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Nanda Devi Raj Jaat yatra /नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड


Nanda Devi Raj Jaat yatra /नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड  

नंदा देवी को उत्तराखंड में देवताओं की रानी के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि देवी नंदा की कृपा से ही उत्तराखंड में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

    नंदा देवी के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार, नंदा देवी हिमालय की पुत्री हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार, नंदा देवी पार्वती का ही एक रूप हैं।

    नंदा देवी राज जात एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है जो हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। इस यात्रा के दौरान, नंदा देवी की डोली उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में स्थित कई स्थानों से होकर गुजरती है।

नंदा देवी को एक शक्तिशाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है। माना जाता है कि देवी नंदा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

नंदा देवी के बारे में कुछ अन्य जानकारी निम्नलिखित हैं:

  • नंदा देवी को गढ़वाली में "नंदा देवी राज रानी" कहा जाता है।
  • नंदा देवी की पूजा मुख्य रूप से उत्तराखंड में की जाती है।
  • नंदा देवी को समर्पित कई मंदिर उत्तराखंड में स्थित हैं।
  • नंदा देवी राज जात उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण भी है।

नंदा देवी उत्तराखंड की संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे उत्तराखंड के लोगों की आस्था का प्रतीक हैं।


नंदा राज जात यात्रा 

    नंदा देवी राजजात यात्रा  उत्तराखंड राज्य में होने वाली एक नंदा देवी की एक धार्मिक यात्रा है। यह उत्तराखंड के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है। यह लगभग 12 वर्षों के बाद आयोजित होती है। अन्तिम जात 2014 में हुई थी। अगली राजजात 2026 में होगी! यह एशिया महाद्वीप की सबसे लम्बी दूरी की पैदल यात्रा है।

नंदा देवी को उत्तराखंड में देवताओं की रानी के रूप में पूजा जाता है। नंदा देवी राजजात एक पारंपरिक मान्यता पर आधारित है कि देवी नंदा अपनी ससुराल जाते हुए रास्ते में कई गांवों से होकर गुजरती हैं। इस यात्रा के दौरान, देवी को एक चार-सींग वाले भेड़ (चौसिंया-मेड़ा) के साथ ले जाया जाता है।

यात्रा का प्रारंभ उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के कुरुड़ गांव से होता है साथ  ही दूसरी डोली नौटी गावँ से निकलती है , यात्रा मार्ग में कई प्रसिद्ध धार्मिक स्थल आते हैं, जिनमें कनोल गावँ , वाण गावँ, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, बेदनी बुग्याल, पातर नचोनी, कलुवा विनायक , रूपकुंड ,शीला समुद्र और होमकुंड आदि शामिल हैं। यात्रा का समापन होमकुंड में होता है, जहाँ देवी नंदा को एक समारोह में विदा किया जाता है ओर चौसिंगा खाड़ू को छोड़ दिया जाता है । 

आपको बता दें कि नंदा की डौली के साथ  कई अन्य डोलियां तथा छतोलीया भी साथ  जाती है और ऐसी मान्यता है कि बारहसिंघा खाड़ू भी तभी जन्म लेता है जब नंदा राज जात होने को कुछ वर्ष बचे रहते है ।

नंदा देवी राजजात एक कठिन यात्रा है। यात्रा में लगभग 290 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यात्रा का अधिकांश भाग पैदल तय किया जाता है, और कुछ भाग बसों या छोटी गाड़ियों  द्वारा तय किया जाता है अंतिम गावँ वाण तक सड़क  मार्ग उपलब्ध है। यात्रा के दौरान, भक्तों को ऊंचे पहाड़ों, बर्फीले मैदानों, घने जंगलों और नदियों को पार करना पड़ता है।

नंदा देवी राजजात एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन है। यह उत्तराखंड के लोगों की आस्था और संस्कृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह यात्रा लोगों को एक साथ लाती है और उन्हें अपने धर्म और संस्कृति के बारे में जागरूक करती है साथ ही सरकार  द्वारा भी  इसके  आयोजन की बहुत अच्छी तैयारी की जाती है ।

नंदा देवी राजजात की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • यह यात्रा लगभग 12 वर्षों के बाद आयोजित की जाती है।
  • यात्रा में लगभग 290 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
  • यात्रा का अधिकांश भाग पैदल तय किया जाता है।
  • यात्रा के दौरान, भक्तों को ऊंचे पहाड़ों, बर्फीले मैदानों, घने जंगलों और नदियों को पार करना पड़ता है।
  • यात्रा एक पारंपरिक मान्यता पर आधारित है कि देवी नंदा अपनी ससुराल जाते हुए रास्ते में कई गांवों से होकर गुजरती हैं।
  • यात्रा के दौरान, देवी को एक चार-सींग वाले भेड़ (चौसिंया-मेड़ा) के साथ ले जाया जाता है।
  • यात्रा कुरुड़ गावँ नंदानगर से प्रारंभ होकर  होमकुण्ड में समापन होता है
  • यात्रा में बहुत डोलियां व चटोलियों के साथ  साथ भक्त भी चलते है
  • यात्रा बहुत की रोमांचकारी होता है जिसमे  प्राकृतिक सुंदरता का लुफ्ट उठाया जा सकता है।
  • मान्यता के अनुसार किसोरी बालिकायें बेदनी बुग्याल से आगे नही जाती है।

नंदा देवी राजजात एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण आयोजन है। यह यात्रा उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है।

नंदा देवी राज जात का महत्व

नंदा देवी राज जात का महत्व भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में काफी उच्च है। यह यात्रा हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में आयोजित होने वाली एक परंपरागत और पवित्र यात्रा है जो विभिन्न स्थलों को आते-जाते करती है और नंदा देवी को पूजने का अवसर प्रदान करती है। यहां कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जो इस यात्रा को महत्वपूर्ण बनाते हैं:

1. नंदा देवी की पूजा: यह यात्रा मुख्यतः नंदा देवी मंदिर में पूजन के लिए की जाती है, जो एक पवित्र हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर का पूजन सबसे बड़े पौराणिक तीर्थों में से एक के रूप में माना जाता है।

2. परंपरागत यात्रा: नंदा देवी राज जात भारतीय संस्कृति में एक प्राचीन परंपरागत यात्रा है, जो लोगों को धार्मिकता, सांस्कृतिक समृद्धि, और एकता का संदेश देती है।

3. प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव: यात्रा के दौरान पर्यटक प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं, क्योंकि यह हिमालय के खूबसूरत पर्वतीय क्षेत्रों को छूने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती है।

4. पौराणिक कथाएं और धरोहर: नंदा देवी राज जात के दौरान लोग पौराणिक कथाओं और स्थानीय धरोहर को सुनते हैं जो इस क्षेत्र से जुड़े हैं, जिससे उनके सांस्कृतिक ज्ञान में वृद्धि होती है।

5. सामाजिक एकता और भाईचारा: यह यात्रा लोगों को एक साथ आने और एक साथ यात्रा करने का मौका देती है, जिससे सामाजिक एकता और भाईचारा मजबूत होता है।

नंदा देवी राज जात एक सांस्कृतिक उत्सव है जो भारतीय धार्मिकता, परंपरा, और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक ह