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देवप्रयाग उत्तराखंड |Devprayag Uttarakhand

 
देवप्रयाग उत्तराखंड |Devprayag Uttarakhand


ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर देव प्रयाग स्थित है. इसी स्थल पर भागीरथी और अलकनन्दा का संगम होता है और इस संगम के बाद ही यह नदी 'गंगा' नदी के नाम से विख्यात होती है. देवप्रयाग संगम के पास ही श्रीराम का बहुत प्राचीन 'रघुनाथ कीर्ति मन्दिर' है. मन्दिर के पीछे शंकराचार्य की गुफा है.


देवप्रयाग का इतिहास बहुत पुराना है। इसका उल्लेख हिन्दू धर्मग्रंथों में भी मिलता है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान राम ने तपस्या की थी। यहाँ कई प्राचीन मंदिर भी हैं, जिनमें रघुनाथ मंदिर, मंदिर और चंडी देवी मंदिर प्रमुख हैं।

देवप्रयाग एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है। यहाँ आने वाले पर्यटक संगम में स्नान करते हैं, मंदिरों में दर्शन करते हैं और आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।

देवप्रयाग कैसे पहुंचें:

  • हवाई जहाज: देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है।
  • रेल: ऋषिकेश रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है।
  • सड़क: देवप्रयाग सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
देवप्रयाग में ठहरने के लिए कई होटल और धर्मशालाएं हैं।

देवप्रयाग में रघुनाथ मंदिर का इतिहास

रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग में स्थित एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है। यह भगवान राम को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था। मंदिर को नागर शैली में बनाया गया है।

रघुनाथ मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियाँ हैं।
  • मंदिर के शिखर पर भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
  • मंदिर के परिसर में कई अन्य मंदिर भी हैं, जिनमें गणेश मंदिर, हनुमान मंदिर और सूर्य मंदिर प्रमुख हैं।
  • मंदिर के पास एक कुंड है, जिसे राम कुंड कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम ने यहाँ स्नान किया था।

रघुनाथ मंदिर एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। मंदिर में कई धार्मिक उत्सव भी मनाए जाते हैं, जिनमें राम नवमी, दीपावली और महाशिवरात्रि प्रमुख हैं।

रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर में दर्शन करते हैं और आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।

रघुनाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। इसका उल्लेख हिन्दू धर्मग्रंथों में भी मिलता है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान राम ने रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी।