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उत्तराखण्ड की स्वाधीनता संघर्ष के महत्वपूर्ण संक्षिप्त बिंदु |Important brief points of the freedom struggle of Uttarakhand/उत्तराखंड बनने से सम्बंधित प्रमुख तथ्य

 
उत्तराखण्ड की  स्वाधीनता संघर्ष के महत्वपूर्ण  संक्षिप्त बिंदु |Important brief points of the freedom struggle of Uttarakhand/उत्तराखंड बनने से सम्बंधित प्रमुख तथ्य 

 
  • स्वतन्त्रता के पूर्व से पहाड़ के लोग उक्त माँग को करने लग गये थे.
  • संयुक्त प्रान्त के 1815 की सिजीली सन्धि में भी उत्तराखण्ड को सम्मिलित किया जाना.
  • 1928 में नेहरू समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट है कि प्रान्तों का बँटवारा जनता की इच्छा, भौगोलिक, धार्मिक, सिद्धान्तों पर किया गया. 
  •  1938 में श्रीनगर गढ़वाल सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकारा था कि पर्वतीय अंचल के निवासियों को अपनी विशेष परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध बनाने का अधिकार मिलना चाहिए.
  • सन् 1952 में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के का. पी. सी. जोशी ने सबसे पहले पृथकु उत्तराखण्ड राज्य की माँग उठायी. जिनके साथ पेशावर काण्ड के हीरो वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने कन्ये से कन्धा मिलाकर उक्त माँग का समर्थन ही नहीं किया, बल्कि एक भोंपू कन्धे पर लटकाकर गाँव-गाँव की पद यात्राएँ कीं. 
  •  1957 में टिहरी के भू. पू. महाराजा वर्तमान में टिहरी के सांसद मानवेन्द्र शाह ने एक संगठन खड़ा किया जिसे खूब जन समर्थन मिला, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के महत्व ने लोगों को देशहित सर्वोपरि के अधीन भावनाएँ बदलकर पृथकृ राज्य की बात बन्द करने के लिए मजबूर कर दिया. 
  •  1962 में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के विकास को गम्भीरता से लिया गया. चमोली, उत्तरकाशी एवं पियौरागढ़ सीमान्त जिले अलग से वनाये गए.  
  •  1966-67 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने जन-जागरण किया, लेकिन वह सफल नहीं रहा. 
  •  10-11 जून, 1967 को रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के विकास को गम्भीरता से लिया. 
  •  1971 में टिहरी के महाराजा मानवेन्द्र शाह ने पुनः इस  माँग को दोहराया और उनके साथ जमीन से जुड़े लोग जिनमें इन्द्रमणि बडोनी, लक्ष्मण सिंह अधिकारी, नरेन्द्र सिंह, शिव चन्द्र सिंह रावत आदि-आदि लोग जुड़ गए थे.
  •  1971-मानवेन्द्र शाह इन्द्रमणि वडोनी, लक्ष्मण सिंह अधिकारी और नरेन्द्र सिंह विष्ट ने आन्दोलन तेज करने के प्रयास किए. 1971 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता सुरेन्द्र सिंह विलंगवाल एवं वलवीर सिंह नेगी पूर्व विधायक ने दर्शकदीर्घा से असेम्बली में पृथक उत्तराखण्ड राज्य के समर्थन में पर्चे फेंककर लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित कराया. 
  •  1968 में कामरेड क्रषि वल्लभ सुन्दरियाल के नेतृत्व और पूरन सिंह डंगवाल की अध्यक्षता में पृथकू राज्य की माँग को लेकर वोट क्लब पर गिरफ्तारियों दीं. 21 लोगों को गिरफ्तार किया गया. 
  •  1973 में बडोनी के नेतृत्व में नैनीताल में उत्तरांचल राज्य परिषद् का गठन किया गया, जिसमें प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रताप सिंह 'प्रताप भैया' उत्तरायणह के सम्पादक नित्यानन भट्ट आदि नेता इस आन्दोलन से जुड़ गये.
  •  1974 में दिल्ली के प्रवासियों ने गढ़वाल के सांसद श्री प्रताप सिंह नेगी की अध्यक्षता में उत्तराखण्ड राज्य परिषद् का गठन किया और कोटद्वार की वैठक में नेगी जी ने घोषणा की कि पृथकू राज्य के लिए वे संघर्षरत रहेंगे और अपना सब कुछ न्योष्ठावर कर देंगे. उन्होंने संसद में भी आवाज उठाई, लेकिन सत्ता पक्ष के होने के कारण बात दबा  दी गई. 
  •  1976 में गठित उत्तराखण्ड युवा मोर्च का गठन किया गया. 1978 में चमोली के प्रताप सिंह पुष्पवाण (विधायक) के नेतृत्व में बदरीनाथ से दिल्ली वोट क्लब तक पदयात्रा करके संसद का घेराव करने का प्रयास किया. 8 सितम्बर को राष्ट्रपति को ज्ञापन देने जाते समय 71 लोगों को गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया गया. इसमें 16 महिलाएँ भी जेल में रहीं. दिल्ली में सक्रिय कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया. 
  • 1979-जनता पार्टी सरकार के शासनकाल में इसी दल के सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड राज्य परिषद् की स्थापना, 31 जनवरी को त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में दिल्ली में 15 हजार से अधिक लोगों ने वर्षा के बावजूद सफलतापूर्वक मार्च किया.
  •  25 जुलाई को मसूरी में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन पत्रकार द्वारिका प्रसाद उनियाल के संयोजन में बुलाया गया. नित्यानन्द भट्ट हल्द्वानी, डी. डी. पंत, पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक एवं पूर्व कुलपति कुमाऊँ विश्वविद्यालय, जगदीश कापरी, के. एन. उनियाल, लखनऊ ललित किशोर पाण्डे, सुरेन्द्र विलंगवाल, वीर सिंह ठाकुर, हुक्म सिंह पवार और देवेन्द्र सनवाल ने इसमें सक्रिय भाग लिया. कई राजनीतिक दलों के लोग इसमें आये थे. 1979 को ही सम्मेलन में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना हुई.
  •  1980 में लोक सभा के लिए अल्मोड़ा से डॉ. डी. डी. पंत, कालूसिंह नैनीताल, मदन मोहन नौटियाल गढ़वाल एवं कृपालसिंह सरोज टिहरी लोक सभा सीटों से यू. के. डी. के उम्मीदवार वने. 
  •  1980 के विधान सभा चुनाव में रानीखेत के जसवन्त सिंह विष्ट उत्तराखण्ड क्रान्ति दल से उत्तर प्रदेश विधान  सभा में यू.के.डी. का एक विधायक हो गया. पाँच स्थानों पर पार्टी के उम्मीदवार टसरे स्थान पर रहे. 1982-प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने मई में बदरीनाथ में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के प्रतिनिधि मण्डल के साथ 45 मिनट तक बातचीत की. 
  • 1984-भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोगी छात्र संगठन आल इण्डिया स्टूडेन्टस फैडरेशन ने सितम्बर-अक्टूबर में पर्वतीय राज्य की माँग को लेकर गढ़वाल क्षेत्र में 900 किमी की लम्बी साइकिल यात्रा की.
  •  1985-23 अप्रैल को नैनीताल में उक्रांद ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैनीताल आगमन पर पृथक राज्य के समर्थन में प्रदर्शन किया. 
  •  1985 के विधान सभा चुनाव में भी पार्टी उम्मीदवार काशी सिंह ऐरी डिडीहाट से जीत कर विधान सभा में पहुँचे.
  •  12-13 सितम्बर को उक्रांद ने 36 घण्टे के बन्द और चक्का जाम किया.
  •  23 अक्टूबर को नई दिल्ली में विश्व प्रसिद्ध हिमालयन कार रैली की बुरी शुरूआत हुई. पूर्व घोषणा के अनुसार उत्तराखण्ड समर्थकों ने जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में कारों के आगे लेटकर नारेबाजी के जरिए रैली का विरोध किया. पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए लाठी चार्ज किया.
  •  1985 से बराबर  जन-आन्दोलन, ज्ञापन के माध्यम से जन-जन तक पृथक राज्य की वात पहुँच चुकी थी.
  •  1990 के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने एजेंडे में यह माँग रखनी आरम्भ कर थी. 
  •  उत्तर प्रदेश विधान सभा से तीन वार प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार को भेजे गये. 
  •  पहाड़वासी जिस नेता श्री मुलायम सिंह यादव की सबसे अधिक आलोचना करते हैं उन्होंने ही 1994 में कौशिक समिति का गठन किया था. उसी समिति को शक्ति-शाली आधार माना जा रहा है. 
  •  1994 में मुजफ्फर नगर काण्ड हुआ. 2 सितम्बर को मसूरी, 1 सितम्बर, 1994 को खटीमा काण्ड हुए. 
  •  14-15 अक्टूबर को नयी दिल्ली में उत्तराखण्ड विकास संगोष्ठी आयोजित तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अशोक मेहता द्वारा इसका उद्घाटन, उत्तराखण्ड की उपेक्षा के बारे में टिहरी के महाराजा मानवेन्द्र शाह ने गोष्ठी में सवाल उठाया और क्षेत्र को केन्द्र शासित राज्य का दर्जा देने की वात कही. पूर्ण राज्य की स्थापना के लिए आन्दोलन की पहली और ठोस शुरूआत 24-25 जून के रामनगर सम्मेलन में हुई. सम्मेलन में मुख्यमंत्री से पृथक् राज्य बनाने सम्बन्धी संस्तुति केन्द्र सरकार के पास भेजने की माँग की. 
  •  1989-मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड को उत्तर प्रदेश का ताज बताया और इस आधार पर पृथकु राज्य बनाने से साफ इनकार कर दिया.
  •  1994-पृथकू उत्तराखण्ड निर्माण के सिलसिले में गठित रमा शंकर कौशिक समिति के तत्वावधान में दूसरी बैठक  पौड़ी में हुई. 
  •  1995 नवम्बर में श्रीनगर श्रीयंत्र टापू पर अनशन पर बैठे  आन्दोलनकारियों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया जिसमें दो आन्दोलनकारी शहीद हुए. 1996-प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने 15 अगस्त को लाल किले  से उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा की. उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा की राय जानने के लिए विधेयक भेजा.
  • 1998-पहली बार  भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से विधेयक उत्तर प्रदेश की विधान सभा को भेजा. प्रदेश सरकार ने 26 संशोधनों के साथ विधेयक विधान सभा में पारित कर केन्द्र को भेजा. केन्द्र सरकार ने यह विधेयक लोक सभा में पेश तो किया पर चर्चा नहीं करायी. 
  •  2000-अटल विहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने पुनः प्रदेश को उत्तरांचल राज्य का विधेयक भेजा. प्रदेश सरकार द्वारा विधान सभा में पारित करा कर भेजने पर केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई को लोक सभा में पेश किया और । अगस्त को इस पर चर्चा आयोजित कर लोक सभा से भी पारित करा दिया तथा 10 अगस्त को राज्य सभा ने भी इसे पास कर दिया जिसमें कांग्रेस  पार्टी का अत्यधिक सहयोग रहा,
  •  9 नवम्बर, 2000 के रात्रि सवा 12 बजे उत्तरांचल (अबउत्तराखण्ड) के प्रथम महामहिम के पद पर श्री सुरजीत सिंह वरनाला एवं उत्तरांचल के प्रथम मुख्यमंत्री के पद पर श्री नित्यानन्द स्वामी ने शपय ली. इस प्रकार नये राज्य का गठन हुआ.