उत्तराखण्ड बनने का संघर्ष एवं उससे जुड़े तथ्य |The struggle to become Uttarakhand and the facts related to it. |
उत्तराखण्ड का उदय किसी एक व्यक्ति या संगठन की शहादत और सोच का परिणाम नहीं है. यह सुखद बेला आजादी से पहले गठित होती रही. अनेक संगठनों व छः वर्ष पहले शुरू हुए जनान्दोलनों के दौरान शहीद हुए दर्जनों से अधिक राज्यप्रेमियों के बलिदान का प्रतिफल है.
क्षेत्रीय
समस्याओं पर विचार के लिए 1926 में कुमाऊँ
परिषद् का गठन, जिसके कर्ताधर्ता, गोविन्द बल्लभ पन्त, तारादत्त गेरोला तथा बद्रीदत्त पाण्डे थे.
गोविन्द बल्लभ पन्त, तारादत्त गेरोला तथा बद्रीदत्त पाण्डे
- 1938 में श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में 'गढ़देश सेवा संघ' की स्थापना की जिसे बाद में 'हिमालय सेवा संघ' नाम दिया गया.
- आजादी के बाद 1950 में वृहद हिमालयी राज्य (हिमाचल और उत्तराखण्ड मिलाकर) के लिए 'पर्वतीय
- जन विकास समिति' का गठन.
- जून 1967 में 'पर्वतीय राज्य परिषद्' का गठन जिसके अध्यक्ष दयाकृष्ण पाण्डे, उपाध्यक्ष गोविन्द सिंह मेहरा
- और महासचिव नारायणदत्त सुन्द्रियाल थे.
- 1970 में पी. सी. जोशी ने 'कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा'" गठित किया.
- 1972 में नैनीताल में 'उत्तरांचल परिषद्' का गठन.
- 1979 में मसूरी में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन के अवसर पर 'उत्तराखण्ड क्रान्ति दल' का गठन, जिसके अध्यक्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डी. डी. पन्त चुने गए.
- 1988 में भारतीय जनता पार्टी के शोवन सिंह जीमा की अध्यक्षता में 'उत्तरांचल उत्थान परिषद्' का गठन.
- 1988 सितम्बर में 'उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति' का गठन.
- फरवरी 1989 में तमाम संगठनों ने संयुक्त आन्दोलन चलाने के लिए 'उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति' गठित की.
- 1994 के जनआन्दोलन के दौरान उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों समेत देश की राजधानी दिल्ली में भी तमाम संगठनों ने राज्य प्राप्ति आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभायी. इनमें उत्तराखण्ड क्षेत्र में उत्तराखण्ड संयुक्त छात्र संघर्ष समिति, उत्तराखण्ड छात्र युवा संघर्ष समिति, प्रगतिशील महिला मंच, नारी संघर्ष समिति, उत्तराखण्ड महिला मोर्चा, उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति, पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन, उत्तराखण्ड भूतपूर्व सैनिक संगठन के अलावा दिल्ली में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच और उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति के नाम प्रमुख हैं.
- आजादी से पूर्व कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पाण्डेय व गढ़केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊँ गढ़वाल को अलग इकाई के रूप में बनाने की बातें समय -समय पर उठाई थीं.
- सन् 1955 में फजल अली कमीशन ने उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन की वात इस क्षेत्र को अलग राज्य बनाने के दृष्टिकोण से की.
- 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी. टी. कृष्णामाचारी ने पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया जिस पर गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया गया.
- 12 मई, 1970 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने स्पष्ट कहा था कि "उत्तर प्रदेश के पहाड़ी जिलों के पिछड़ेपन और गरीबी का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकार दोनों का है."
- 1987 में भारतीय जनता पार्टी ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोड़ा में आयोजित वैठक में अलग उत्तराखण्ड राज्य की बात को स्वीकारा.
- भाजपा की सरकार ने 1991 में विधान सभा में उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) राज्य का प्रस्ताव पास कर केन्द्र की स्वीकृति के लिए भेज दिया था.
- 1994 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड के लिए कौशिक समिति गठित की. समिति ने 21 जून, 1994 को अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी. समिति ने उत्तराखण्ड राज्य की वकालत की.
- 1996 में प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने 15 अगस्त को लाल किले से उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की घोषणा की व उत्तर प्रदेश विधान सभा की राय जानने के लिए विधेयक भेजा.
- 1998 में पहली बार भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तरांचल राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश की विधान सभा को भेजा.
- 2000 में वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने पुनः उत्तर प्रदेश को उत्तरांचल राज्य का विधेयक भेजा. केंद्र सरकार ने 27 जुलाई को लोक सभा में पेश किया. 1अगस्त को यह विधेयक लोक सभा में व 10 अगस्त को राज्य सभा में पारित कर दिया गया. 28 अगस्त को उत्तरांचल को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई.
- 9 नवम्बर, 2000 को केन्द्र ने तिथि तय की. इस तरह 9 नवम्बर, 2000 उत्तरांचल के लिए ऐतिहासिक तिथि बन गई,
- 1 जनवरी, 2007 से उत्तरांचल का नामकरण उत्तराखण्ड किया गया.
- उत्तराखण्ड विधान सभा द्वारा उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक 2014 को 21 जनवरी, 2014 को पारित किया गया. यह विधेयक लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अनुपालन में पारित किया गया.
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