कुली बेगार प्रथा
- कुली बेगार प्रथा ब्रिटिश कुमाऊँ में 1815 से 1921 ई0 तक रही
- कुली बेगार आन्दोलन को रक्तहीन क्रांति की संज्ञा गांधी जी नें दी थी
- कमिश्नर ट्रैल ने कुली बेगार को खत्म करने के लिए 1822 ई0 में खच्चर सेना को विकसित करने का प्रयास किया
- 1857 में रैम्जे ने कुली के काम में जेल के कैदियों को लगाया था 1903 में जब लार्ड कर्जन अल्मोड़ा होते हुए गढ़वाल जा रहे थे तो गौरी दत बिष्ट ने उनसे कुली बेगार के सम्बन्ध में चर्चा की
- 1908 ई0 में जोध सिंह नेगी ने कुली एजेंसी की स्थापना की
- कुली एजेंसी का नाम ट्रांसपोर्ट एंड पावर सप्लाई को-ऑपरेटिव एसोसिएशन रखा गया
- 1913 तक गढ़वाल में कुल 10 कुली एजेंसिया थी
- कुली एजेंसी के संचालन के लिए एक समिति बनायी गयी, जिसका नेतृत्व तारादत गैरोला ने किया
- 14 जनवरी 1921 बद्रीदत पांडे हरगोविन्द पंत व चिरंजीलाल आदि के नेतृत्व में बागेश्वर के सरयू नदी के तट पर उतरायणी मेले के दिन 40 हजार स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा कुली बेगार न करने की शपथ ली और इससे सम्बन्धित रजिस्टर सरयू नदी में बहा दिए गये
- कुली बेगार के समय डिप्टी कमिश्नर डायबिल था
- 30 जनवरी 1921 में गढ़वाल में एक सभा चमेठा खाल में हुयी, जिसके अध्यक्ष मुकुन्दी लाल थे
- मार्च 1921 में मोहन सिंह मेहता को गिरफ्तार कर लिया गया, कुमाऊँ क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों में प्रथम राजनीतिक गिरफ्तारी थी, 9 माह की सजा हुयी
- 1922 में स्वामी विचारानंद सरस्वती ने देहरादून से अभय नामक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया
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