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जौनसारी जनजाति|Jaunsari tribe

जौनसारी जनजाति|Jaunsari tribe

यह उत्तराखंड राज्य में रहने वाली एक अनुसूचित जनजाति है। माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति मंगोल और डोम जातियों के मिश्रण से हुई है। जौनसारी जनजाति को आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण 1967 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था। जौनसार बावर क्षेत्र में रहने वाले जौनसारी लोग तीन वर्गों में विभाजित हैं: खसास (जिनमें ब्राह्मण और राजपूत शामिल हैं), हरिजन और कारीगर। कृषि और पशुपालन इनका मुख्य व्यवसाय है।

जौनसारी भाषा: यह उत्तराखंड में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा है। जौनसारी, भारतीय-आर्य भाषा परिवार की अंतर्गत आती है। जौनसारी की कई उप-बोलियाँ हैं, जैसे- बावरी और कंडवाणी। यह भाषा मुख्य रूप से देहरादून जिले के जौनसार क्षेत्र और उत्तरकाशी के कुछ इलाकों में बोली जाती है।

जौनसारी पहनावा 

महिलाओं की जौनसारी पोशाक:- जौनसारी बेशभूषा, उत्तराखंड की जौनसार-बावर क्षेत्र के लोगों की पारंपरिक पोशाक है। यह कठोर पहाड़ी वातावरण के अनुकूल है और रंगीन होने के साथ-साथ इसमें(shíyòng - practical) चीजों का भी ध्यान रखा गया है।
  • डांगरी (Dangri): यह एक ऊनी स्कर्ट होती है, जिसे गहरे रंग की ऊन से बनाया जाता है। इसे कई तहों में लपेटा जाता है और कमर पर कसी हुई कमरबंद (kamarbandh) से बांधा जाता है।

  • चोली (Choli): यह एक चटक रंग की कढ़ाईदार चौली होती है, जो आमतौर पर लाल या हरे रंग की होती है।

  • डाबर (Dabdar): यह एक ऊनी शॉल होता है, जिसे महिलाएं अपने सिर को ढकने के लिए इस्तेमाल करती हैं।

  • गहने (Gahne): जौनसारी महिलाएं चांदी के गहने पहनना पसंद करती हैं, जैसे - झुमके, हार, और नथ।

पुरुषों की जौनसारी पोशाक

  • धाकोटी (Dhakoti): यह घुटने तक लंबा ऊनी कोट होता है।

  • चूड़ीदार (Churidar): यह ढीली-ढाली पायजामी होती है।

  • गमछा (Gamcha): यह एक लंबा कपड़ा होता है, जिसे पुरुष अपने कंधों पर या सिर पर पहनते हैं।

  • टोपी (Topi): ऊनी टोपी सर्दियों में सिर को गर्म रखने के लिए पहनी जाती है।

जौनसारी पोशाक न केवल उन्हें गर्म रखने में मदद करती है बल्कि यह उनके समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को भी दर्शाती है।


परिवार

जौनसार भावर के परिवार पितृसत्तात्मक है. परिवार का मुखिया सबसे बड़ा पुरुष सदस्य होता है, जो परिवार की सम्पत्ति की देखभाल करता है. इनमें संयुक्त परिवार की प्रथा है, लेकिन वर्तमान समय में संयुक्त परिवार क्षीण होते जा रहे हैं, सामाजिक विभाजन के अनुसार ये लोग प्रायः राजपूत ब्राह्मण, सुनार, लौहार, बाड़ी, वाजगी, कोल्टा एवं हरिजन जातियों में विभक्त हैं जिनकी अपनी अपनी मान्यताएँ हैं- इस जनजाति में बहुपति प्रथा व बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन है. यहाँ महिलाओं की स्थिति भी महत्वपूर्ण है. यहाँ पर दहेज प्रथा का प्रचलन नहीं है. विवाह-विच्छेद के लिए पति-पत्नी दोनों को ही समान रूप से अधिकार प्राप्त है.

महासू देवता मंदिर 

 

धार्मिक विश्वास

इस जनजाति का भूत-प्रेतों की पूजा पर विश्वास है. ये लोग डाकिनियों एवं परियों पर अटूट विश्वास करते हैं, ये लोग धर्मभीरुता व अन्धविश्वास की व्यापक मान्यताओं को लिए हुए है. इस जनजाति का एक महत्वपूर्ण सर्वमान्य देवता 'महासू' है जिसे महाशिव का रूप माना जाता है, इन लोगों की संस्कृति काफी प्राचीन है. जौनसारी जनजाति के लोग अपने को पाण्डवों का वंशज मानते है. ये पाँच पाण्डवों को अपना प्रमुख देवता तथा कुन्ती को अपनी देवी मानकर उनकी पूजा करते हैं.

जौनसारी जनजाति|Jaunsari tribe

 

प्रमुख त्यौहार

जौनसारी क्षेत्र में कई त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख त्यौहार इस प्रकार हैं:

  • बिस्सू (Bissu): यह जौनसारी नव वर्ष का त्योहार है, जो वैशाख संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को साफ करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

  • पांचो (Pancho): यह दशहरे का त्योहार है, जो भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है। इस दिन लोग नाटक करते हैं, नृत्य करते हैं और मेले में जाते हैं।

  • दीपावली (Deepawali): यह रोशनी का त्योहार है, जो भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से लौटने का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने घरों को दीयों से सजाते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और पटाखे फोड़ते हैं।

  • माघ मेला (Magh Mela): यह एक धार्मिक मेला है, जो हर साल माघ महीने में गंगोत्री में आयोजित होता है। इस मेले में लाखों लोग गंगा नदी में स्नान करते हैं और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

  • नुणाई (Nunaai): यह भेड़ पालकों का त्योहार है, जो हर साल मई-जून में मनाया जाता है। इस दिन भेड़ पालक अपनी भेड़ों को ऊंचाई वाले चरागाहों में ले जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

  • जागड़ा (Jagada): यह जौनसारी लोक नृत्य का त्योहार है, जो हर साल भाद्रपद महीने में मनाया जाता है। इस त्योहार में लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनकर नृत्य करते हैं और लोकगीत गाते हैं।

इन त्योहारों के अलावा, जौनसारी क्षेत्र में कई अन्य त्यौहार भी मनाए जाते हैं, जैसे - होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, और करवा चौथ।

जौनसारी जनजाति|Jaunsari tribe

 

जौनसारी प्रमुख नृत्य व संगीत

जौनसारी क्षेत्र अपनी समृद्ध संस्कृति और विविधतापूर्ण नृत्य और संगीत के लिए जाना जाता है। यहां के लोगों का जीवन प्रकृति से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है, जो उनके नृत्य और संगीत में भी झलकता है।

प्रमुख नृत्य:

  • हुरका: यह जौनसारी क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य भगवान शिव को समर्पित है और इसे पुरुष और महिलाएं दोनों करते हैं। हुरका नृत्य में ढोल-नगाड़े बजते हैं और लोग रंगीन वेशभूषा पहनकर नृत्य करते हैं।
  • दांडी: यह एक और लोकप्रिय नृत्य है जो भगवान कृष्ण को समर्पित है। दांडी नृत्य में महिलाएं लकड़ी की दंडियां लेकर नृत्य करती हैं।
  • खड़िया: यह एक सामाजिक नृत्य है जो शादियों और अन्य खुशी के अवसरों पर किया जाता है। खड़िया नृत्य में पुरुष और महिलाएं एक साथ नृत्य करते हैं।
  • रंगत: यह एक युद्ध नृत्य है जो तलवारों और ढालों के साथ किया जाता है। रंगत नृत्य में पुरुष अपनी वीरता और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
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प्रमुख संगीत:

  • मंगल: यह जौनसारी क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय लोकगीत है। यह गीत देवी-देवताओं की स्तुति में गाया जाता है।
  • जागर: यह एक भक्ति गीत है जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है।
  • खुड़िया: यह एक शादी का गीत है जो शादी की खुशी को व्यक्त करता है।
  • बोरी: यह एक प्रेम गीत है जो प्रेमियों के बीच प्रेम को व्यक्त करता है।

जौनसारी नृत्य और संगीत क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और विरासत का प्रतीक है। यह लोगों को एकजुट करता है और उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ता है.

यहां कुछ अन्य लोकप्रिय नृत्य और संगीत हैं:

  • लौंडा
  • ढोल-नगाड़े
  • मांडा
  • थाली
  • करताल
  • झांझ

नृत्य और संगीत के अलावा, जौनसारी क्षेत्र अपनी पारंपरिक कला और हस्तशिल्प के लिए भी जाना जाता है।


राजनीतिक संस्था

इस जनजाति में 'सयाणा' एक प्रमुख राजनीतिक संस्था रही है, वर्षों तक यहाँ का शासन 'सयाणा' एवं 'खुमरी' व्यवस्था द्वारा संचालित रहा है. पूरे जौनसार क्षेत्र को 'खतों' में बाँटा गया था. प्रत्येक खेत में एक सयाणा होता था. इसका कार्य विवादों का निर्णय, मालगुजारी एवं दीवाली वसूल करना होता था. सदर सयाणा पर अधिक जिम्मेदारी थी वह सभी खतों के मामले में सर्वोच्च नियंत्रक था. इसके अलावा 'खुमरी' भी सबसे अधिक पुरानी संस्था रही है. व्यक्तिगत झगड़ों को निपटाने के लिए इसकी सहायता ली जाती है. इसमें प्रत्येक परिवार का एक सदस्य सम्मिलित होता है. आवश्यकता पड़ने पर 'ग्राम सयाणा अर्थात् गाँव के मुखिया द्वारा 'खुमरी' की बैठक बुलाई जाती है. गाँव के झगड़े निपटाने के लिए 'खत खुमरी' की व्यवस्था होती है. खुमरी में कोई भी व्यक्ति अपना मामला दर्ज करवा सकता है. इसका शुल्क लिया जाता है जिसे 'नालस' कहते हैं.

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जौनसारी व्यवसाय

जौनसारी क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। यहां की जलवायु और भूगोल कृषि और पशुपालन के लिए अनुकूल है।

कृषि:

  • जौनसारी क्षेत्र में मुख्य रूप से गेहूं, मक्का, धान, और फलियां उगाई जाती हैं।
  • यहां की कुछ प्रमुख फलियां हैं - मसूर, चना, और राजमा।
  • यहां के कुछ प्रमुख फल हैं - सेब, नाशपाती, और अखरोट।

पशुपालन:

  • जौनसारी क्षेत्र में गाय, भैंस, भेड़, और बकरी पालन का व्यवसाय भी प्रमुख है।
  • यहां के लोग दूध, दही, घी, और ऊन जैसे पशु उत्पादों का उत्पादन करते हैं।

अन्य व्यवसाय:

  • कृषि और पशुपालन के अलावा, जौनसारी क्षेत्र के लोग अन्य व्यवसायों में भी शामिल हैं, जैसे - लकड़ी का काम, लोहार का काम, और बुनकर का काम।
  • यहां के कुछ लोग सरकारी नौकरी भी करते हैं।
  • पर्यटन भी जौनसारी क्षेत्र के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है।

जौनसारी क्षेत्र के लोगों का जीवन सरल और साधारण  है। वे प्रकृति के साथ तालमेल में रहते हैं और अपनी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करते हैं।

जौनसारी जनजाति|Jaunsari tribe

यहां कुछ अन्य व्यवसाय हैं:

  • मजदूरी
  • व्यापार
  • छोटे उद्योग

जौनसारी क्षेत्र के लोगों के लिए आजीविका के साधन सीमित हैं। सरकार क्षेत्र के विकास और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए प्रयास कर रही है.