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उत्तराखंड की बुक्सा जनजाति|Buxa tribe of Uttarakhand.

 

उत्तराखंड की  बुक्सा जनजाति|Buxa tribe of Uttarakhand.


बुक्सा (भोक्सा) उत्तराखण्ड की प्रमुख अनुसूचित जन- जातियों में से एक है. यह जनजाति तराई-भाभर स्थित बाजपुर, गदरपुर, रामनगर, दुगड्डा व देहरादून जनपद के डोईवाला, विकास नगर, सहसपुर विकास खण्डों में निवास करते हैं. सन् 2001 की जनगणना के अनुसार बुक्सा जनजाति की कुल जनसंख्या 46,771 है, जिसका 60 प्रतिशत भाग नैनीताल जिले के विभिन्न विकास खण्डों में निवास करता है. जिन क्षेत्रों में यह जनजाति बसी है, उसे 'भोक्सार' कहते हैं.

 

शारीरिक गठन

शारीरिक गठन की दृष्टि से यह जनजाति कद में छोटी और मध्यम, चौड़ी मुखाकृति तथा समतल चपटी नासिका वाली होती है. सामान्य रूप से पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक सुन्दर होती हैं, स्त्रियों में गोल चेहरा, गेहुँआ रंग मंगोल नाक-नव्श स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है. शारीरिक लक्षणों की दृष्टि से इस जनजाति में प्रजातीय मिश्रण हुआ प्रतीत होता है.

 भाषा

भोक्सा जनजाति की भाषा हिन्दी एवं कुमाऊँनी का सम्मिश्रण है, परन्तु जो लोग लिखना जानते हैं, वे देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करते हैं.

 

उत्तराखंड की  बुक्सा जनजाति|Buxa tribe of Uttarakhand.

बंशज

विलियम क्रुक ने बुक्सा की उत्पत्ति के विषय में कहा है कि ये लोग अपने को राजपूतों का वंशज मानते हैं. कुछ लोगों का मत है कि वे उज्जैन के धारा नगरी नामक स्थान से आए. कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि भारत पर

मुगलों के आक्रमण के समय चित्तीड़ की राजपूत जातियों की अनेक स्त्रियाँ निम्न वर्ग के अनुचरों के साथ भाग आई और तराई के क्षेत्र में शरण ली. यह भोक्सा जनजाति इन्हीं की संतति है. सम्भवतः इसी कारण भोक्सा जनजाति की पारिवारिक योजना में स्त्रियों की प्रधानता है. बुक्सा सबसे पहले तराई में 'बनवसा' नामक स्थान (उत्तराखण्ड का वर्तमान चम्पावत जिला) में आकर वसे. जो वनों से ढका था

 

बैबाहिक पद्धति

बुक्सा जनजाति में क्रय-विवाह पद्धति आज भी प्रचलित है. वधू प्राप्त करने के लिए वधू मूल्य देय है, क्योंकि बुक्सा पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या काफी कम है. विवाह के पश्चात् कन्या पक्ष कन्या के सहयोग से प्राप्त लाभ से वंचित हो जाता है. अतः इसी क्षतिपूर्ति के रूप में कन्या का पिता कन्या मूल्य प्राप्त करने का अधिकारी माना गया है, यह राशि विवाह के पूर्व वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष को दी जाती है, जो'मालगति' कहलाती है. भोक्सा जनजाति में विवाह की उम्र कन्या के लिए 18-20 तथा वर की 20-24 वर्ष उपयुक्त मानी गई है. इनमें 'अन्तर्जातीय-वहिर्गंत्रिय विवाह प्रथा प्रचलित है. पत्नी द्वारा विवाह विच्छेद करने पर पूर्व पति, पिता अथवा नवीन पति से क्षतिपूर्ति की माँग करता है. पत्नी यदि पति को छोड़ दे, तो पिता द्वारा 'मालगति' वापस करनी पड़ती है.

 

पंचायत व्यवस्था

भोक्सा जनजाति में शादी, तलाक, आपसी झगड़े अपनी विरादरी की पंचायत द्वारा तय होते हैं. इनके पंचायती प्रशासन में सबसे बड़ा आदमी 'तख्त' काहलाता है. 'तख्त' के अधीन 'दरीगा', 'मुंसिफ' तथा 'सिपाही होते हैं. 'तख्त' का कार्य सभा की तारीख निश्चित करना होता था तथा फैसला करना होता था, मुंसिफ का काम छानवीन करना होता है. दरोगा का काम दण्डित करना तथा सिपाही का कार्य ग्राम प्रधानों को सूचना पहुँचाना है. दस से बीस गाँवों के बीच इस प्रकार की विरादरी पंचायत होती है, परन्तु अब इस प्रकार पंचायत का महत्व कम हो रहा है, इनके स्थान पर नैनीताल जिले में तराई क्षेत्र के अन्तर्गत पंचायती राज की स्थापना की गई तथा 'भुक्सा परिषद्' की स्थापना हुई है.

उत्तराखंड की  बुक्सा जनजाति|Buxa tribe of Uttarakhand.

 

घार्मिक विश्वास

भुक्सा जनजाति में धर्म का पारम्परिक रूप हिन्दू धर्म का ही प्रतिरूप है. ईश्यर में इनकी आस्था है, जिसकी पूजा

कई देवी-देवताओं के रूप में की जाती है. शंकर (महादेव), काली-माई, दुर्गा, लक्ष्मी, राम एवं कृष्ण की पूजा की जाती है. काशीपुर की चामुण्डा देवी सबसे बड़ी देवी मानी जाती है.

 

त्योहार

भुक्सा जनजाति में व्रत एवं त्यौहार भी हिन्दुओं के समान हैं. होली, दीपावली, दशहरा, जनमाप्टमी इनके प्रमुख त्यीहार हैं. 25 दिसम्बर को ईसाइयों के समान वड़ा दिन भी मनाते हैं. भोक्सा जनजाति में जादू-टोना तथा अनेक प्रकार का अन्धविश्वास प्रचलित है. रोग के प्रति सामान्यतः इनकी यह धारणा है कि झाड़ फँंक करने से टीक हो जाता है. वैद्य या चिकित्सक से परामर्श करने से पूर्व रोगी को स्याने (जिसे यहाँ 'भण्डारे' कहते हैं), को दिखाया जाता है. देवी देवताओं को प्रसन्न करने हेतु "स्याने' के आदेश से मुगा या वकरे की भेंट' या 'बलि' चढ़ाई जाती है.

उत्तराखंड की  बुक्सा जनजाति|Buxa tribe of Uttarakhand.


आर्थिक जीवन

प्रारम्भ में भीवसा जनजाति तराई के यने जंगलों में रहते थे तया जंगलों से प्राप्त लकड़ी, शहद, कन्दमूल फल, जानवरों के शिकार आदि तथा पास के तालाबों में मछली पकड़कर जीवन निर्वाह करते थे. धीरे-धीरे जंगलों के कट जाने के कारण भोक्सा, जिनके जीवन की अर्थव्यवस्था जंगलों पर निर्भर थी, कठिनाई का जीवनयापन करने लगे. अथ वे केवल खेती तथा खेतों में मजदूरी करते हैं, इनके अन्दर नशे की लत भी होती है. चावल और मछली इनका प्रिय भोजन है. इसके अतिरिक्त दालें, रोटी और सब्जी का प्रयोग अपने भोजन में से करते हैं, पुरुष देशी मदिरा और कच्ची ताड़ी एवं जंगली प्रचुरता सुल्फे का प्रयोग अधिक मात्रा में करते हैं. मादक पदार्थों एवं द्रव्यों में ह्रुक्का, वीड़ी, सुल्फा एवं शराब का चलन है,