श्री विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। गुप्तकाशी केदारनाथ धाम जाने वाले यात्रियों के लिए एक प्रमुख पड़ाव है।
गुप्तकाशी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
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नाम का अर्थ"गुप्तकाशी" का अर्थ है "छुपी हुई काशी"। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने पांडवों से बचने के लिए यहाँ निवास किया था। यह स्थान वाराणसी (काशी) के समान पवित्र है, इसलिए इसे गुप्तकाशी कहा गया।
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महाभारत काल की मान्यता
- महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव के दर्शन हेतु हिमालय पहुंचे।
- भगवान शिव पांडवों से नाराज होकर गुप्त रूप से यहां गुप्तकाशी में छुप गए।
- इसीलिए इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा।
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भगवान विश्वनाथ मंदिर
- यह मंदिर भगवान शिव के विश्वनाथ स्वरूप को समर्पित है।
- मंदिर में भगवान शिव की शिवलिंग विद्यमान है।
- यहां एक नंदी की मूर्ति भी है जो मंदिर के बाहर विराजमान है।
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पवित्र जलकुंडमंदिर के पास मणिकर्णिका कुंड नामक एक पवित्र जलकुंड है।
- मान्यता है कि इस कुंड में गंगा और यमुना का जल प्रवाहित होता है।
- यह कुंड श्रद्धालुओं के लिए स्नान और पूजा का प्रमुख स्थान है।
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शिव-गौरी मंदिरगुप्तकाशी में शिव और माता पार्वती का भी एक मंदिर है। कहा जाता है कि यहां माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ था।
प्राकृतिक सुंदरता और भौगोलिक स्थिति
- मंदाकिनी नदी: मंदिर मंदाकिनी नदी के समीप स्थित है, जिससे इसकी धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य बढ़ जाता है।
- पृष्ठभूमि में हिमालय: गुप्तकाशी से हिमालय की चोटियों का दृश्य बहुत मनोरम होता है।
- गुप्तकाशी समुद्र तल से लगभग 1,319 मीटर (4,330 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।
केदारनाथ यात्रा के लिए गुप्तकाशी का महत्व
गुप्तकाशी को केदारनाथ यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है।
- केदारनाथ जाने वाले तीर्थयात्री गुप्तकाशी में रुकते हैं।
- गुप्तकाशी में कई धर्मशालाएं, होटल और यात्री सुविधाएं उपलब्ध हैं।
कैसे पहुंचे गुप्तकाशी
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हवाई मार्ग:
- निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है, जो लगभग 190 किलोमीटर दूर है।
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रेल मार्ग:
- निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश या हरिद्वार है।
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सड़क मार्ग:
- गुप्तकाशी सड़क मार्ग से उत्तराखंड के प्रमुख शहरों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून आदि से जुड़ा हुआ है।
अन्य दर्शनीय स्थल
- मणिकर्णिका कुंड
- शिव-गौरी कुंड
- उखीमठ: जहां भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा होती है।
- मंदाकिनी नदी के तट
गुप्तकाशी की संस्कृति और परंपरा
- गुप्तकाशी में स्थानीय लोग बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।
- यहाँ की संस्कृति में गढ़वाली भाषा, संगीत और लोकनृत्य का विशेष स्थान है।
- विशेष पर्वों जैसे महाशिवरात्रि पर यहां बड़ी संख्या में भक्त इकट्ठा होते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य (संक्षेप में)
- स्थान: गुप्तकाशी, रुद्रप्रयाग जिला, उत्तराखंड
- ऊंचाई: 1,319 मीटर
- मुख्य देवता: भगवान शिव (विश्वनाथ स्वरूप)
- मुख्य आकर्षण:
- विश्वनाथ मंदिर
- मणिकर्णिका कुंड
- केदारनाथ यात्रा मार्ग
- समय: सालभर दर्शन के लिए खुला रहता है।
गुप्तकाशी अपने धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के कारण उत्तराखंड का एक अनोखा तीर्थ स्थल है। यह न केवल श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और इतिहासकारों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
श्री विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी उत्तराखंड |
श्री विश्वानाथ मंदिर की कहानी
केदारनाथ में एक जगह गुप्त काशी है। उस जगह का नाम गुप्तकाशी इसलिए पड़ा कि पांडवों को देखकर भगवान शिव वहीं छुप गए थे। गुप्तकाशी से भगवान शिव की तलाश करते हुए पांडव गौरीकुंड तक जाते हैं। लेकिन इसी जगह एक बड़ी विचित्र बात होती है। पांडवों में से नकूल और सहदेव को दूर एक सांड दिखाई देता है।
भीम अपनी गदा से उस सांड को मारने दौड़ते हैं। लेकिन वह सांड उनकी पकड़ में नहीं आता है। भीम उसके पीछे दौड़ते हैं और एक जगह सांड बर्फ में अपने सिर को घुसा देता है। भीम पूंछ पकड़कर खिंचते हैं। लेकिन सांड अपने सिर का विस्तार करता है। सिर का विस्तार इतना बड़ा होता है कि वह नेपाल के पशुपति नाथ तक पहुंचता है। पुराण के अनुसार पशुपतिनाथ भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
देखते ही देखते वह सांड एक ज्योतिर्लिंग में तब्दील हो जाता है। फिर उससे भगवान शिव प्रकट होते हैं। भगवान शिव का साक्षात दर्शन करने के बाद पांडव अपने पापों से मुक्त होते हैं
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