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उत्तराखंड में कृषि और संस्कृति और फोटो|Agriculture and Culture in Uttarakhand| cultural photo of uttrakhand

 


उत्तराखंड में कृषि और संस्कृति राज्य की पहचान और विकास का आधार है। यह हिमालय की गोद में बसा एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य, विविधता और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है। यहाँ की संस्कृति और कृषि परंपरा राज्य के ग्रामीण जीवन, जलवायु और भौगोलिक स्थिति से गहराई से जुड़ी हुई है।


1. उत्तराखंड में कृषि:

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है, और यहाँ के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं।

1.1 भौगोलिक स्थिति और कृषि का प्रभाव:

  • भौगोलिक विविधता: राज्य का अधिकतर हिस्सा पहाड़ी है, जहाँ सिंचाई की सुविधाएँ सीमित हैं। मैदानों में गंगा और यमुना जैसी नदियाँ कृषि का प्रमुख स्रोत हैं।
  • मौसम: यहाँ की कृषि मुख्यतः मानसून पर आधारित होती है। साथ ही ऊँचाई के कारण विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं।
  • कृषि योग्य भूमि: राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 14% हिस्सा कृषि योग्य है।

1.2 प्रमुख फसलें:

उत्तराखंड में उगाई जाने वाली फसलें उनकी जलवायु और भौगोलिक स्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं।

  • मुख्य अनाज फसलें:

    • धान (कुमाऊँ और गढ़वाल के तराई क्षेत्रों में)
    • गेहूँ
    • मक्का
    • झंगोरा (पहाड़ी क्षेत्र में उगाया जाने वाला मिलेट)
    • मंडुवा (रागी)
  • दालें:

    • राजमा (विशेषकर गढ़वाल का प्रसिद्ध राजमा)
    • उड़द, मसूर, और गहत (घुघुती)।
  • फल और सब्जियाँ:

    • उत्तराखंड फल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के सेब, आड़ू, खुमानी, नाशपाती, और माल्टा (संतरे जैसा फल) विशेष प्रसिद्ध हैं।
    • सब्जियाँ: आलू, टमाटर, गाजर, मटर, ब्रोकोली।
  • चाय और जड़ी-बूटियाँ:

    • अल्मोड़ा, चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों में जैविक चाय की खेती होती है।
    • जड़ी-बूटियाँ जैसे कि तुलसी, अश्वगंधा, और भृंगराज यहाँ की महत्वपूर्ण फसलें हैं।

1.3 जैविक और पारंपरिक कृषि:

  • उत्तराखंड की जैविक कृषि नीति ने इसे भारत का पहला जैविक राज्य बनने की दिशा में अग्रसर किया है।
  • पारंपरिक कृषि में बिना रासायनिक उर्वरकों के खेती की जाती है, जिससे यहाँ की उपज स्वास्थ्यवर्धक होती है।

1.4 पर्वतीय कृषि की समस्याएँ:

  • खेती का छोटा आकार (टुकड़ों में बँटी हुई भूमि)
  • पानी की कमी
  • पलायन की समस्या (जवानी पलायन कर रही है, जिससे खेती छूट रही है)
  • बाजार तक फसलों की पहुँच का अभाव

2. उत्तराखंड की संस्कृति:

उत्तराखंड की संस्कृति यहाँ के लोगों की जीवनशैली, परंपराओं, रीति-रिवाजों, त्योहारों और धार्मिक मान्यताओं में झलकती है। इसे "देवभूमि" कहा जाता है, क्योंकि यह जगह देवी-देवताओं का निवास स्थान मानी जाती है।

2.1 परंपराएँ और रीति-रिवाज:

  • यहाँ के पर्वतीय क्षेत्रों में विशेषतः मंदिरों और धार्मिक स्थलों का महत्व है।
  • विवाह और त्योहारों में गाए जाने वाले मांगल गीत, झोड़ा, और चांचरी लोकगीतों का प्रमुख स्थान है।
  • पारंपरिक पहनावा:
    • महिलाओं के लिए: घाघरा-चोली, ओढ़नी।
    • पुरुषों के लिए: धोती-कुर्ता, पहाड़ी टोपी।

2.2 लोक कला और संगीत:

  • उत्तराखंड की लोक संस्कृति में ढोल, दमाऊं, और रौंसली जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है।
  • लोकगीत: यहाँ के लोकगीतों में प्रकृति, प्रेम, वीरता, और देवताओं की महिमा का वर्णन होता है।
    • जागर: देवताओं को आमंत्रित करने के लिए गाए जाने वाले गीत।
    • पांडव नृत्य: महाभारत की कथा पर आधारित पारंपरिक नृत्य।

2.3 त्योहार और मेलों:

उत्तराखंड में कई धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं:

  • कुम्भ मेला (हरिद्वार में)
  • नंदा देवी मेला (कुमाऊँ और गढ़वाल दोनों क्षेत्रों में)
  • उत्तरायणी मेला (मकर संक्रांति के अवसर पर)
  • बूढ़ी दिवाली (गढ़वाल क्षेत्र में दिवाली का स्थानीय रूप)

2.4 भोजन संस्कृति:

उत्तराखंड का खाना सादा, पौष्टिक और प्राकृतिक है।

  • पारंपरिक व्यंजन:
    • झंगोरे की खीर
    • काफुली (हरी पत्तेदार सब्जी का व्यंजन)
    • गहत की दाल
    • भट की चुटकानी
    • सिसौंण का साग
    • माल्टा का रस
  • यहाँ की रसोई में अधिकतर सरसों और देशी मसालों का उपयोग किया जाता है।

3. कृषि और संस्कृति के बीच संबंध:

  • उत्तराखंड की संस्कृति उसकी कृषि व्यवस्था से गहराई से जुड़ी हुई है। यहाँ के त्योहार और धार्मिक आयोजन कृषि चक्र से संबंधित हैं।
    • हरेला पर्व: हरियाली और नई फसल के स्वागत में मनाया जाने वाला त्योहार।
    • घी संक्रांति: फसल कटाई के बाद घी और अन्य उत्पादों के उपयोग से मनाया जाने वाला पर्व।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के दौरान पारंपरिक लोकगीत और संगीत गाए जाते हैं, जो यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं।

4. वर्तमान में कृषि और संस्कृति पर संकट:

  • पलायन की समस्या: पहाड़ों से लोगों का पलायन कृषि और संस्कृति पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन: ग्लेशियरों के पिघलने और असमय बारिश के कारण कृषि उत्पादन में कमी आ रही है।
  • आधुनिकीकरण: पारंपरिक रीति-रिवाज और संस्कृतियाँ आधुनिक जीवन शैली के कारण लुप्त हो रही हैं।

5. कृषि और संस्कृति को संरक्षित करने के प्रयास:

  • सरकार और स्थानीय समुदाय जैविक कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • होमस्टे पर्यटन के माध्यम से पारंपरिक संस्कृति और भोजन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • लोक संगीत, नृत्य और त्योहारों को प्रोत्साहित करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

निष्कर्ष:
उत्तराखंड की कृषि और संस्कृति राज्य की पहचान और उसकी जड़ों से जुड़े हुए हैं। इसे संरक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस अनमोल धरोहर को जान सकें और इसे जीवित रख सकें।




























































































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