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थारू जनजाति |Tharu Tribe

 

थारू जनजाति |Tharu Tribe


थारू जनजाति उत्तराखण्ड में ऊधमसिंह नगर जिले में निवास करते हैं. उत्तर प्रदेश में लखीमपुरखीरी, गोंडा, बहराइच, गोरखपुर आदि जिलों में तथा बिहार के चम्पारन और दरभंगा जिलों में एवं भारत के पूर्व में जलपाइगुड़ी (असम) से पश्चिम में कुमाऊँ (गढ़वाल) तक तथा नेपाल में, पूर्त में 'भैंची' से पश्चिम में 'महाकाली' के अंचल तक व्याप्त है. उत्तर भारत में 2001 की जनगणना के अनुसार थारू जनजाति की जनसंख्या 85665 है.

थारू जनजाति |Tharu Tribe

 


इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार थारू लोगों का पुराना देश राजस्थान है. ये किरात वंशज हैं और कई जातियों तथा उपजातियों में विभाजित हैं. ये लोग कद के छोटे, पीतवर्ण, चीड़ी मुखाकृति तथा समतल नासिका वाले होते हैं, जो मंगोल प्रजाति के लक्षण हैं. इसलिए कुछ इतिहासकारों ने इनका उद्गम मध्य एशिया के मूल निवासी मंगोलों से बताया  है. कुछ लोग इन्हें भारत-नेपाल के आदिम निवासी सिद्ध करते हैं.

थारू जनजाति |Tharu Tribe

 

रहन-सहन

इन लोगों का रहन-सहन वहुत सादा है. मकान बनाने के लिए लकड़ी, लट्टे और नरकुल आदि का प्रयोग करते हैं.

इनके मकान उत्तर-दक्षिण और द्वार हमेशा पूर्व की ओर होता है. इनमें एक उपजाति होती है, जिसे 'उल्टहवा' कहते हैं. इनके मकान अन्य थारुओं की तरह ही उत्तर-दक्षिण की ओर होते हैं, परन्तु प्रवेश द्वार दक्षिण के बजाय उत्तर की ओर होता है. इसी उल्टी प्रथा के कारण यह जाति 'उल्टहवा' कहलाती है. इनका पहनावा वड़ा अनोखा है. वैसे ये लोग केवल एक लंगोटी ही पहने रहते हैं, परन्तु शरद् ऋतु में एक बड़ा-सा कोट पहन लेते हैं. सिर पर ऊनी कपड़े की काली टोपी तथा कन्धे पर कम्बल इनके साथ हर समय रहता है. स्त्रियाँ कुर्ता तथा काले रंग के घाघरे का उपयोग करती हैं. बाल को ढकने के लिए काले रंग के रुमाल का प्रयोग करती हैं. गहने पहनने का इन्हें बहुत शौक है.

 

सामाजिक जीवन

सभी विवाहित पुरुषों को स्त्रियों के अधीन रहना पड़ता है. पत्नी का आदेश मानना पुरुष का धर्म समझा जाता है,

स्त्रियाँ अपने आपको रानी समझती हैं. पुरुष अपने आपको दास राजपूत सिपाडी समझते हैं. इसका अभिप्राय यह नहीं कि पत्नियाँ अपने पति का निरादर करती हैं, वल्कि यथासम्भव उनकी सेवा करती हैं. पति को ही अपना सर्वस्व समझती हैं. यह केवल एक रीति है.

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विवाह पद्धति

थारुओं में विवाह की प्रथा वड़ी विचित्र है. विवाह करने के पहले इनमें सगाई होती है, कन्या तया वर पक्ष जब एक- दूसरे को परिणय सूत्र में बाँधने का निश्चय कर लेते हैं, तब वर पक्ष की ओर से कन्या को मिटाई तथा वस्त्र भेजे जाते हैं. इसके बाद लड़की और लड़के के पिता अपनी प्यालियाँ एक-दूसरे से वदलकर मद्यपान करते हैं. सगाई में अन्तिम रीति 'उचावल' की होती है. इसमें कन्या की माता वर के पिता के पास आकर उसके पाँव छूती है तथा 'उचावल' के लिए प्रार्थना करती है. इसका अर्थ यह है कि वह लड़की के श्रृंगार के लिए लड़के वाले से रुपया माँगती है. लड़के का पिता सामर्थ्यानुसार कुछ नकद रुपए लकड़ी की माँ के आँचल में डाल देता है. पुनः एक निश्चित दिन विवाह होता है.

     थारुओं में पहले बदला अर्थात् बहनों के आदान-प्रदान की प्रथा थी, लेकिन अब यह कम होती जा रही है. अब इनमें "तीन टिकठी' प्रथा जोर पकड़ रही है, जिसके अनुसार एक-दूसरे की बहन से विवाह न करके उसी परिवार के किसी निकटतम लड़की से करते हैं. बहुपत्नी विवाह भी इनमें हो सकता है.

 

न्याय पंचायत

थारुओं में अपनी समस्याओं को निपटारे के लिए अपनी विरादरी की पंचायतें होती हैं. यह इनकी ग्रामीण अदालतें होती हैं. इस प्रसंग में यह जनजाति भी वड़ी कट्टरपंथी है, 'मद्यप पंचगण मदिरा' के घूँट के साथ तर्क- वितर्क करते हैं. इस प्रकार न्याय में भी मदिरा की प्रमुख भूमिका होती है. 'वाद' की विभिन्न धाराओं पर प्रश्नों की झड़ी लग जाती है, पराजित पक्ष को शारीरिक और आर्थिक दण्ड सहना पड़ता है. विरादरी के निर्णय की अपील कहीं अन्यत्र कोर्ट में असम्भव है

थारू जनजाति |Tharu Tribe

 

धार्मिक विश्वास

थारू हिन्दू धर्म को मानते हैं. हिन्दुओं की तरह इनके भी अनेक देवी देवता हैं. ये लोग तन्त्र मन्त्र, भूत प्रेत आदि में

भी विश्वास रखते हैं. देवताओं को प्रसन्न रखने के लिए सूअर और वकरी की वलि देते हैं, किन्तु जगन्नाथी देवता पर

केवल दूध चढ़ाते हैं, इनके देवी देवताओं की संख्या लगभग छत्तीस है.

 

त्यौहार

थारुओं के दशहरा, होली, माघ की खिचड़ी, कन्हैया अष्टमी और वजहर इनके प्रमुख त्यौहार हैं. इसके अतिरिक्त ये मकर संक्रान्ति, गुड़िया आदि त्यौहार भी उत्साह के साथ मनाते हैं. वजहर नामक त्यौहार वरसात के दिनों में होता है. उस दिन गाँव की समस्त स्त्रियों गाँव छोड़कर खाना बनाने के आवश्यक सामान के साथ निकट के किसी ऐसे स्थान पर चली जाती हैं, जहाँ पीपल का पेड़ होता है,

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व्यवसाय

थारुओं का प्रमुख व्यवसाय व आय का ग्रोत कृषि है. इसके अतिरिक्त माछली का शिकार एक आवश्यक कार्य है, जो भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग करते हैं. वे लोग जंगलों में चीतलपाड़ा, सूअर व जंगली जानवरों का शिकार करते हैं.

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अन्त्येष्टि क्रिया

थारु लोग मुर्दों को दफनाते हैं तथा दरावाँ, तेरहवीं इत्यादि करते हैं. जब वे मिट्टी देकर लीटते हैं, तो चौराहे पर एक छोटी सी पुलिया बनाते हैं. उनका विश्वास है कि इसके सहारे मृतात्मा संकटों को पार कर लेगी.