
  • कर्णावती को ताराबाई और गोलकुण्डा की दुर्गावती उपनाम से भी जाना जाता है
  • कर्णावती ने देहरादून में करनपुर नगर बसाया

माधो सिंह भंडारी

  • माधों सिंह को गर्व भंजक कहा जाता है 
  • माधो सिह का जन्म मलेथा टिहरी गढ़वाल में हुआ था
  • माधो सिंह के पिता का नाम कालू भंडारी था
  • देवप्रयाग रघुनाथ मंदिर के द्वार पर एक अभिलेख मिला जिसमें माधोसिंह भंडारी के पुत्र गजेसिंह व पुत्रबहु मथुरा बौराणी का उल्लेख मिलता है
  • 1640 ई0 में रानी कर्णावती का ताम्रलेख मिला, जिसमें चमोली के एक ब्राह्मण को भूमि दान की, जिसमें माधो सिंह को साक्षी माना गया है इस ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि चीन का तुमुल युद्ध 1640 ई0 के आसपास हुआ होगा
  • माधो सिंह छोटा चीन के तुमुल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए
  • माधो सिंह की मृत्यु सतलज नदी के तट पर हुयी 
  • पृथ्वीपति शाह के समय भी सेनानायक रहा होगा
  • माधों सिंह ने मलेथा की गूल का निर्माण किया
  • मलेथा की गूल या सुंरग छेणाधार पहाड़ी पर बनाई और चकमा नदी या डागर नदी से पानी निकाला था
  • मलेथा की गूल की लम्बाई लगभग 225 फीट थी

रानी कर्णावती

  • महिपति शाह की मृत्यु के बाद पृथ्वी पति शाह शासक बना, जो अल्पव्यस्क था
  • पृथ्वीपति शाह की संरक्षिका महारानी कर्णावती बनी
  • 1636 ई0 में मुगल सेनापति (शाहजंहा) नवाजत खां ने दून घाटी पर आक्रमण किया, उस समय गढ़वाल की संरक्षिका कर्णावती थी, जिसकी सूझ-बूझ से मुगल सैनिको को पकड़कर उनके नाक कटवा दिए, तब से नाक कटनी रानी कहा जाता है
  • शिवप्रसाद डबराल ने रानी कर्णावती को नाक कटनी रानी के नाम से पुकारा है 
  • निकोलस मनूची ने अपनी पुस्तक स्टोरियो डू मोगोर में कर्णावती को साक्षात दुर्गा कहा है
  • कर्णावती के समय दून घाटी की राजधानी नवादा थी
  • देहरादून में रानी कर्णावती ने करनपुर गांव बसाया था

 परमार शासक पृथ्वीपति शाह

  • पृथ्वी पति गद्दी पर बैठते समय 7 वर्ष का था
  • 1640 ई0 में पृथ्वीपति शाह का राज्यभिषेक हुआ पृथ्वी पति शाह की संरक्षिका महारानी कर्णावती थी
  • पृथ्वीपति शाह ने देहरादून में पृथ्वीपुर शहर बसाया 
  • इसने राजगढी नामक स्थान को दूसरी राजधानी बनायी और वहां का राजा दीलिप शाह को बनाया
  • मुगल राजा शाहजहां ने 1655 ई0 में खलीतुल्ला कासिम खां के नेतृत्व में गढ़ राज्य की सीमाओं को घेर लिया था
  • चंद राजा बहादुरचंद व सिरमौर राजा मेधांता प्रकाश ने मुगल सेना का साथ दिया, तीनों सेनाओं ने दून घाटी पर विजय प्राप्त की
  • पृथ्वी पति शाह द्वारा मुगल शहजादा सुलेमान शिकोह को 1658ई0 में शरण दी थी सुलेमान शिकोह को अभागा शहजादा कहा जाता है
  • दारा शिकोह को लघु अकबर कहा जाता है।
  •  सुलेमान शिकोह ने 17 आदमियों के साथ गढ़वाल में शरण ली सुलेमान को पकड़ने के लिए औरंगजेब ने जयसिंह को गढ़वाल भेजा था
  • मेदनीशाह और रामसिंह ने मिलकर सुलेमान शिकोह को 1660ई0 में दिल्ली दरबार में पेश किया।
  • पृथ्वी पति शाह के पुत्र मेदनीशाह ने सुलेमान शिकोह को औरंगजेब को सौपा था
  • पृथ्वी पति शाह ने मेदनी शाह को देश निकाला दिया।
  • पराक्रमी राजा का डरपोक पुत्र मेदनी शाह को कहा जाता है।
  • मेदनीशाह की दिल्ली में 1662 ई० में मृत्यु की खबर औरंगजेब ने पत्र लिखकर पृथ्वी पति शाह को दी
  • ट्रैवर्नियर ने अपनी पुस्तक ट्रैवल्स इन इंडिया में गढ़ राज्य के बहादुरी की प्रशंसा की है
  • हाटकोटी की संधि पृथ्वीपति शाह व मन्धाता प्रकाश के बीच हुयी • औरगंजेब का 1665 ई0 का पत्र जिसमें फतेह शाह को राजा बनने की बधाई देता है
  • पृथ्वीपति शाह ने लगभग 1664 ई0 में गददी त्यागकर अपने पौत्र फतेहशाह को राजा बनाया था और 1667 ई० में पृथ्वीपति शाह की मृत्यु के बाद उसका पौत्र फतेहशाह राजा बना

 परमार शासक फतेह शाह

  • गढ़वाल का शिवाजी फतेह शाह को कहा जाता है 
  • फतेह शाह का गुरू गोविन्द सिंह की भांति घोड़े पर बैठा चित्र
  • मिलता है, इस चित्र में उनकी उम्र 33 वर्ष लिखी गई है हरीकृष्ण रतूड़ी के मुताबिक फतेह शाह की संरक्षिका राजमाता कटौची थी
  • मतिराम ने फतेह शाह के समय को गढवाल का स्वर्ण काल कहा।
  • भँगाणी का युद्ध गुरु गोविन्द सिंह एवं फतेहशाह के बीच 18 सि0 सितम्बर 1688 ई0 में हुआ इस युद्ध का वर्णन गुरू गोविन्द सिंह की आत्मकथा विचित्र नाटक में मिलता है
  • फतेह शाह ने अपनी पुत्री का विवाह बिलासपुर के राजा भीमचंद के पुत्र से किया था
  • मैमोयर्स आफ देहरादून के लेखक आर० सी० विलियम्स थे।
  • मैमोयर्स आफ देहरादून में लिखा है कि फतेहशाह ने सहारनपुर पर आक्रमण किया और फतेहपुर नगर बसाया
  • गढ़वाल का अकबर फतेहशाह को कहा जाता है, क्योंकि इनके दरबार में नवरत्न थे
  • नवरत्न में प्रमुख श्री शशीधर डंगवाल, हरिदत नौटियाल, हरिदत थपलियाल, सहदेव चन्दोला आदि थे
  • फतेह शाह ने गुरू रामराय को अपने दरबार में बुलाया और देहरादून में गुरुद्वारा बनाने में मदद की
  • फतेह शाह ने गुरुद्वारा की आय हेतु तीन ग्राम खुड़बुड़ा, राजपुर, चामासारी दान में दिए थे
  • जबकि फतेहशाह के पौत्र प्रदीपशाह ने चार गाँव छायावाला, भूजनवाला, पंडितवारी और घाटवाला गुरुद्वारा को दान में दिए
  • फतेहशाह ने समुद्रगुप्त की भांति मुद्रालेख लिखवाया था
  • फतेहशाह का उत्तराधिकारी उपेन्द्रशाह था
  • मोलाराम ने उपेन्द्रशाह को प्रीतमशाह कहा
  • उपेन्द्रशाह ने लगभग 1 वर्ष शासन किया
  • उपेन्द्रशाह की मृत्यु दीपावली के दिन हुयी

 परमार शासक फतेहशाह के दरबारी

  • रत्न कवि, जटाधर व मतिराम फतेहशाह के दरबारी कवि थे
  • फतेहशाह कर्ण ग्रंथ के रचयिता श्री जटाधर थे
  • श्री रत्न कवि का हस्त लिखित ग्रंथ फतेह प्रकाश है
  • रत्नकवि का दूसरा नाम क्षेमराज था
  • रत्न कवि ने फतेह शाह को हिन्दुओं का रक्षक, शील का सागर भी कहा था
  • रत्नकवि के अनुसार फतेहशाह के समय इतनी शांति थी कि लोग अपने घरों में ताले तक नहीं लगाते थे
  • ग्रंथ वृत्त कौमुदी या छन्दसार पिंगल की रचना कवि मतिराम द्वारा की गयी है।
  • मतिराम का रसराज ग्रंथ श्रीनगर के चित्रकार मंगतराम तुंवर को समर्पित है
  • कविराज सुखदेव ने अपने ग्रंथ वृत्त विचार में फतेह शाह की वीरता का वर्णन किया है
  • फतेहप्रकाश ग्रंथ का सम्पादन ठा० शूरवीर सिंह ने किया
  • फतेहशाह यशोवर्णनम् पुस्तक के रचयिता रामचंद्र थे
  • फतेहशाह की कीर्ति सुनकर शिवराज भूषण व नीलकण्ठ या जटाशंकर ने श्रीनगर की यात्रा की

 परमार शासक राजा प्रदीपशाह

  • प्रदीपशाह का शासनकाल 1717 ई0 से 1757 ई0 तक था, लखनऊ संग्रहालय में रखे सिक्के के आधार पर आधारित है।
  • प्रदीप शाह के मिले दानपत्र के आधार पर 1717 ई0 से 1772 ई० तक माना गया है।
  • प्रदीप शाह की संरक्षिका कनक देई और इसके पिता का नाम दिलीप शाह था
  • प्रदीपशाह का दीवान रघुपति चौथा था
  • प्रदीप शाह के सेनापति या बजीर का नाम चंद्रमणि डंगवाल और रंगी बिष्ट था
  • प्रदीपशाह का बख्शी विद्याधर डोभाल था
  • प्रदीप शाह ने मौलाराम तोमर चित्रकार को संरक्षण प्रदान किया
  • प्रदीपशाह ने दून की राजधानी नवादा से हटाकर धामूवाला में स्थापित की थी
  • प्रदीपशाह का दरबारी कवि मेधाकर शर्मा था, जिसने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम रामायण प्रदीप है
  • प्रदीपशाह के काल दरबारी संयंत्रों में पाँच भाई कठैतो का नाम आता है, जो सादर सिंह कठैत के पुत्र थे
  • पांच भाई कठैतों का वध पंचभैयाखाल (पौड़ी) में किया गया, 
  • प्रदीपशाह के समय कुमाऊँ पर 1743 ई0 में रोहेला आक्रमण अली मोहम्मद के नेतृत्व में हुआ
  • प्रदीपशाह ने चंद शासक कल्याण चंद चतुर्थ की सहायता की
  • रोहेलों के साथ संधि के तहत कल्याण चंद पर 3 लाख रूपये की मांग की, जो राशि प्रदीप शाह ने उदार के तहत चंद शासक को दी
  •  सहारनपुर के रोहेला सरदार नजीब खां 1757 ई0 में दून पर आक्रमण किया 
  • 1757ई0 से 1770 ई0 तक दून पर नजीबुद्दौला या नजीब खां का अधिकार रहा प्रदीपशाह का कार्यकाल चंद व पंवार वंश की मित्रता के लिए जाना जाता है।

 परमार शासक ललितशाह

  • ललितशाह 1772 ई0 में गद्दी पर बैठा
  • इसके समय कुमाऊँ का शासक दीपचंद था, जिसके शासन पर मोहनचंद ने कब्जा कर लिया था
  • ललितशाह के समय सिखों ने दो बार 1775 और 1778 ई० देहरादून पर आक्रमण किए 
  • ललित शाह व सिखों के बीच सिरमौर का युद्ध 1779 ई0 में हुआ
  • हर्षदेव जोशी ने ललितशाह को कूर्मांचल विजय के लिए आमंत्रित किया था
  • बग्वाली पोखर का युद्ध भी 1779 ई0 में ललितशाह व मोहनचंद के बीच हुआ 
  • ललितशाह ने कुमाऊँ पर आक्रमण किया और मोहनचंद युद्ध से भाग गया था
  • ललितशाह ने प्रद्युम्न शाह को कुमाँऊ की गद्दी पर बैठा दिया
  • हर्षदेव जोशी प्रद्युम्न शाह का प्रधानमंत्री बना
  • प्रद्युम्न शाह ने अपने आप को दीपचंद का दत्तक पुत्र घोषित किया था
  • ललितशाह क चार पुत्र थे 1. जयकृत शाह, 2. प्रधुम्न शाह, 3. पराक्रम शाह 4. प्रीतमशाह
  • ललितशाह की मृत्यु हवालबाग (दुलड़ी) नामक स्थान पर मलेरिया के कारण हुयी
  • प्रद्युम्न शाह डोटयाली राणी का पुत्र था 
  • ललितशाह का उत्तराधिकारी जयकृत शाह था

 परमार शासक जयकृत शाह

  • जयकृत शाह क्यूंठली राणी का पुत्र था
  • इसके बाद जयकृत शाह 1780 - 1785 ई0 तक गद्दी पर बैठा
  • जयकृत शाह के समय वजीर जयदेव डंगवाल था
  • जयकृत दरबारी आपस में दो दलो में बंट गए, जहां एक ओर खण्डूरी व दूसरी ओर डोभाल में बंट गए
  • जयकृत शाह के समय कृपाराम डोभाल मुख्तार था जयकृत शाह के समय नित्यानंद खंडूरी फौजदार था
  • कृपाराम डोभाल ने खण्डुरी दल को दबाने तथा नेगी दल के विरुद्ध विद्रोह कर दिया
  • फिर दून के फौजदार घमण्ड़ सिंह श्रीनगर गया और कृपाराम डोभाल की हत्या करके स्वयं मुख्तार बना
  • राजा घमण्ड सिंह के हाथों की पुतली बन कर रह गया।
  • राजा ने सिरमौर के राजा जगतप्रकाश के यहां दूत भिजवाया
  • जगत प्रकाश ने कपरौली के युद्ध में प्रद्युम्न, पराक्रम व विजयराम नेगी की सेना को संयुक्त रूप से हराया
  • जगत प्रकाश श्रीनगर आकर घमण्ड सिंह का वध कर दिया 
  • सिख आक्रमणों से बचने के लिए जयकृत शाह ने सिखों को एक कर दिया जिसका नाम राखी कर था
  • 1786 ई0 में जयकृत शाह ने श्री रघुनाथ मंदिर में अपने जीवन का अंत कर दिया

 परमार शासक प्रधुम्न शाह

  • बद्रीदत पांडे के अनुसार प्रद्युम्न शाह गढ़वाल व कुमाँऊ का संयुक्त शासक नियुक्त किया गया
  • प्रद्युम्न शाह का शासन काल 1786 ई0-1804 ई0 तक रहा 
  • रामी व धरणी खण्डूरी भाई प्रद्युम्न शाह के राज्य में मंत्री थे 
  • हर्षदेव जोशी ने प्रधुम्न शाह के प्रतिनिधि के रूप में कुमाँऊ पर शासन किया
  • लेकिन मोहनचंद व लालसिह ने कुमाँऊ पर अधिकार कर लिया 
  • हर्षदेव जोशी के आमंत्रण पर गोरखों ने अल्मोडा पर 1790 में कब्जा किया था
  • 1791 गढ़वाल पर गोरखों ने आक्रमण किया, लंगूरगढ़ में गोरखाओं को हार का सामना करना पड़ा
  • 1791 में पराजित गोरखाओं से 25000 वार्षिक कर देकर शत्रुओं से राज्य की रक्षा की
  • सम्वत् 1851-52 ई० अर्थात 1795 ई0 में गढ़वाल में भयंकर अकाल पड़ा, इसको गढ़वाल में इकावनी-बावनी के नाम से जाना जाता है
  • बावनी शब्द का प्रयोग गढ़वाल में भंयकर अकाल के लिए प्रयोग होता है और 1803 ई० में गढ़वाल में भयंकर भूकम्प आया
  • गोरखों ने अमर सिंह थापा व हस्तीदल चौतरिया के नेतृत्व में आपदा ग्रस्त गढ़वाल पर आक्रमण किया
  • वैली ऑफ दून के लेखक ए० आर० गिल है।
  • गढ़नरेश ने बहुमूल्य सिंहासन और आभूषण सहारनपुर में बेचकर 12000 सैनिकों की सेना बनायी
  • लन्डौर के गूजर राजा रायदयाल सिंह ने गढ़पति की सहायता की 
  • 14 मई 1804 को खुड़बुडा के मैदान में प्रधुम्न शाह वीरगति को प्राप्त हो गया
  • प्रद्युम्न शाह का एक पुत्र प्रीतम शाह को गोरखाओं ने बंदी बनाया अक्टूबर 1814 ई0 में सुदर्शन शाह के कहने पर लार्ड हेस्टिगंज ने गोरखाओं के विरूद्ध अग्रेंजी सेना भेज दी
  • गढ़वाल का विलासी राजा पराक्रम शाह को कहा जाता है
  • मौलाराम के गढ़गीता संग्राम या गणिका नाटक में पराक्रम शाह के अत्याचारों का वर्णन मिलता है।
  • इसके अनुसार पराक्रम शाह ने मौलाराम की गणिका छीन ली व प्रधुम्न शाह के वफादार मंत्री रामी व धरणी की हत्या करा दी
  • प्रद्युम्न शाह के भाई प्रेम के कारण गोरखों के साथ युद्ध में शहीद हो गए अतः हम कह सकते है कि प्रद्युम्नशाह गढ़वाल का हुमांयू था

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