उत्तराखण्ड का आद्य ऐतिहासिक काल
- आद्य ऐतिहासिक काल के प्रमुख स्रोत पौराणिक ग्रंथ है
- उतराखण्ड का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है
- ऋग्वेद में इस क्षेत्र को देवभूमि एवं मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है
- एतरेव ब्राह्मण में उत्तराखण्ड के लिए उतर कुरू शब्द का प्रयोग किया गया
- कौशतकि ब्राह्मण ग्रंथ में बद्रिकाश्रम में वाकदेवी का निवास स्थान बताया गया ।
- स्कन्द पुराण में 5 हिमालय खण्डों का वर्णन है जो निम्न हैं
- नेपाल, केदारखण्ड, मानसखण्ड, कश्मीर, जालघर
- माया क्षेत्र से हिमालय तक के विस्तृत क्षेत्र को केदारखण्ड कहा गया है
- नन्दादेवी पर्वत से कालगिरी तक के क्षेत्र को मानसखण्ड कहा है
- केदारखण्ड़ गढ़वाल क्षेत्र को और मानसखण्ड कुमांऊँ क्षेत्र को कहा जाता है
- पुराणों में केदारखण्ड व मानसखण्ड के संयुक्त क्षेत्र को ब्रह्मपुर, खसदेश व उतर-खण्ड कहा गया
- बौद्ध साहित्य के पाली भाषा में उत्तराखण्ड के लिए हिमवंत शब्द का प्रयोग किया गया
गढ़वाल क्षेत्र
- गढ़वाल क्षेत्र के प्राचीन नाम क्षेत्र
- बद्रीकाश्रम, तपोभूमि व केदार खण्ड है
- केदारखण्ड में गढ़वाल की सीमाओं की लम्बाई पचास योजन तथा चौड़ाई तीस योजन बतायी गयी
- केदारखण्ड व मानसखण्ड की सीमाओं का विभाजन बधाण क्षेत्र या नन्दादेवी पर्वत करता है
- केदारखण्ड गंगाद्वार से हिमालय व तमसा या टौंस नदी से बौद्धाचंल या नंदादेवी तक फैला हुआ है
- 1515 ई0 के आसपास अजयपाल ने 52 गढ़ों को जीता था तब से इस क्षेत्र को गढ़वाल कहा जाता है।
- ऋग्वेद में वर्णन मिलता है कि इस क्षेत्र में असुर राजा शम्बर के 100 गढ़ो को इन्द्र व सुदास ने नष्ट किया
- गढ़वाल क्षेत्र में कुबेर की राजधानी अल्कापुरी को माना जाता है।
- अल्कापुरी में मनुष्यों के आदिपूर्वज मनु का निवास स्थान था
- इस क्षेत्र के बद्रीनाथ के पास गणेश, नारद, मुचकंद, व्यास व स्कंध गुफा में वैदिक ग्रंथों की रचना हुयी, ऋग्वेद के अनुसार
- टिहरी गढ़वाल की एक पट्टी हिमयाण में विसोन पर्वत है, जहाँ वशिष्ट गुफा व वशिष्ट कुंड है
- देवप्रयाग में श्री राम का एक मन्दिर है जिसे रघुनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है यहां श्री राम ने तपस्या की थी
- टिहरी के तपोवन नामक स्थान पर लक्ष्मण जी ने तपस्या की थी
- रामायणकालीन बाणासुर का राज्य गढ़वाल क्षेत्र में था, इसकी राजधानी ज्योतिषपुर या जोशीमठ थी।
- महाभारत के वन पर्व में केदारनाथ को भृंगतुंग कहा गया
- महाभारत के वन पर्व के अनुसार उस समय गढवाल क्षेत्र में पुलिंद व किरात जातियों का आधिपत्य था
- पुलिंद राजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर थी, जो महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़ा था
- राजा विराट जिसकी राजधानी जौनसार के विराटगढ़ी में थी, इसकी पुत्री उतरा से अभिमन्यु का विवाह हुआ था
- प्राचीन काल में इस क्षेत्र में बद्रीकाश्रम व कण्वाश्रम दो प्रसिद्ध विद्यापीठ थे
- खसों के समय गढ़वाल क्षेत्र में बौद्धधर्म का प्रचार-प्रसार हुआ था • महाभारत में देवप्रयाग को समस्त तीर्थो का शिरोमणि तथा सम्रग पापों का विनाशक कहा गया है
- श्रीनगर को महाभारत में सुबाहुपुर व श्रीक्षेत्र कहा गया है
- आदिपर्व के अनुसार अर्जुन का विवाह नागराज कौरव्य की कन्या उलुपी से गंगाद्वार में हुआ
- महाभारत काल में गंगाद्वार मे नागराज कौरव्य का तथा श्रीनगर में सुबाहु का शासन था
- वन पर्व के अनुसार लोमश ऋषि के साथ पाण्डव गढवाल क्षेत्र मे आए थे
- ऋग्वेद के अनुसार इस क्षेत्र के प्राणा गाँव में प्रलय के बाद सप्तऋषियों ने अपने प्राणों की रक्षा की
कण्वाश्रम
- कण्वाश्रम राजा दुष्यन्त व शकुन्तला के प्रेम प्रसंग के कारण प्रसिद्ध था
- गुरू विश्वामित्र और मेनका की पुत्री का नाम शकुन्तला था
- कण्वाश्रम में चक्रवती सम्राट राजा भरत का जन्म हुआ था
- कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है
- कण्वाश्रम में महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् की रचना की
- कण्वाश्रम पौड़ी जिले में स्थित है इसका वर्तमान नाम चौकाघाट है। कण्वाश्रम या चौकाघाट में बसंत पंचमी के दिन मेला लगता है
कुमाऊँ क्षेत्र
- पौराणिक कथाओं के अनुसार चंपावत के कांतेश्वर पर्वत पर भगवान विष्णु का कूर्मा या कच्छपावतार हुआ था
- कांतेश्वर पर्वत के नाम पर मानस खण्ड के इस क्षेत्र को कूर्माचल कहा गया, कुर्माचल संस्कृत नाम आगे चलकर प्राकृत में कुमूं और हिन्दी में कुमाऊँ बन गया
- इस क्षेत्र का प्राचीन नाम मानसखण्ड व कुर्माचल था
- वायु पुराण अनुसार कुमाऊँ क्षेत्र में किरात, गंर्धव, किन्नर यक्ष, नाग जातियां वास करती थी
- जाखन देवी का मन्दिर अल्मोड़ा में है, यह मन्दिर इस क्षेत्र में यक्षों के निवास की पुष्टि करता है।
- इस क्षेत्र के बीनाग या बेरीनाग, कालीनाग, पिंगलनाग, बासुकी नाग आदि नाग मन्दिर है, जो यहाँ नाग जाति के निवास की पुष्टि करते है
- नाग मंदिरो में सबसे प्रसिद्ध बीनाग या बेरीनाग मंदिर पिथौरागढ में स्थित हैं
- मानसखण्ड के अनुसार जागेश्वर धाम में भगवान शिव ने तपस्या की थी और कार्तिकेय का जन्म यहीं पर हुआ था
- महाभारत के अनुसार ऋषि धौम्या ने सम्राट युधिष्ठिर को भारत के तीर्थ केन्द्रो के बारे में बताया था
उत्तराखण्ड के प्रमुख लेख
- राज्य में कालसी, लाखामंडल, सिरोली व माणा में शिलालेख मिले
- जौनसार-भाबर स्थित लाखामंडल से राजकुमारी ईश्वरा का अभिलेख मिला इसके अनुसार यमुना उपत्यका में यदुवों का शासन था
- देवप्रयाग व कल्पनाथ में गुफाओं के अन्दर दीवारों पर लेख मिले
- नैनीताल व बड़ावाला से ईट पर उत्कीर्ण लेख मिले हैं
- गोपेश्वर व बाडाहाट से त्रिशूल लेख प्राप्त हुये
- गोपेश्वर के रुद्रशिव मन्दिर में 6वीं शती के नागपतिनाग व 12वीं शती के अशोक चल्ल के त्रिशूल लेख मिले
- बाडाहाट त्रिशूल लेख में शंख लिपि का प्रयोग हुआ है
- देवलगढ़ तथा कोलसारी से मूर्तिपीठिका लेख मिले कुषाणकालीन मुद्राएं मुनि की रेती तथा सुमाड़ी से मिली हैं
- कार्तिकेयपुर राजाओं के ताम्रपत्रीय लेख पाडुकेश्वर से चार और
- कंडारा एक तथा बैजनाथ से प्राप्त हुये
- अल्मोड़ा सिक्के कुणिन्द शासकों से सबन्धित है जिनमें शिवदत, शिवपालित, हरिदत, गोमित्र के नाम लिखित हैं
- तीसरी सदी के मुद्रा लेख मोरध्वज से प्राप्त हुये
कालसी शिलालेख -
- 257 ई० पूर्व का अशोक कालीन शिलालेख है और इसकी खोज मिस्टर फॉरेट ने 1860 में की
- इस शिलालेख में ब्राहमी लिपि व पाली भाषा का प्रयोग हुआ है ।
- इस लेख में अशोक ने घोषणा की है कि मैने राज्य के हर स्थान पर मनुष्यों व पशुओं की चिकित्सा व्यवस्था कर दी है तथा लोगों से हिंसा त्यागने व अहिंसा को अपनाने की बात कही गयी है
- कालसी अभिलेख में यहां के निवासियों के लिए पुलिंद व इस क्षेत्र के लिए अपरांत शब्द का प्रयोग हुआ है।
- यह लेख यमुना व टोंस नदी के संगम पर है
- कालसी का प्राचीन नाम सुधनगर व कलकूट था
- कलकूट कुणिन्दो की राजधानी थी
शिलालेख में प्रमुख शब्दावली
1. पल्लिका- छोटे ग्राम2. महतम- ग्राम प्रधान3. भृत्य - सेवक4. प्रतिहार - द्वार रक्षक5. कोट्टपाल-गढ़रक्षक6. बलाध्यक्ष - सेनानायक7. अक्षपटलिक - लेखा परीक्षक8. कुलचारिक- तहसीलदार9. तालुका - तहसील
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