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उत्तराखंड की जाड़ जनजाति|Jad tribe of Uttarakhand

 
उत्तराखंड की  जाड़ जनजाति|Jad tribe of Uttarakhand



जाड़ जनजाति

भोटिया जनजाति को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग नामों से जाना जाता है. चमोली में इन्हें 'मारछा' तथा 'तोलछा' के नाम से सम्बोधित किया जाता है. इसी क्रम में उत्तरकाशी जिले में भागीरथी की ऊपरी घाटी में रहने वाली भोटिया जनजाति को 'जाड़' कहा जाता है. एटकिन्सन ने इन्हें तिब्बत के हुणिया जाति से सम्बन्धित माना है. जाड़ जनजाति का निवास क्षेत्र उत्तरकाशी जनपद की उत्तरी सीमा पर जाह्वी नदी की घाटी है. इनका मूल गाँव भारत-तिब्बत सीमावर्ती गांव जादुंग है. इनके मूलग्राम जादुंग के समीप ही जनक ताल स्थित है, जो एक प्राचीन पूजा स्थल है. ये लोग अपने को राजा जनक के वंशज मानते हैं.

उत्तराखंड की  जाड़ जनजाति|Jad tribe of Uttarakhand



जाड़ जनजाति (Jaad Tribe) मूलतः गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी की उत्तरी सीमा में है. भागीरथी की ऊपरी सहायक नदी जाड़गंगा (जाहनवी ) के नेलांग घाटी इनका मूल निवास हुआ करता था. हाल-फिलहाल ये उत्तरकाशी के डुंडा, बगौरी एवं हरसिल आदि स्थानों में निवास करते हैं. इनका मुख्य व्यवसाय भेड़-बकरियों का पालन है. ये प्रायः भेड़-बकरियों, ऊन व ऊन से बने वस्त्रों का कारोबार करने के साथ ही हिमालयी जड़ी-बूटियों का व्यवसाय भी करते हैं. इस समुदाय की अपनी विशिष्ट परम्पराएँ हैं. इनमें एक अनोखी विवाह परंपरा (Marriage tradition) भी शामिल है.


बेशभूषा

जाड़ जनजाति के पुरुष घुटनों से थोड़ा ऊँचा गर्म चोंगा पहनते हैं. जिसे 'वपकन' कहा जाता है. नीचे ऊनी धारीदार एवं चूड़ीदार पायजामा पहनते हैं. सिर पर हिमाचली टोपी तथा पैरों में खाल से निर्मित जूता पहनते हैं, जिसे 'पैन्तुराण' कहा जाता है. जाड़ स्त्रियाँ पैरों तक लम्बा चोगा पहनती हैं। जिसे 'कौलक' कहते हैं. इस 'कौलक' के चारों ओर किनारों में प्राकृतिक रंगों द्वारा चित्रकारी की जाती है. कमर में एक कपड़ा लपेटती हैं जिसे केरक कहा जाता है. इसके साथ ही हिमाचली टोपी व पैरों में पैन्तुराण पहनती हैं.
उत्तराखंड की  जाड़ जनजाति|Jad tribe of Uttarakhand


 

समाज

जाड़ जनजातीय समाज में आधुनिकता का कम प्रभाव दृष्टिगोचर होता है. इनमें 'विधटित परिवार व्यवस्था' पाई जाती है, जिनमें पुत्रों के वयस्क हो जाने पर इन्हें परिवार से अलग कर दिया जाता है. पिता की सम्पत्ति में पुत्र एवं पुत्रियों का समान अधिकार होता है.

तिब्बतियों से व्यापारिक सम्बन्ध होने के कारण इनकी सामाजिक एवं संस्कृतिक परम्पराओं पर उनका स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है. तिब्बत के खाम्पओं की तरह ये लोग भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. इनकी जन्म, मृत्यु एवं अन्य संस्कार व क्रियाकर्म भी तिब्बतियों की तरह ही हुआ करते हैं. मृत्यु होने पर बस्ती के सभी जाड़ परिवारों से तेल इकट्ठा करके मृतक के शव के चारों ओर 120 दीपक जलाए जाते हैं. तिब्बतियों की तरह ही दाहक्रिया ज्योतिष के अनुसार दिन का निर्णय होने पर ही की जाती है. लामाओं द्वारा धार्मिक पाठ भी किया जाता है.

 विवाह की इनकी अपनी विशिष्ट परंपरा ‘ओडाला’ कहलाती है. उडाल प्रथा के अनुसार जीवन साथी चुनने वाला युवक, युवती की सहमति से, रात में उसे उसके घर से भागकर अपने घर ले आता है.

अगले दिन युवती का पिता अपने साथ कुछ आदमियों के लेकर उस युवक के घर आता है और इस अपराध के लिए युवक की पिटाई करता है. युवक के घर वालों और परिवार के कुछ सयानों द्वारा युवक की इस बात के लिए माफ़ी मांगी जाती है. वे युवती के पिता से इस वैवाहिक सम्बन्ध को स्वीकार करने का भी अनुरोध करते हैं.

 जब युवती के पिता का क्रोध शांत हो जाता है तो वह उन दोनों को अपने घर ले जाता है. युवती के पिता के घर में युवक एवं युवती को अगल-बगल बैठाया जाता है. अब युवक के माथे पर दाहिनी ओर तथा युवती के माथे पर बायीं तरफ टीका लगाया जाता है. युवती के पिता द्वारा घी का टीका लगा देने के बाद इस विवाह को औपचारिक तौर पर पूरा हुआ मान लिया जाता है.

 इसके बाद इस अनुष्ठान में मौजूद सभी लोगों को छंग (स्थानीय मदिरा) पिलाकर विवाह की ख़ुशी प्रकट की जाती है. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इस समुदाय में विवाह से पहले युवकों-युवतियों के पारस्परिक मिलन और यौन सम्बन्धों को गलत नहीं माना जाता. इसी मेलजोल की प्रवृत्ति प्रायः एक साथ भाग जाने में होती है.

जाड़ समुदाय की तरह ही यह जीवन पद्धति गढ़वाल के जौनसार क्षेत्र में भी प्रचलित है. वहां पर भी इसे ओडाला ही कहा जाता है. यह देखा गया है कि मेलो-ठेलों के मौकों पर लड़कों द्वारा लड़कियों को भागकर ले जाने की प्रवृत्ति ज्यादा देखी गयी है.

उत्तराखंड की  जाड़ जनजाति|Jad tribe of Uttarakhand