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उत्तराखंड में औद्योगिक एवं कृषि अर्थव्यवस्था | Industrial and Agricultural Economy in Uttarakhand

 

उत्तराखंड में औद्योगिक एवं कृषि अर्थव्यवस्था | Industrial and Agricultural Economy in Uttarakhand 

 मुख्या बिंदु :- 

  1.  सूती वस्त्र उद्योग
  2. ऊनी वस्त्र उद्योग
  3. उत्तराखंड में चीनी उद्योग 
  4. उत्तराखंड में सीमेंट उद्योग 
  5. उत्तराखंड में वन पर आधारित उद्योग
  6. उत्तराखंड में रसायन पर आधारित उदयोग
  7. उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योग
  8. उत्तराखंड में औषधि निर्माण उद्योग
  9.  उत्तराखंड में विद्युत  एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
  10. उत्तराखंड में उत्तराखंड में अन्य महत्वपूर्ण उद्योग
  11. उत्तराखंड में ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग
  12. उत्तराखंड में  दाल और धान की छिलाई
  13. उत्तराखंड में जूता-चप्पल का निर्माण
  14. उत्तराखंड में दियासलाई उद्योग
  15. उत्तराखंड में गुड़ और खाण्डसारी
  16. उत्तराखंड में  ऊनी शाल एवं अन्य वस्त्रोद्योग 
  17.  उत्तराखंड में रेशम उद्योग
  18. उत्तराखंड में मधुमक्खी पालन
  19. उत्तराखंड में कृषि आधारित उद्योग
  20. उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योग
  21.  जलविदुयुत

यद्यपि इस प्रदेश में औद्योगिक विकास अभी अधिक नहीं हो पाया है, लेकिन फिर भी यहाँ पर औद्योगिक विकास के लिए अनेक अनुकूल परिस्थितियाँ पाई जाती हैं. यह प्रदेश जलशक्ति संसाधनों में अत्यन्त धनी है. इसके साथ-साथ यह वन, पशुपालन, कृषि, फलोत्पादन तथा कुछ खनिजों के उत्पादन के लिए विशेष स्थान रखता है, जिनसे उद्योगों के विकास के लिए यहाँ सबसे अधिक अनुकूल परिस्थिति मिलती है. इन सभी प्रकार के उद्योगों के विकास में चार प्रमुख  प्रमुख रुकावटें हैं, एक यातायात साधनो का अभाव, दूसरे  खनिज पदार्थों का अभाव, तीसरे स्थानीय मान का कम होना और चौथे स्थानीय पूँजी व तकनीक का अभाव.

यहाँ के प्रमुख खनिज चूना पत्थर व तॉबा हैं. चूना पत्थर देहरादून व नैनीताल जिलों में पाया जाता है. देहरादूनमें इसका प्रयोग सीमेण्ट बनाने तथा चूना तैयार करने में किया जाता है. गढ़वाल, अल्मोड़ा जिलों में ताँवा प्राप्त होता है. जलविद्युत के यहाँ भारी भण्डार हैं. एक अनुमान के अनुसार यहाँ लगभग 25 हजार से 30 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादित की जाती है. यहाँ पर ऐसे अनगिनत स्थल, नदिया व श्रोतों  के निकट स्थित हैं, जहाँ से 4 से 10 लाख किलोवाट उत्पादनक्षमता के विद्युत गृह स्थापित किए जा सकते हैं, यमुना  गंगा, काली नदियों पर अनेक स्थानों पर जलविद्युत गृह स्थापित किए गए हैं. शारदा जलविद्युत योजना पर अल्मोड़ा, नैनीताल व भुवाली प्रमुख विद्युत गृह हैं. यमुना नदी पर डाक पत्थर पर वड़ा जल-विद्युत गृह बनाया गया है. यहीं से नहर निकलकर ढालीपुर व ढकरानी में जल-विद्युत गृह बनाए गए हैं. टिहरी में भागीरथी पर एशिया का विशाल विधुत  गृह निर्मित किया गया है. रामगंगा पर कालागढ़ स्थान पर महत्वपूर्ण विद्युत गृह है. गंगा नदी पर भी अनेक स्थानों पर जलविद्युत गृह्ठ स्थापित किए गए हैं.

इस प्रदेश में लकड़ी काटने व चीरने का उद्योग अनेक स्थानों पर पाया जाता है. कागज उद्योग का विकास नैनीताल जिले में किया जा रहा है. चीनी उद्योग यहाँ का प्रमुख कृषि निर्भर उद्योग है. देहरादून और नैनीताल जिलों में चीनी बनाने के कारखाने केन्द्रित हैं. वीरभद्र में एण्टीवायोटिक दवाइयाँ बनाने का बहुत वड़ा कारखाना है. देहरादून अनेक उद्योगों का केन्द्र है. यहाँ पर वन अनुसन्धान प्रशिक्षण महाविद्यालय, तेल एवं गैस कमीशन स्थित हैं. प्रदेश के कुटीर उद्योगों में ऊन बुनने, टोकरी बनाने, रस्सी बुनने, चमड़े का काम, शराब बनाने, आटा व मैदा तैयार करने तथा पशुपालन का कार्य महत्वपूर्ण है. पर्यटन उद्योग का यहाँ बड़ा महत्व है. धार्मिकनगरों व स्वास्थ्यवर्धक नगरों की यहाँ अधिक संख्या पाई जाती है. उत्तराखण्ड के प्रमुख उद्योगों का विवरण इस प्रकार है-


 
चीनी उद्योग 
उत्तराखण्ड में कुल 10 चीनी मिलें हैं. जिनमें से 6 सहकारी क्षेत्र तथा 4 निजी क्षेत्र की चीनी मिलें हैं. यह चीनी मिलें नैनीताल, किच्छा, काशीपुर (ऊधरमसिंह नगर) हरिद्वार व देहरादून में स्थित है. सम्भवतः उत्तराखण्ड की पहली शुगर फैक्ट्री एल. एच. शुगर फैक्ट्री लि. जिसकी स्थापना सन् 1937 में लगभग 40 लाख रुपए की पूँजी लगाकर की गई. वाजपुर सहकारी शुगर फैक्ट्री, वाजपुर की स्थापना 1948 में लगभग एक करोड़ पूँजी लगाकर की गई. जसपुर में भी सहकारी चीनी मिल है.
 
सीमेंट उद्योग
उत्तराखण्ड में चूना की बहुतायत है. इसलिए सीमेंट उद्योग आसानी से स्थापित हो गया. प्रमुख रूप से सीमेंट फैक्ट्रियाँ हैं स्टेडिया केमिकल्स लिमिटेड, करषिकेश, कुअनवाला सीमेंट फैक्ट्री गुनियाल गाँव (राजपुर), रानी पोखरी सीमेंट फैक्ट्री.
 
बन पर आधारित उद्योग
उत्तराखण्ड में हल्द्वानी, हरिद्वार, नैनीताल, रामनगर, लालकुओँ, सितारगंज, टनकपुर, काशीपुर और जसपुर में स्यापित पंजीकृत इकाइयाँ लकड़ी की मेज-कुर्सियाँ, दरवाजे और खिड़कियों के ढाँच (फ्रेम) चारपाई थँधाई हेतु डिब्बे, खेल का सामान दियासलाई की डिब्बी लकड़ी के पीपे और लकड़ी के अन्य सामानों का निर्माण करती है. टनकपुर, देहरादून  हरिद्वार में लकड़ी व लकड़ी के फर्नीचर एवं बेंत का कार्य वृहदरूप से होता है.
 
रसायन पर आधारित उदयोग
उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों पर पंजीकृत औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हैं. इनमें हल्दावानी, काशीपुर, वाजपुर और रुद्रपुर इकाइयों द्वारा रंग, वार्निश, (रोगन) गंधराल, गंधक की गडुडी, सांश्लेषिक प्रक्षालक धुलाई का साबुन, जस्ता, सल्फेट वीव्रोन में थल क्राइटल तेल इत्यादि का उत्पादन किया जाता है.
 
 
प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योग
उत्तराखण्ड में लगभग 2000 से अधिक प्रकार की जड़ी- वृटियाँ पाई जाती हैं जिनकी कीमत लगभग 500 करोड़ रुपए आँकी गई है. उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटियों पर आधारित उधोग के विकास की असीम सम्भावनाएँ हैं. इसलिए सरकार ने जड़ी बूटियों के संरक्षण संवर्द्धन, प्रसंस्करण एवं विपणन पर विशेष बल दिया है.
 
औषधि निर्माण उद्योग
देहरादून के समीप वीरभद्र नामक स्थान पर इण्डिवन ड्रग्स एण्ड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड नाम से औषधि निर्माण का कारखाना है. हल्द्वानी में कत्था फैक्ट्री है, इसके अलावा देहरादून, ऋषिकेश हरिद्वार और नैनीताल में औषधि निर्माण केन्द्र हैं.
 
 विद्युत  एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल एवं कोटद्वार में स्थापित हैं.
 
अन्य महत्वपूर्ण उद्योग
रानीबाग में (नैनीताल) एच. एम. टी. (HMT) का कारखाना स्थापित है. भारत सरकार का संस्थान भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड हरिद्वार में स्थापित है.
मुक्तेश्वर (नैनीताल) में भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान, पटवाडागर (नैनीताल) में, बेंवसीन फैक्ट्री भीमताल (नैनीताल) में, इलेक्ट्रॉनिक और टेलीफोन फैक्ट्री, रामगढ़ ( नैनीताल) में फल संरक्षण केन्द्र, झीरोली (अल्मोड़ा) तथा चडांक (पियौरागढ़) में मैग्नेसाइट फैक्ट्री आदि प्रमुख औद्योगिक इकाइयों हैं.
 
ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग
ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग भारत के विकास एवं समृद्धि की रीढ़ रहा है. भारत का कुटीर उद्योग पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था. उत्तराखण्ड की समृतद्धि एवं विकास भी ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग पर बहुत कुछ निर्भर है. उत्तराखण्ड में लघु एवं कुटीर उद्योगों का अपना एक विशिष्ट स्थान है तथा यहाँ की अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका है. यहाँ कुटीर उद्योगों के विकास की अपार सम्भावनाएँ हैं, लेकिन परिवहन प्रौद्योगिकी व प्रशिक्षण आदि की बाधाएँ भी हैं. ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगों में दाल और धान की छिलाई, चप्पल का निर्माण दियासलाई की डिर्वी बनाना, गुड़ एवं खाण्डसारी, साबुन, मिट्टी के वर्तन, कुम्हारी वस्तुएँ, वान और सुतली, लकड़ी का साज-सज्जा, चूना, नीरा गुड़ और मधु इत्यादि हैं.

 दाल और धान की छिलाई
उत्तराखण्ड के कई स्थानों पर दाल और धान की छिलाई का कार्य किया जाता है. इनमें अधिकांश इकाइयाँ हल्द्वानी, नैनीताल, काशीपुर, ऊधरमसिंह नगर, चम्पावत, देहरादून में अवस्थित हैं.
 
जूता-चप्पल का निर्माण
जूता-चप्पल और सम्बद्ध वस्तुओं का निर्माण कार्य चिर- काल से चला आ रहा है. यह पारम्परिक कृुशलता व कारीगरी पर आधारित कार्य है. देशी जूतों का निर्माण स्थानीय चमड़ों एवं खालों से किया जाता है. इनमें अधिकांश कार्य नैनीताल, हल्द्वानी, काशीपुर में किया जाता है.

दियासलाई उद्योग
वन की लकड़ी की उपलब्धता के कारण उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों पर दियासलाई उद्योग पनपा है. यह उद्योग नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, अल्मोड़ा आदि जनपदों में क्रियाशील है.
 
गुड़ और खाण्डसारी
यह उद्योग नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून आदि जिलों में स्थापित है.
 
 ऊनी शाल एवं अन्य वस्त्रोद्योग 
उत्तराखण्ड में ऊन बुनने कातने तथा ऊनी सामान वनाने के लिए नौ प्रशिक्षण एवं उत्पादन केन्द्र वागेश्वर. अल्मोड़ा, भीमताल, देवगढ़ (पौड़ी) छम्मा (टिहरी) छाम (टिहरी) प्रेमनगर (देहरादून) भुद्रतल्ला (चमोली) तथा
पिथौरागढ़ नामक स्थानों पर खोले गए हैं. इसके अलावा 100 कताई केन्द्र चौरा, तारीखे व हरोली (अल्मोड़ा) पौड़ी (गढ़वाल) तथा जीहदपुर में स्थापित हैं. ऊरनी शालों का निर्माण पौड़ी तथा अल्मोड़ा में किया जाता है.

 रेशम उद्योग
रेशम के कीड़े पालने के लिए शहतूत के वृक्षों को लगाने का कार्य देहरादून, पौड़ी, गढ़वाल जिलों में किया गया है. रेशम सहकारी संघ, प्रेमनगर (देहरादून) में कीड़ों के पालने तथा कोकून उत्पन्न करने का प्रशिक्षण दिया जाता है. इस उद्योग को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केन्द्रों तथा सहकारी समितियों की स्थापना की गई है.
 
मधुमक्खी पालन
उत्तराखण्ड में अनेक स्थानों पर मधुमक्खी पालन का कार्य किया जाता है. राज्य सरकार ने 1938 में ज्योली कोर में मधुमक्खी पालन केन्द्र की स्थापना की. वर्ष 1939 में प्रवासी मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया गया और वर्ष 1955 में मधुमक्खी शिशु पालन की स्थापना ज्योली कोट और रामनगर में की गई. इस उद्योग में 24 पंजीकृत औद्योगिक इकाइयाँ मुख्यतः भोवाली और हल्द्वानी में स्थित हैं.
 
कृषि आधारित उद्योग
उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक फल और सब्जियोँ लगभग पूरे साल उगाने के लिए उपयुक्त भौगोलिक स्थिति और जलवायु विद्यमान है. उत्तराखण्ड की जलवायु एक हजार से तीन हजार मीटर ऊँचाई क्षेत्र में शीतोरष्ण फल, सेव, आूं,खुमानी, चेरी, अखरोट, अनार, माल्टा के उत्पादन के अनुकूल है, आम, लीची, केला, अमरूद, पपीता, रसभरी आदि फलों की पैदावार के लिए तीन सौ से चार सौ मीटर ऊँचाई वाले कषेत्र अनुकूल है. उत्तराखण्ड क्षेत्र में 663 हजार हेक्टेयर जमीन कुल खेती करने में उपयोग हो रही है, जिसमें से 179 हजार हेक्टेयर भूमि (27 प्रतिशत) का उपयोग फलों और 84 हजार हेक्टेयर भूमि (13 प्रतिशत) सब्जियों के उत्पादन में प्रयोग होती है. प्रतिवर्ष 0-88 प्रतिशत फलों के उत्पादन में और 1-68 प्रतिशत सब्जियों के उत्पादन में भूमि के उपयोग पर वृद्धि हो रही है.
 
प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योग
एक अध्ययन के अनुसार यहाँ लगभग 500 प्रकार की जड़ी-बृटियाँ पाई जाती हैं, जिनकी कीमत लगभग 500 करोड़ रुपए आकी गई है जिसके दोहन करने के साथ-साथ उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है. कई मध्य व उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में  टिंगाल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के बर्तनों, चटाइयों व साज-सैया की वस्तुएँ बनाने में  किया जाता है. इनके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में रेशे वाले पेड़  व कई छोटे छोटे जंगली पेड़ काफी मात्रा में पाए जाते हैंजिनका दोहन भी किया जा सकता है.

 जलविदुयुत
प्रचुर मात्रा में जल प्राप्ति उत्तराखण्ड को एक महत्वपूर्ण वरदान है. कई महत्वपूर्ण वड़ी नदियोँं हिमालय में बने ग्लेशियरों से निकलकर इस क्षेत्र में वहती हैं. यहाँ वर्तमान में लगभग 4613 मेगावाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है.